पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर त्रि शताब्दी वर्ष =
शृंखला = 17 वीरांगना अहिल्यादेवी भाग दो
1771 के विद्रोह के बाद भी रामपुरा वालो ने सन 1783 मे रामपुरा को होलकर राज्य से छीनने के लिये हाथ-पैर मारना शुरू किया तब अहिल्यादेवी ने उनकी बगावत को रोकने के लिये फिर से प्रबंध किया व अहिल्यादेवी अपनी पराक्रम शक्ति से इस युद्ध मे भी दूसरी बार विजयी होकर आयी किंतु रामपुरा वालो का यह दमनकारी रूप निरंतर जारी रहा । रामपुरा वालो ने तीसरी बार सन 1787 मे अहिल्यादेवी के राज्य पर आक्रमण की तैयारीयाँ की तब दूत अहिल्यादेवी के दरबार मे जानकारी लेकर आया और उसने कहां: “रामपुरा वालो ने होलकर राज्य से रामपुरा को अलग करने के लिये फिर से हाथ पैर मारने शुरू कर दिए और वे फिर से बगावत की तैयारी कर रहे हैं”। अहिल्यादेवी ने तुरंत ही अपने सभी सरदारों को पत्र लिखकर सेना तैयार करने के आदेश दिये तथा देवी ने स्वयं भी अपनी महिला सेना को गोला बारूद के साथ प्रशिक्षित किया, अहिल्यादेवी ने पैशवा को भी इस घटना से अवगत करा दिया था कि रामपुरा वाले बार-बार होलकर के क्षेत्र को हड़पने के लिए विद्रोह कर रहे तभी अहिल्यादेवी को समाचार मिला की रामपुरा परगने के निंबाहेड़ा गढ़ी के किलेदार शिवाजी नाना गढ़ी छोड़कर भाग गए, शिवाजी नाना अहिल्यादेवी के पास पहुँचे तो उन्होंने भागने की सफ़ाई मे अहिल्यादेवी से कहां की उनके पास गढ़ी में सिर्फ सौ सैनिक थे और रामपुरा वालो ने अचानक ही उन पर आक्रमण कर दिया इसलिए वे गढ़ी छोड़कर भाग गये थे । शिवाजी नाना ने अहिल्यादेवी को यह समाचार भी दिया की उदयपुर वालो के सैनिकों ने चरकड़े तक होलकर राज्य में घुसपैठ शुरू कर दी हैं तथा रामपुरा वालो ने उदयपुर वालो के साथ मिलकर होलकर राज्य के खिलाफ बगावत के झंडे उठाने की रणनीति की हैं। शिवाजी नाना की यह बात सुनकर अहिल्यादेवी के क्रोध की सीमा ही नहीं रही, देवी ने क्रोध मे शिवाजी नाना से कहां : “शिवाजी नाना! शत्रुओं से सामना करने की बजाय तुमने भागकर कायरता का परिचय दिया हैं, भागने की बजाय तुमने शत्रुओं से मुकाबला किया होता तो तुम्हें स्वर्ग मे स्थान तो मिलता, तुम्हारे भगोड़ेपन से शत्रुओं के साहस में वृद्धि हुयी हैं, वे दोगुने उत्साह शक्ति से हम पर आक्रमण करने आ रहे हैं तभी दूत ने दरबार में आकर अहिल्यादेवी को समाचार देते हुवे कहां : रामपुरा वालो ने दस हज़ार सैनिकों के साथ निंबाहेड़ा, जावद तथा आस- पास के होलकर राज्य के गाँवो पर हमला कर दिया हैं व देवी आपके द्वारा युद्ध में भेजे गये “अंबाजी पंत” पाखर्दा के पास युद्ध मे मारे गए । यह समाचार सुन अहिल्यादेवी ने शिवाजी नाना से कहां: नाना देखा, तुम्हारी कायरता से रामपुरा वालो के उत्साह में कितनी वृद्धि हुयी हैं, यदि तुमने उनसे शुरू में ही डटकर मुक़ाबला किया होता तो शत्रुओं का यह साहस नहीं होता की वे होलकर के सैनिक को मार गिराये और सन 1787 मे रामपुरा वालो का यह तीसरा राजद्रोह का रवैया था, अहिल्यादेवी रामपुरा वालो की बगावत को हमेशा के लिए विराम देना चाहती थी। इस बार भी होलकर के सेनापति तुकोजीराव दक्षिण में थे तब अहिल्यादेवी ने किसी पराक्रमी योद्धा की सेना से कहां : “इस बार इनका विद्रोह का दमन पूर्ण रूप से शांत होना चाहिये, भयंकर युद्ध कीजिए और ध्यान रहे की इस युद्ध से यदि कोई भागकर वापस आयेगा तो मैं उसका सिर कलम करवा दूँगी” अगर वहां मेरी आवश्यकता हुयी तो मैं स्वयं हाथ मे भाला लेकर वहां आऊँगी और शत्रु का नाश करूँगी किन्तु तुमने कुछ गड़बड़ की तो सबसे पहले तुम्हें दंडित करूँगी एवं अहिल्याबाई स्वयं भी अपने सैनिकों के साथ इस युद्धक्षेत्र मे पहुँची तथा वह सेना के पीछे रहकर उन्हें युद्ध के लिये निर्देश दे रही थी। अहिल्यादेवी के युद्ध भूमि में सैनिकों के साथ खड़े होने से होलकर सेना मे उत्साह का वातावरण था, अहिल्यादेवी की सेना ने भयंकर युद्ध किया, अहिल्या बाई की सेना ने रामपुरा वालो के दाँत खट्टे कर दिए। अहिल्याबाई के सेना ने आमद के किले को घेर लिया तब अहिल्याबाई के पास “ज्वाला” नाम की एक बहुत ही प्रसिद्ध तोप थी, तब अहिल्याबाई ने तोप से अमाद के किले पर आग के गोले बारूद बरसाये एवं अहिल्याबाई ने अपने पराक्रम से क़िला जीत लिया। विद्रोहीयो का सेनापति पकड़ा गया, अहिल्याबाई ने अपनी तोप “ज्वाला” के मुँह पर शत्रु सेनापति को बांधकर उड़ा दिया, सारे विद्रोही वही ढेर हो गए तथा हथियार नीचे ज़मीन पर डाल दिए । अहिल्यादेवी ने इस तरह से दृढ़तापूर्वक रामपुरा वालो को कुचल दिया एवं उन्होंने रामपुरा पर विजयी हासिल की। रामपुरा वाले अहिल्यादेवी पर जो इतना अत्याचार दिखा रहे थे उनका अहंकार पराजित हुआ एवं अहिल्याबाई की विजयी से होलकर राज्य मे विजयोत्सव मनाया गया। जब यह समाचार पूना पहुचा तो वहां भी अहिल्यादेवी की विजयी पर विजयोत्सव मनाया गया, देवी के सम्मान में पूना में तोपे दागी गई। सन 1787 मे जब रामपुरा का विद्रोह जारी था तब अहिल्यादेवी वृद्धावस्था मे थी किंतु फिर भी शत्रुओं को मार गिराने का साहस व युद्ध कला का कौशल उनमे था। रामपुरा के तीनों विद्रोह मे अहिल्याबाई ने विजयी प्राप्त की।
संदर्भ - वीरांगना अहिल्याबाई
लेखक - राजेंद्र पांडे
संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम
प्रस्तुति --अशोक जी पोरवाल
पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर त्रि शताब्दी वर्ष= श्रृंखला= 18
न्यायप्रिय अहिल्यादेवी भाग एक
अहिल्यादेवी होलकर पर मराठी सुप्रसिद्ध कवि मोरोपंत ने काव्य पंक्तियों मे देवी की न्याय व धर्म परायणता पर लिखा हैं - देवी अहिल्याबाई! जालिस जग त्रयांत तू धन्या ।।
न न्याय धर्म निरता अन्या कालिमाजि ऐकली कन्या ।।
अर्थात् - “हैं देवी अहिल्याबाई । आप तीनो लोको मे धन्य हो, कलियुग मे आपके जैसी न्यायी और धर्म परायण अन्य नारी देखी-सुनी नहीं गई ।
अहिल्यादेवी के पुत्र मालेराव के निधन के पश्चात देवी ने ऐसे दौर मे शासन प्रशासन व्यवस्था संभाली थी जब मुगलों का शासन अंतिम काल मे था किंतु मुगल आक्रांताओ के आतंक से भारतवर्ष की सुख शांति भंग हो गई थी, इससे मालवा प्रदेश भी अछूत नही रहा था।
अहिल्यादेवी ने सन 1767 में जब महेश्वर मे शासन व्यवस्था संभाली तब मालवा प्रदेश की हालत बहुत ही कठिन थी, राज्य मे कुछ भील समाज के लोग चोरी और लूट मार के कार्य करते थे, मालवा की प्रजा को भी इसका भारी कष्ट झेलना पड़ रहा था, भील समाज के कुछ धूर्त गांव-गांव मे फैले हुवे थे। देवी के राज्य की सीमा से लगे राज्यो मे और दूसरे राज्यो की सीमा पर भील लुटेरे दिन-रात रास्ते से जाने वाले लोगो के साथ लूटमार करते थे व उन्हें यातनाए भी देते थे, उन दिनों जन जीवन बहुत कठिन हो गया था। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना अत्यंत दुःखदायी व भयावह हो गया था, गांव के सीधे-साधे लोग घर से निकलते थे तो वापिस सही सलामत लौट नहीं पाते थे,भील लूटमारो की वजह से लोग एक गांव से दूसरे गांव तक की यात्रा करने मे भयभीत थे। रास्ते मे लूटमारो के झुंड होते थे, यात्री के निकलते वक्त वे उस पर हमला बोल देते थे व यात्री के पास जो भी सामान होता था उसे लूट ले जाते थे और उस यात्री को वही मार गिराते थे यदि कोई व्यक्ति पराक्रमी होता था तो उसे देख भील लुटेरे भाग जाते थे परंतु सामान्य लोगो के लिये तो यह दौर अत्यंत ही पीड़ादायक था।
उन दिनों भील लूटमारो ने अन्य राज्य के राजाओ से संबंध बनाए तथा इन राजाओ के आश्रय मे ही लुटेरो का झुंड बढ़ता जा रहा था। भीलों के साथ जमींदारो ने भी भीलो को आश्रय देकर उनके साथ लूटमार मे भागीदारी की थी और भील लुटमारो ने उन राजाओ के सहयोग से राहगीरों पर फिजुल का “कर” भी लगा दिया था, “भिल्ल कौड़ी” के नाम से यात्रीयो से कर लूटा जाने लगा था। जब इन कुव्यवस्था की जानकारी अहिल्यादेवी को मिली तब भीलो के मुखिया को महेश्वर दरबार मे बुलाकर उन्हें समझाया एवं उन्हें खेती कर स्वाभिमान व्यक्ति का जीवन जीने की सीख दी तब वे नहीं समझे और दरबार से जाने के बाद पुन: यही लूटमारी के काम करने लगे तब अहिल्यादेवी ने सैनिक कार्यवाही कर सख्ती के साथ भीलो को दण्डीत किया । देवी ने कई भीलो को उनके कृत्य के कारण मृत्यु दंड दिया तथा कुछ भील लूटमारो को जेल मे भिजवा दिया। देवी ने भील लोगो की लूटमार से मालवा राज्य को छुटकारा दिलाने के लिये भील के मुखिया फिर से दरबार मे बुलाकर कहां - “ मालवा राज्य मे रहना हैं तो सुख शांति और सिर्फ शांति से रहना होगा, इसलिए तुम्हें ही आज से रास्ते से गुजरने वाले यात्रियो की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंप रही हूँ, सभी को मासिक आय दी जायेगी और यदि किसीने फिर से राहगीरों को लूटने का दुस्साहस दिखाया तो उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करूँगी और मृत्यु दंड भी दिया जायेगा “।
देवी के मुख से निकली इस बात पर भील मुखिया भयभीत होकर कुछ नहीं बोल सका और भील का मुखिया अब सही मार्ग पर आने के लिये अन्य लोगो को प्रेरित करने लगा। देवी के इस कार्य से मालवा राज्य मे लूटमार से प्रजाजनों को मुक्ति मिल गई ।
भीलो की जीविका की इतनी सुंदर व्यवस्था करने की वजह से भीलो के जीवन भी सुख- समृद्धि से भरपूर हो गए तथा भील भी अब देवी के सहयोग से स्वाभिमानी जीवन व्यतीत करने लगे।
एक बार विदिशा जिले के सिरोंज मे एक धनवान सेठ रहता था, वह नि:संतान था इस चिंता मे एक दिन उसकी मृत्यु हो गयी । सेठ के निधन के बाद विधवा पत्नि के पास संपत्ति का हक जाना चाहिये था किन्तु रिश्तेदार लोग उस महिला को बहुत तंग करने लगे एवं सिरोंज के अधिकारी को भी इसकी भनक लगी तो वह विधवा महिला की परेशानी का फायदा उठाने को आतुर था उसने तुरंत विधवा महिला के नाम संदेश भिजवाया - “तुम एक विधवा स्त्री हो और तुम्हारा कोई उत्तराधिकारी भी नहीं हैं इसलिए तुम्हें यह धन रखने का कोई अधिकार नहीं हैं, तुम्हारी सारी संपत्ति छिन ली जायेगी और यदि तुम इस संपत्ति को रखना चाहती हो तो मुझे तीन लाख रुपये देदो तब मैं सम्पूर्ण दौलत का अधिकार मैं तुम्हारे नाम करवा दूँगा।” उस विधवा स्त्री के जीवन से अभी-अभी पति का साया उठा, रिश्तेदार भी साथ नहीं, अधिकारी भी रिश्वत की मांग कर रहा था ऐसी स्थिति मे उस विधवा महिला ने तीन लाख रुपये देने के लिये “हाँ” कर दिया, क्योकि वह सामान्य परिवार की स्त्री थी राज दरबारी कार्य से भी भयभीत व अंजान थी। विधवा स्त्री ने यह बात अपने एक शुभचिंतक को बतायी तब उसने विधवा महिला से कहां की तुम महेश्वर मे अहिल्यादेवी से प्रत्यक्ष मिलकर अपना पक्ष रखो या फिर किसी बच्चे को गौद लेकर उसे धन का अधिकारी बना दो। विधवा महिला ने शुभचिंतक की बात के कारण उसी समय वह सिरोंज से महेश्वर की ओर प्रस्थान कर गयी, महेश्वर के दरबार मे जाकर विधवा महिला ने अहिल्यादेवी के समक्ष यह सारी कहानी सुनायी। सिरोंज के अधिकारी के रिश्वत की मांग से देवी बहुत क्रोधित हो उठी, देवी ने तुरंत ही उस भ्रष्ट अधिकारी को पद से हटाने की घोषणा कर दी, यह बहुत बड़ा निर्णय था किन्तु एक शासनकर्ता के रूप मे वे किसी को परेशान नहीं देख सकती थी और ऐसे बेइमानी चोरों को कड़ी से कड़ी सजा देती थी।
निरंतर….
संदर्भ - वीरांगना अहिल्याबाई
लेखक - राजेन्द्र पांडे
संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम
हर हर महादेव
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