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हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 26 = शिवाजी महाराज के सहयोगी जीवा महालाहिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 26 = शिवाजी महाराज के सहयोगी जीवा महालाहिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 26 = शिवाजी महाराज के सहयोगी जीवा महाला

 हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 26 = शिवाजी महाराज के सहयोगी जीवा महाला

भाग एक


शिवाजी राजे ने अपने योजना के अनुसार अफजलखान से मुलाकात करना तय कियाl खतरे को ध्यान में रखते हुए माँसाहेब, साईबाईसाहेब व पुत्र संभाजी को राजगढ़ पर ही रखकर स्वयं प्रतापगढ़ जाने का निर्णय राजे ने लिया क्योंकि वह चाहते थे कि खान से उनकी भेंट जावळी में हो, जावळी के जंगल में हो एवं वहाँ से प्रतापगढ़ नजदीक है l

माँसाहेब, नेताजी पालकर, मोरोपंत,

नीलोपंत, रघुनाथपंत,गोमाजी नाईक,

कृष्णाजी नाईक, प्रभाकर भट इन सबको बिठाकर महाराज ने समझाया

"माँसाहेब, संभाजी राजे व उनकी माँसाहेब आपके सबके साथ राजगढ़ पर रहेंगेl अफजलखान को मारकर विजय प्राप्त हुई तो यह स्वराज्य आगे ले जाकर उसमें वृद्धि करने के लिए मैं हूँl परन्तु अगर युद्ध में मेरी प्राणहानि हुई तो राज्य संभाजी को देकर माँसाहेब की आज्ञा से शासन चलानाl "यह सुनकर माँसाहेब सहित सबकी आँखों में आँसू आ गए lमहाराज एक अत्यंत कठिन, भीषण ऐसे प्रसंग का सामना करनेवाले थे-

खान से प्रत्यक्ष भेंट की योजना थी lराजे को आशीर्वाद देते समय माँसाहेब ने याद दिलाया वह प्रसंगजब शहाजीराजे को जंजीरों से बाँधकर बीजापुर में घुमाया था व याद दिलाया संभाजी का बलिदान-धोके से दी गयी मृत्यु lकठिन प्रसंग का सामना करना है यह ध्यान में रखकर महाराज एवं उनके साथी योजना बना रहे थे lखान की ओर से कृष्णाजी भास्कर नामक वकील खान का सन्देश लेकर

प्रतापगढ़ पर आया थाl उसी प्रकार महाराज ने पंत गोपीनाथ बोकील को अपना पक्ष रखने के लिए खान के पास वाई भेजाl पंत बुद्धिमान, धूर्त,

भरोसा करने लायक एवं अनुभवी थेlसभ्य भी थे एवं धूर्त भी थे lपंत जब खान से मिलकर आये तब उन्होंने राजे से कहा,"खान दुष्ट बुद्धि का है, धोखा देकर आपको मारने की उसकी योजना है अथवा कम से कम कैद करके बीजापुर ले जाने की योजना हैl राजे मैं खान से बात करके उसे जावळी लेकर आता हूँl आप हिम्मत से उसे अकेले में मारकर, सेना लूटकर सम्पूर्ण राज्य पर  अधिपत्य कर लेनाl"यह सलाह पंत नेदीl इसको ध्यान में रखकर ही अब योजना बनने लगी l

भेंट का स्थान निश्चित हुआ-जावळी के जंगल में खाईl यह योजना का पहला सोपान था l

खान का पराक्रम सुनकर राजे डर गए है, उनके मन में आपके प्रति सम्मान हैl परन्तु आपकी छावनी में आने के लिए उन्हें डर लगता है अतः आप ही दुर्ग के नीचे राजे से मिलने व अकेले आईयेl यह योजना का दूसरा

सोपान था l

पंत ने खान को बताया, "आपकी सेना को छावनी में ही रखनाl आप पालकी में बैठकर नियत स्थान पर आनाl आपके साथ दो-तीन सेवक हो

सकते हैंl भेंट हेतु जो शामियाना तैयार किया गया है उसमें आकर आप रुकनाl आपके साथ दस शूरनेकजात व सुसज्ज हशम आपकी सुरक्षा के लिए साथ लाना परन्तु उनको कुछ दूरी पर रखनाl" यह योजना का तीसरा सोपान था l

खान के साथ हिरे-मोती बेचनेवालेव्यापारी भी थेl पंत ने खान को बताया, "आपके साथ आये हुए सरदारों को उपहार स्वरुप देने के लिए राजे हिरे-मोती खरीदना चाहते हैl" मेहमान नवाजी की यह योजना सुनकर खान निहायत खुश हुआ l

उसने सभी व्यापारियों को पंत के साथ सारा माल लेकर प्रतापगढ़ भेज

दियाl इस प्रकार से खान के साथ लाई गई सारी संपत्ति अपने आप प्रतापगढ़ पहुँच गयीl यह योजना का चौथा सोपान था l

खान एवं महाराज की भेंट के लिए जो स्थान निश्चित किया गया था वह प्रतापगढ़ आधा चढ़कर जाने पर एक हिस्सा समतल था वहाँ शामियाना बनाया गयाl यह स्थान खान की छावनी से दिखाई नहीं दे रहा था तथा थोड़ा दुर्गम भी थाl यह स्थान इसलिए निश्चित किया गया था क्योंकिअगर खान धोखा करता है तो उसकी सेना वहाँ तक आसानी से नहीं पहुँच पाएँ, इसकी विशेष सावधानी रखी गयी थीl यह योजना का पाँचवा सोपान था l

9 नवम्बर 1659 की रात थीl गोपीनाथ पंत, मोरोपंत, इंगळे, दहातोंडे,रांझेकर, देवकान्ते, कनखरे,

बेलदार, बहिर्जी, कान्होजी, जीवा महाला, गायकवाड, तान्हाजी, येसाजी कौन और कितने? महाराज सबके साथ बैठकर योजना को अंतिम स्वरुप दे रहे थेl प्रत्येक व्यक्ति पर जिम्मेदारी थी एवं तय था उसको वही कार्य करना है जो उसको दिया गया हैl इससे गफलत होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है l

महाराज ने सबको बताया, "सब अपने-अपने हथियारों से सज्जित रहना परन्तु पेड़ों के सहारे, पेड़ों के ऊपर छुपकर रहनाl अगर खान ने कोई धोखा करने का प्रयत्न किया,बेईमानी की तो तीन तोपों का संकेत मिलेगा तथा फिर आप खान की पूरी फ़ौज को काट डालनाl "सबके मन में निष्ठा थी, चिंता थी, क्रोध था, प्रतिशोध था एवं महाराज के प्रति प्रेम थाl महाराज के सभी साथी वीरश्री से ओतप्रोत थेl महाराज ने प्रत्येक को एक-एक नियत स्थान बतायाl काम एक ही था-मारो, काटो, केवल स्थान अलग-अलग थेl इसमें भी महाराज धर्मानुसार चलने के लिए कहना नहीं भूले-"जो हथियार रख देगा उसे मारना नहीं परन्तु जिस हाथ में हथियार हो उसे छोड़ना नहींl "सभी अपने-अपने सैनिकों को लेकर जहाँ स्थान मिला वहाँ गए-पेड़ों के झुरमुट,

पेड़ों के तनों की खोखली जगहों में,

लता-बेलों की जालियों में, गड्डों में -आठ घंटे चुपचाप तीक्ष्ण नज़र से शत्रु को हुल देते हुए एक स्थान पर बैठना था, एक की भी गलती से बाजी पलटने की सम्भावना थीl यह योजना का छटा सोपान था l

सन्दर्भ -- राजा शिवछत्रपति

लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे

संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम

प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल

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