पुण्य श्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर त्रि शताब्दी वर्ष
श्रृंखला 12 = पुत्र मालेराव का राजतिलक एवं निधन
श्वसुर की मृत्यु के पश्चात देवी अहिल्याबाई के जीवन को पुत्र मालेराव और पुत्री मुक्ताबाई का सहारा था। मालेराव बचपन से शरारती बालक थे, दोस्तों के साथ मटरगश्ती करना तथा दिन रात खेलकूद मे ही वे मंत्रमुग्ध रहते थे, देवी अहिल्याबाई ने मालेराव को सही दिशा मे लाने के कई प्रयास किये किंतु वे विफल रहे और श्वसुर का निधन भी हो चुका था। मालवा प्रजा की सेवा का निर्वहन भी होलकर परिवार पर था । देवी अहिल्याबाई ने विचार किया की मालेराव का राजतिलक करवा देना चाहिये फिर उसकी राज काज के कार्य मे रुचि बढ़ेगी और वे अपने कार्य-क्षेत्र मे व्यस्त भी रहेंगे । देवी अहिल्याबाई ने 23 अगस्त 1766 को मालेराव का राज्याभिषेक कराया। पेशवा को मालेराव की योग्यता की जानकारी थी इसलिये उन्होंने मालेराव की औपचारिक नियुक्ति ही की थी किन्तु राज-पाट के कार्य जैसे :-सुरक्षा नीति, जल व्यवस्था व शासन व्यवस्था की ज़िम्मेदारी देवी अहिल्याबाई के हाथों मे दिये थे। मालेराव के राजतिलक के बाद भी उनके व्यक्तित्व व दिनचर्या मे परिवर्तन नहीं आये बल्कि वे सत्ता के लालच मे और अधिक द्विग्भ्रमित होते गये, मालेराव की इस दुर्दशा से देवी अहिल्याबाई बहुत चिंतित हो गयी थी। देवी अहिल्याबाई शंकर जी की बहुत बड़ी भक्त थी इसलिये वे शंकर जी से अपने द्विग्भ्रमित पुत्र के लिये प्रार्थना करने लगी तथा वे मालेराव को समझाने लगी कि बेटा तुम्हारे दादाजी और पिताजी ने इस राज्य की सेवा व विस्तार मे जो कीर्ति स्थापित की हैं ऐसा ही कार्य तुम्हें करना चाहिये। एक बार मालेराव ने निरपराध व्यक्ति की हत्या की थी, उसकी हत्या के बाद मालेराव बीमार पड़ गये थे, जिस व्यक्ति की हत्या मालेराव के हाथों से हुयी थी वह भूत - प्रेत बनकर मालेराव की जान लेने के पीछे पड़ गया था। देवी अहिल्याबाई ने मालेराव का बहुत इलाज करवाया, पूजन - पाठ की, अपने पुत्र के इस अपराध के लिये बह कई बार ईश्वर से माफ़ी मांगती थी किन्तु 23 मार्च 1767 को मालेराव की मृत्यु हो गयी। मालेराव के आकस्मिक निधन से देवी अहिल्याबाई के जीवन मे भूंचाल आ गया, होलकर राज्य के इकलोते वारिस की मृत्यु से पूरे राज्य मे शौक़ छा गया था। देवी अहिल्याबाई ने विधि - विधान से मालेराव का अंतिम संस्कार करवाया तथा मालेराव की दो पत्नि भी सती हो गयी।
देवी अहिल्याबाई के इकलोते पुत्र के निधन से उनके दुःख की सीमा नहीं रही, उनका सांसारिक जीवन से मोह ख़त्म हो गया।
मालेराव की मृत्यु के बाद देवी अहिल्याबाई का मन सब कुछ त्याग करके तीर्थक्षेत्र मे जाकर भगवत् भजन करने का निश्चय कर चुका था किन्तु अपने श्वसुर मल्हारराव को दिया “मालवा की प्रजा की सेवा” का वचन उन्हें याद आया और दूसरे ही क्षण अपने विवेक से उन्होंने अपने मन पर नियंत्रण किया।
संदर्भ - लोकमाता अहिल्याबाई होलकर
लेखक - अरविंद जावलेकर
संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम
प्रस्तुति-- अशोक जी पोरवाल
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