दीवाल पोत दूंगा

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मत कर तू अभिमान रे बंदे, समय बड़ा बलवान*

 आज की बोध कथा = 


*मत कर तू अभिमान रे बंदे, समय बड़ा बलवान*



    भगवान कृष्ण एक वन से गुजर रहे थे तभी उनके पांव में एक कांटा लगा, और वो दर्द से कराहते एक पेड़ के नीचे बैठे। एक शिकारी को कृष्ण की कराह किसी जानवर सी लगी तो उसने शब्दभेदी वाण से तीर चला दिया, जो सीधा कृष्ण के पैर में लगा।  जब शिकारी ने कृष्ण को देखा तो वह रो पड़ा और क्षोभ करने लगा।  तब कृष्ण ने उसे बताया कि राम रूप में उन्होंने छुपकर बाली को मारा था, तुम भील बने वही बाली हो।  तब भील चुप हुआ।  बैकुण्ठ से गरुड़ आये और भगवान उस पर बैठकर अपने धाम चले गए।

    पांडवो को श्रीकृष्ण ने पहले ही अपने द्वारिका नगर की जिम्मेदारी दे रखी थी। अर्जुन समस्त वासियो समेत जैसे ही नगर के बाहर निकले कि नगर समुद्र में डूब गया। अर्जुन यदुवंश की स्त्रियों व वासियों को लेकर तेजी से हस्तिनापुर की ओर चलने लगे। रास्ते में कालयवन के बचे हुए सैनिक वहां लुटेरों के रूप में तैयार थे।  जब उन्होंने देखा कि अर्जुन अकेले ही इतने बड़े जनसमुदाय को लेकर जा रहे हैं तो धन के लालच में आकर उन्होंने उन पर हमला कर दिया।

अर्जुन ने अपनी शक्तियों को याद किया, लेकिन उसकी शक्ति समाप्त हो गई।  अर्जुन जैसे योद्धा के होते भी भगवान कृष्ण के नगरवासी लुटे और गोपियों तक को लुटेरे उठा ले गए। कृष्ण के साथ ही सारी शक्ति समाप्त हो गई, इसी पर तुलसीदास जी ने एक दोहा लिखा है:- 

*तुलसी नर का क्या बड़ा समय बड़ा बलवान, काबा लूटी गोपिया वोही अर्जुन वोही बाण।*

   अर्जुन ने जब ये वेदव्यास को बताया तब उन्होंने कहा कि जिस उद्देश्य से तुम्हे शक्तिया प्राप्त हुई थी वे अब पूरे हुए। अत: अब तुम्हारे परलोक गमन का समय आ गया है और यही तुम्हारे लिए सही है। महर्षि वेदव्यास की बात सुनकर अर्जुन उनकी आज्ञा से हस्तिनापुर आए और उन्होंने पूरी बात महाराज युधिष्ठिर को बता दी। महर्षि वेदव्यास की बात मानकर द्रौपदी सहित पांडवों ने राज-पाट त्याग कर परलोक जाने का निश्चय किया। सुभद्रा राजरानी बनी और पांडवों व द्रौपदी ने साधुओं के वस्त्र धारण किए और स्वर्ग जाने के लिए निकल पड़े।


🙏🙏🙏

*जय जय सियाराम*

प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल

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