पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर त्रि शताब्दी वर्ष
शृंखला 16 =
वीरांगना अहिल्याबाई होलकर भाग एक
शासक कितना ही धर्म परायण क्यो न हो जब प्रजा की शांति भंग करने के लिये विरोधी दुस्साहस दिखाते हैं तो राजा को युद्ध से टकराना ही पड़ता हैं और युद्ध भूमि मे उतरना ही पड़ता हैं। जब मल्हारराव होलकर मालवा के सूबेदार के रूप मे इंदौर आए तब मल्हारराव के शौर्य की कीर्ति अन्य राज्यो मे भी फैलने लगी ओर आवश्यकता पढ़ने पर अन्य राज्यो के राजा भी मल्हारराव से सहायता मांगते थे।
मालवा की सीमा राजस्थान से मिलती थी तब जयपुर नरेश जयसिंह के दो पुत्र थे माधवसिंह और ईश्वरसिंह , दोनों भाइयो मे आपसी सत्ता संघर्ष शुरू हुआ, इधर उदयपुर मे माधवसिंह को मामा ने कुछ रामपुरा के आस पास के क्षेत्र को माधवसिंह को शासन करने के लिये दे दिए थे तब ईश्वर सिंह ने मौका पाकर जयपुर की गद्दी पर बलपूर्वक अधिकार जमा लिया, तब माधवसिंह के मल्हारराव से अच्छे संबंध हुआ करते थे इसलिए वे मल्हाराव होलकर से मिले तथा उनके साथ हुवे इस अन्याय के लिए सहायता मांगी तब मल्हारराव ने माधवसिंह को सहायता का आश्वासन दिया । मल्हारराव ने माधवसिंह का सहयोग करते हुवे ईश्वरसिंह को चिट्ठी लिखी आप राज गद्दी माधवसिंह को सौंप दीजिये या फिर युद्ध के लिये तैयार रहिये । मल्हारराव के इस पत्र के भय से ईश्वरसिंह ने आत्महत्या कर ली एवं माधवसिंह को अपना अधिकार पुन: मिल गया, माधवसिंह ने मल्हारराव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मल्हारराव
को 64 लाख रुपये भेंट मे दिये तथा उनके मामा संग्रामसिंह से भेंट में मिला रामपुरा का क्षेत्र भी मल्हारराव को भेंट मे दे दिया। मल्हारराव होलकर सिर्फ़ मालवा के सूबेदार ही नहीं थे, वे मराठों के एक पराक्रमी योद्धा थे, माधवसिंह के ममेरे भाई को यह पसंद नहीं आया की उनसे पूछे बिना ही माधवसिंह ने मराठो को कृतज्ञता व्यक्त करने के लिये रामपुरा का क्षेत्र दे दिया किन्तु मल्हारराव की कीर्ति के कारण उस वक्त सभी शांत रहे परंतु रामपुरा वालो के हृदय मे फिर से रामपुरा प्राप्त करने की लालसा टिकी रही इसलिये मल्हारराव की मृत्यु के बाद जब शासन प्रशासन व्यवस्था पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी के हाथ मे आयी तब रामपुरा की गद्दी हड़पने वाले को लगा की रामपुरा पर विजय पाने का यह सही अवसर हैं क्योकि उनका अनुमान था की एक अबला महिला को तो वे आसानी से ही हरा देंगे परंतु वे अहिल्यादेवी की कौशल तथा पराक्रम शक्ति से परिचित नहीं थे। अहिल्यादेवी युद्ध लड़ने की पक्षधर नहीं थी इसलिये उन्होंने रामपुरा वालो को कहां: “यह मेरे श्वसुर मल्हारराव को उपहार में मिला क्षेत्र हैं इसका संरक्षण करना मेरी जिम्मेदारी हैं, आप यहां से अपनी नज़र हटा लीजिए वरना युद्ध के लिये तैयार रहिए”। रामपुरा वालो ने अहिल्यादेवी की इस बात को स्वीकार नहीं किया। मल्हारराव होलकर के निधन के बाद सन 1771 मे होलकर राज्य के सेनापति तुकोजीराव दक्षिण मे थे तब रामपुरा वालो ने अवसर का लाभ उठाकर होलकर राज्य पर हमला किया था तब अहिल्या बाई ने अपनी सैना के साथ उन पर चढ़ाई की तथा स्वयं हाथ में तलवार लेकर उनसे लड़ रही थी । अहिल्यादेवी की तलवार से रामपुरा वालो का बहुत ख़ून बहा फिर उन्होंने अहिल्यादेवी के सामने घुटने टेक दिये एवं उन्हें अहिल्यादेवी से पराजय का सामना करना पड़ा
निरंतर…..
संदर्भ - वीरांगना अहिल्याबाई
लेखक - राजेन्द्र पांडे
संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम
प्रस्तुति --अशोक जी पोरवाल
🔱हर हर महादेव🔱
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