दीवाल पोत दूंगा

Responsive Advertisement

Ticker

6/recent/ticker-posts

शिवाजी के सहयोगी कान्होजी जेधे व जीवा महाला भाग एक


हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 22 =  शिवाजी के सहयोगी कान्होजी जेधे व जीवा महाला भाग एक



शिवाजी महाराज ने स्वराज्य को शक्तिशाली बनाने के लिए धीरे - धीरे आदिलशाही दुर्ग को अपने अधिपत्य में लाने का कार्य निरंतर जारी रखाl इन घटनाओं से आदिलशाही दरबार चिंताग्रस्त हुआl अलि आदिलशाह तख़्त पर बैठा था परन्तु शासन देखती थी उसकी माँ -उलिया बेगम बड़ी साहेबा ।संख्यात्मक रूप से देखा जाये तो आदिलशाह के पास अफाट सेना, तोपे, हाथी, घोड़े सब था परन्तु फिर भी शिवाजी इन सबसे डरता कैसे नहीं है? यह प्रश्न उन्हें सताता था l

सबसे पहले बड़ी साहेबा ने एक पत्र शहाजी राजे को भेजा, "शिवाजी को समझाओ, अन्यथा इस बगावत का परिणाम ठीक नहीं होगाl " यह पत्र पढ़कर शहाजीराजे खुश हुए क्योंकि स्वराज्य निर्माण यह उनका भी स्वप्न थाl उन्होंने पत्र का उत्तर भेजा, "शिवाजी मेरी बात नहीं मानता है, आप स्वयं ही इस समस्या को सुलझाइयेl "यह उत्तर पढ़कर बड़ी साहेबा ने सोचा पिता-पुत्र दोनों नमकहराम हैंl परन्तु पहले शिवाजी को रोकना होगा-वह बड़ी धूर्त थीl

स्वराज्य में शिवाजी महाराज जीते हुए दुर्गों को सुरक्षित बना रहे थे एवं अपना सामर्थ्य भी बढ़ा रहे थे l

शिवाजी को नकोचने चबवाने के विचार से बड़ी साहेबा ने दरबार के सभी सरदारों को बुलायाl दरबार के सामने प्रश्न था कौन शिवाजी को पकड़कर लाएगा अथवा खत्म करेगा? बड़ी साहेबा ने पूछा,"कौन पकडकर लाएगा शिवाजी को?"दरबार में सन्नाटा था व इतने में अफजलखान खड़ा हुआ तथा उसने चुनौती स्वीकार कर लीl दरबार में उत्साह का वातावरण था, अलि आदिलशहा ने अफजलखान को खिलत व घोड़ा देकर उसका सम्मान कियाl अफजलखान शिवाजी को केवल बगावतखोर समझ रहा था l

बीजापूर में तैयारी जोरों से शुरू हुईl बहुत बड़ा खजाना व उसके साथ बारह हजार का अश्वदल, दस हजार की थलसेना, बारह सौ ऊँट, पैसट हाथी, छोटी-बड़ी तोपे, नौकर-चाकर, पालकियाँ, बाजार में काम करनेवाले नौकर, यह सब देकर अफजलखान को मुहीम पर भेजा गया l

मुहीम पर भेजने के पहले अलि आदिलशहा ने अफजलखान से भेंट की एवं बताया,"तुम काफीरों के सच्चे दुश्मन होl विजयनगर के रामराजा के बशिंदों को तुमने ही परास्त किया थाl तुम्हारे होते हुए शहाजी का छोकरा शाही सल्तनत के खिलाफ बगावत कैसे कर सकता हैl शिवाजी तो इस्लाम का खात्मा करने पर तुला है l

दक्खन की पहाड़ियों के सहारे उसने शाही दौलत लूट ली हैl क्या वह शाही सल्तनत को मिटा देगा? उसको कैद करने की हिम्मत तुम्हारे सिवा और किसी में नहीं हैl " इस प्रशंसा से अफजलखान की हिम्मत और बढ़ गयी तथा  उसने कहा, "मैं शिवाजी को कैद करके आपके सामने हाजिर करुँगाl यह सुनकर आदिलशहा ने अपनी तीखी कटार जिसका म्यान रत्नजडित था अफजलखान को दी l

बड़ी साहेबा ने सलाह दी, बहाना बनाना,"हमारी फ़ौज नाचिज है, हम दोस्ती करना चाहते हैl "यह कहकर उसे धोखा देना l

सन्दर्भ -- राजा शिवछत्रपति

लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे

संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम

अशोक जी पोरवाल क्षेत्र स प्र प्र:


 हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 23 = शिवाजी के सहयोगी कान्होजी जेधे भाग दो 

अफजलखान के साथ बहुत सरदार सेना में शामिल थेl उसका बेटा फाज़लखान भी थाl वकील कृष्णाजी भास्कर कुलकर्णी थेl रास्ते में सेना में ओर सरदार एवं सैनिक इसमें शामिल होनेवाले थेl जो सरदार शिवाजी महाराज के साथ थे उनको अपनी तरफ करने के लिए दरबार की ओर से कडक भाषा में दहशतभरे पत्र भेजे गए l

अफजलखान के मन में भोसले परिवार के प्रति बहुत नफ़रत थीl अपने स्वभाव के अनुसार उसने योजना बनाईl जाते समय रास्ते में सर्वनाश करते हुए ही जाना हैl तीर्थक्षेत्र व मंदिर ध्वस्त करने हैं l

तुळजापुर, पंढरपुर क्षेत्र पर आदिलशाह का अधिपत्य थाl खान का पहला निशाना था - तुळजापुरl वह स्वयं को 'बुतकिशन' व 'कुफ्रशिकन'

कहलवाता था अर्थात मुर्तियाँ व मूर्ति-

पूजकों का नाश करने वालाl वह राक्षसी प्रवृत्ति का, धूर्त एवं धोकेबाज था lसन 1638 से  1643 तक शहाजीराजे एवं अफजलखान ने रणदुल्ला-खान के सेनापतित्व में आदिलशाही

दरबार में कार्य किया थाl रणदुल्ला-खान ने बैंगलौर शहर शहाजीराजे को पुरस्कार स्वरुप दिया थाl रणदुल्ला-खान एक काफिर से इतना प्रेम करता है यह बात अफजलखान को गुस्सा दिलाती थी तथा इसका प्रतिशोध

लेने का एक भी अवसर अफजलखान छोड़ता नहीं थाl रणदुल्ला-खान के मृत्यु के बाद मुस्तफाखान व बाजी घोरपडे ने धोखे से शहाजीराजेको कैद किया था एवं अफजलखान ने

जंजीरों सहित राजे को बीजापुर में अपमानित करने के लिए घुमाया थाl

इस अपमान का प्रतिशोध शहाजी राजे व जिजाबाई लेना चाहते थे l

शिवाजीराजे के बड़े भाई संभाजीराजेअपने पिता के साथ बैंगलौर में रहते थेl कर्नाटक में अपने पिता के साथ युद्ध में भाग भी लेते थेl सन 1656 में आदिलशाह ने कनकगिरी का दुर्ग काबिज करने की मुहीम में अफजल-खान को भेजा एवं इसमें संभाजीराजे भी थेl इस मुहीम में एक दिन खान ने

संभाजीराजे को कोई सैनिकी सहायता नहीं भेजी, यह उसकी धूर्त

चाल थीl इस युद्ध में संभाजीराजे का

बलिदान हुआl यह बात भी शहाजी-राजे तथा जिजाबाई के मन में घर कर गयी lबीजापुर के अफजलपुर प्रभाग में एक शीलालेख में वह स्वयं का उल्लेख 'कातिले मुतमर्रिदान व काफ़िरान, शिकंदए बुनियादे बुतान'

अर्थात काफिर एवं बगावतखोरों की कत्ल करनेवाला तथा मूर्तियों के पैरउखाड़नेवाला ऐसा किया थाl एक और शिलालेख में वह स्वयं के लिएलिखता है 'दीन दार कुफ्रशिकन!दीन

दार बुतशिकन!'अर्थात धर्म का सेवक व काफिरों को तोड़नेवाला!

 एवं मुर्तियाँ तोड़नेवाला l

कर्नाटक के शिरेपट्टणम में कस्तुरी-रंग नाम का राजा राज्य करता था, उसे युद्ध में अफजलखान ने ललकारा, फिर मिलने बुलाया व धोखे से उसे मार दिया था l

खान बहुत क्रूर था, दरबार एवं धर्म के प्रति एकनिष्ठ था, महत्वकांक्षी थाl हाथ में लिए कार्य में सफलता पाने के लिए किसी भी मार्ग का अवलम्ब करता था l निरन्तर

संदर्भ -- राजा शिवछत्रपति

लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे

संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम

अशोक जी पोरवाल क्षेत्र स प्र प्र: 


हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 24 = शिवाजी के सहयोगी कान्होजी जेथे भाग तीन


अफजल खान मन में सोच रहा था, शिवा जी को क्रोध दिलाकर खुले मैदान में युद्धहेतु लाया जाये तो पकड़ना आसान होगाl उसने तुळजापुर मंदिर में देवी की मूर्ति को खंडित कर उसके सामने एक गाय काटीl दुर्भाग्य की बात है, उस समय उसकी सेना में कुछ मराठा सरदार भी थे पर स्वार्थ के सामने इस घटना का उनपर कोई असर नहीं हुआl इसके बाद खान पंढरपुर आयाउसने मंदिर ध्वस्त किया परन्तु किसी की चतुराई से विट्ठल-रखुमाई की मूर्ति बच गयी lशिवाजीराजे व जिजाबाई का ह्रदय इन खबरों से विदिर्ण हुआl परन्तु संयम से काम लेना आवश्यक था अन्यथा स्वराज्य नष्ट होने का खतराथाl अतः शिवाजीराजे राजगढ़ पर चुपचाप बैठे रहेl पर उनका मन कहता रहा कि खान से सामना तो करना होगा परन्तु साथियों ने ऐसा नकरने के लिए समझाया lमहाराज सोचते थे निशुम्भ असुर जैसेअफजलखान ने तुळजाभवानी का अपमान किया, खान धर्म का नाश कर रहा हैl

यवन पृथ्वी को आंदोलित कर रहे हैंl

राम ने रावण का व कृष्ण ने कंस का वध कर धर्मसंस्थापना की थीं अतः मेरा भी यह कर्तव्य है कि मैं खान का

नाश करूँ व जनता पर हो रहे अत्याचारों का अंत करूँl खान के साथ सुलह अर्थात प्राणनाश, युद्ध में

जीत हुई तो उत्तम अथवा बलिदान हुआ तो कीर्ति प्राप्त होगी l

शिवाजीराजे क्रोधित हो इसलिए खान ने एक और प्रयास कियाl राजेकी पत्नी साईबाई के भाई बजाजीनिम्बाळकर को बंदी बनाया एवं उसकोहाथी के पैरों तले कुचलवाने की योजना बनायीl परन्तु गुप्तहेर ने यहखबर राजे को दी एवं राजे ने खान की सेना में पांढरे नाईक को पत्र लिखकरनिवेदन किया कि बजाजी को छुड़वाकर मुक्त करने का प्रयास करेंl

देखा जाये तो बजाजी आदिलशाही

दरबार की फ़ौज में थेl परन्तु रिश्ते का महत्व देखकर महाराज ने बजाजी को मुक्त करवायाl अफजलखान कीयह योजना भी असफल रहीl अब खान वाई की ओर आया l

मावळ प्रान्त के अधिकतर देशमुख जैसे कान्होजी जेधे, मरळ,बांदल, शिळमकर, धुमाळ, पासलकर आदि

स्वराज्य के ध्वज के नीचे महाराज के

साथ एकत्रित हुए थेl इनके साथ

देशपांडे, पाटिल पटवारी,रामोशी भी

थेl बारह मावळ, घाटमाथा, बारह

बंदरगाह, कोंकण सब स्वराज्य के साथ थेl इसके पहले ये सब बादशाहकी चाकरी करते थेl अब बादशाह ने

एक नयी चाल चली, उसने एवं अफजलखान ने कुछ लालच देने

वाले व कुछ दहशत भरे पत्र सभी

देशमुखों को भेजे l निरन्तर

सन्दर्भ --राजा शिवछत्रपति

लेखक --महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे

संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम

[अशोक जी पोरवाल क्षेत्र स प्र प्र:

 हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 25 = शिवाजी महाराज के सहयोगी

कान्होजी जेधे भाग चार

आदिलशाह दरबार से कान्होजी को भी पत्र आया ।कान्होजी जेधे के पास रोहिडखोरा

भाग की देशमुखी वंशपरंपरागत थीl

भोर गाँव की दक्षिण दिशा में कारीनामक गाँव थाl उसमें कान्होजी का बड़ा घर थाl 100 परिवारों का गाँव था कोरीl कान्होजी के पाँच बेटे थे -बाजी, चांदजी, नाईकजी, मताजी वशिवजी कान्होजी आदिलशाही में रणदुल्ला-खान की चाकरी में थेl तब उनके मन में विचार आता था हम तो बादशाह की चाकरी करते है यह कोई अच्छी बात नहीं हैl उस समय शहाजीराजे भी रणदुल्लाखान के साथ थेl कान्होजी ने शहाजीराजे को विनती की,आप मुझे अपने पास रख लो l शहाजीराजे ने रणदुल्लाखान को निवेदन किया कि कान्होजी को मुझेदे दीजियेl खान ने भी राजे की बात मानी एवं नवंबर 1636 से कान्होजी राजे के साथ थेl जब मुस्तफाखान ने

शहाजीराजे को कैद किया तब कान्होजी को भी कैद कियाl सन 1649 में आदिलशाह ने शहाजीराजे को कैद से मुक्त किया तब कान्होजी को भी मुक्त कियाl उसके बाद शहाजीराजे ने कान्होजी को शिवबा एवं जिजाबाई के लिए पुणे भेजा lबारह मावळ के सभी देशमुख कान्होजी का बहुत सम्मान करते थे तथा उनके कहने में थेl दादोजी कोंडदेवएवं महाराज ने जैसे बताया था कि अपने शस्त्र अपने लोगों पर नहीं चलाने है, यह बात मन में गांठ बांधकर सब स्वराज्य की सेवा में थेl

बादशाह द्वारा भेजा फरमान सभी देशमुखों को मिला - दिनांक 16जून1659----"शिवाजी ने अविचार एवं अज्ञानता से कोंकण प्रान्त के मुस्लिमों को परेशान कर, उनको लूटकर बादशाह के कई दुर्गों पर अपना अधिपत्य जमाया हैl अतः उसकी हरकतों को रोकने के लिए अफजलखान को उस प्रान्त का सुबेदार नियुक्त किया हैl तुम भी अफजलखान का हुक्म मानकर शिवाजी को परास्त कर उसे समूल समाप्त करोंl शिवाजी के पास जो लोग है उन्हें आश्रय न देते हुए उनको भी समाप्त कर आदिलशाही का कल्याण हो ऐसे प्रयत्न करोंl अफजलखान की सिफारिश के अनुसार तुम्हारी सर्फराजी की जाएगीउनके हुक्म की तामील करों, अगर ऐसा नहीं हुआ तो परिणाम बुरे होंगे यह ध्यान रखना व बादशाही फरमान के अनुसार ही करना l "

रणदुल्लाखान के साथ काम करते समय कान्होजी ने अफजलखान को नजदीक से देखा थाl वह कसाई प्रवृत्ति का थाl कान्होजी जानते थे अब खान सम्पूर्ण मावळ प्रान्त का सर्वनाश करेगाl किसीको जीवित नहीं छोड़ेगाl जो भी स्वराज्य के हितैषी है उनके घर-परिवार को श्मशान बना देगा lपत्र का अन्वयार्थ यह था कि जीवित रहना हो तो खान के पैर पकड़ो, दरबार की सेवा करों, पत्र द्वारा तुम्हें एक अवसर दिया जा रहा है भूल सुधारने काl अन्यथा मृत्यु निश्चित हैl

कान्होजी जानते थे यह पत्र केवल उन्हें नहीं भेजा गया है, अन्य देशमुखों को भी भेजा गया होगा l

कान्होजी ने फरमान लिया व अपने पाँचों बेटों को साथ लेकर कान्होजी राजगढ़ गए जहाँ आसमान में भगवा

ध्वज लहरा रहा थाl महाराज उस समय राजगड़ के पास शिवापुर में थेlअफजलखान की सेना जो अत्याचार कर रही थी उसकी खबरें महाराज के पास आ रही थीl सब चिंतित थे l

कान्होजी ने दरबारी फरमान महाराज के सामने रखाl तब महाराज ने बताया खंडोजी खोपडे तो फरमान पढ़कर खान की छावनी में चले गएl

यह बात सुनकर कान्होजी को गहरा धक्का लगाl मसूर के जगदाळे देशमुख भी वहाँ शामिल हुए l

महाराज ने कान्होजी से कहा, "आप भी वही जाइये अन्यथा आपकी जागीर तो जाएगी ही एवं जान को खतरा रहेगा l "

यह शब्द सुनकर कान्होजी की आँखों में आँसू आ गए क्योंकि नमकहरामी जेधों के खून में नहीं थीl केवल जागीर तथा परिवार की सुरक्षा के लिए स्वराज्य के विचार से नमकहरामी संभव नहीं हैl विगत 23 सालों से कान्होजी भोसले परिवार के साथ थे, उनका ईमान स्वराज्य के लिए थाl बादशाह हजारों जागीरों का लालच भी दे तो भी स्वराज्य को छोड़कर वहाँ जाना कतई सम्भव नहीं हैl आँखों में आँसूओं के साथ कान्होजी के मन में विचार आया, जागीर तो क्या निर्वंश हुआ तो भी कोई बात नहीं परन्तु रहेंगे तो स्वराज्य के लिए महाराज के साथ l

"शहाजीराजे ने कर्नाटक से आपके लिए मुझे यहाँ भेजा है, यह ईमान आख़री साँस तक रहेगाl "कान्होजी की यह बात सुनकर शिवाजी महाराज ने फिर एक बार जागीर की याद दिलायीl उसी क्षण कान्होजी ने पास में रखा पानी का कलश उठाया एवं वे माँसाहेब व शिवाजी के पास गए तथा कलश में का पानी अपने हाथ में लेकर नीचे जमीन पर डाल दिया व कहा स्वराज्य की खातिर यह पानी छोड़ दिया ।ऐसे निष्ठावान सहयोगियों के कारण ही हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना हुईl स्वार्थ के लिए जगह ही नहीं थी तो बादशाह द्वारा दी गई लालच निष्काम हुई एवं जो स्वराज्य के थे वे सभी महाराज के साथ थे तथा जो स्वराज्य के नहीं थे वे सुल्तान का फरमान देखकर चले गए lमहाराज जानते थे ऐसे फरमान सभी देशमुखों के नाम आये होंगेl महाराज ने एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी कान्होजी के कंधों पर दीl सभी देशमुखों को इकठ्ठा करके उन्हें स्वराज्य का महत्व क्या है यह बताकर उन्हें खान की तरफ जाने से रोकना थाl अपने कर्तव्य का पालन करते हुए, स्वराज्य के लिए जिन्होंने भी अपने प्राण न्योछावर करने की तत्परता जतायी उनके परिवारों की चिंता महाराज ने की l कान्होजी को परिवार को सुरक्षित स्थान पर तलेगांव ढमढेरे छोड़कर आने के लिए कहा कारण खान के आक्रमण के समय कुछ भी खतरा हो सकता था l

योजना के अनुसार कान्होजी ने सभी देशमुखों को निमंत्रण दिया, सब फरमान के कारण डरे हुए थे, सबने कान्होजी से पूछा, "फरमान के बारे में तुम्हारा क्या विचार है?"कान्होजी ने जवाब दिया,"हमारा ईमान स्वराज्य के प्रति हैl यह मराठा साम्राज्य है, सबने हिम्मत रखकर स्वराज्य की ही सेवा करना हैl "वीरश्री भरा यह उत्तर सुनकर सभी देशमुखों ने वही विचार किया जो कान्होजी ने किया थाl सभी देशमुख कान्होजी के साथ अपनी-अपनी सेना लेकर स्वराज्य के ध्वज के नीचे इकट्ठे हुएl बेल-रोटी की शपथ लेकर सबने अपने ईमान स्वराज्य के प्रति निष्ठा रखकर अर्पित किये l

महाराज ने अफजलखान से प्रत्यक्ष मिलने का तय किया तब सभी को जिम्मेदारी दी गयी जिसमें गुरील्ला पद्धति से युद्ध करते हुए, चारों ओर से खान की सेना को घेरकर परास्त किया, खजाना लूट लिया, हाथी-घोड़े लूट लिए जिससे स्वराज्य की संपत्ति में वृद्धि हुई l

संदर्भ - राजा शिवछत्रपति

लेखक - महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे

संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम

Prastuti Ashok Ji Porwal

Post a Comment

0 Comments