हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 27 = शिवाजी महाराज के सहयोगी जीवा महाला
भाग दो
अफजलखान को दस सैनिक रक्षा हेतु लाने की अनुमति थी वैसे ही महाराज अपने साथ कोंढाळकर, जीवा महाला,सिद्दी इब्राहिम, इंग्ले, कोंडाजी, येसाजी, गायकवाड, काटके, विसाजी, करवर व पंताजी को ले जानेवाले थे lखान के साथ भेंट के पहले पंत कोमहाराज ने आगे भेजा था ताकि खान अगर ज्यादा सैनिक साथ में लाता है तो सुरक्षा की दृष्टी से सावधानी आवश्यक थीl महाराज का अंदाजा ठीक था, खान के साथ डेढ़-दो हजारसैनिक थेl इसके बारे में पंत ने खान से पूछा, "क्या ये सभी सैनिक छावनी तक आएंगे?"खान ने जवाब में हाँ कहाl तब पंत ने बताया,"इतनी सेना
देखकर महाराज डर जाएंगे एवं फिर दुर्ग पर लौट जाएंगे, भेंट नहीं हो पाएगीl यह खतरा तो खान नहीं ले सकता था ।
महाराज डरते है, उनमें सेना के साथ मिलने की हिम्मत नहीं हैl बार-बार यह सुनकर खान की सेना निश्चिंतहुई l
महाराज ने सील (चिलखत) तथा लोहे का शिरत्राण पहना, उसके ऊपर सादेवस्त्र पहनेl म्यान में तलवार लटकाई, हाथ में बिचवा व बाघनख रख लिए lबिचवा (छोटी कटार)आस्तीन में थी
व बाघनख उँगलियों में छीपाएं lखान के शामियाने में सय्यद बंडा खान के साथ था यह खबर गुप्तचर
ने महाराज को दीl महाराज ने पंत के पास सन्देश भेजा,"खान हमारे पिता समान है, मैं तो उनका भतीजा हूँl सय्यद बंडा साथ में है, मुझे डर लग रहा हैl यह निवेदन
लेकर पंत खान के पास गएl खान नेसय्यद बंडा को थोड़ा दूर खड़ा रहने के लिए कहाl अपनी तलवार कृष्णाजी भास्कर को देकर मेरी नियत कितनी साफ है यह जताने का प्रयत्न भी खान ने कियाl सभी परिस्थितियों की खातरजमा कर फिर महाराज शामियाने में आएl उनको सामने देखकर खान मन ही मन खुश हुआ व उसने कहा,"शिवाजी आओ, मैं तुम्हे आदिलशाह के सामने पेश कर, तुझे बड़ी जागीर दिलाऊंगा, मेरे
गले लग जाओ l "
शिवाजी को गले लगाकर धोखा देनेके लिए खान ने अपने बाहु फैलाएंl क्या चाहता था खान? खान चाहता था, शहाजीराजे का, स्वराज्य का, धर्म का, सौभाग्य का, माँसाहेब के पुत्रसौख्य का ग्रास बनाकर निगलना चाहता थाl महाराज जैसे ही खान के सीने से लगे खान ने महाराज की गर्दन अपनी भुजा से दबायीl कटार से पीठ पर वार कियाl चिलखत के कारण महाराज बचे, उन्होंने बिचवा खान के पेट में घुसाया एवं साथ में
बाघनख भीl खान चिल्लाया-"दगा- दगा" एक ही क्षण में खान की आंते पेट से बाहर आयीl बाहर दोनों तरफ के राक्षकों में युद्ध प्रारम्भ हुआl आंतों को हाथ में लिए फिर भी खान "शिवाजी का कत्ल करों"चिल्ला रहा थाl इतने में खान के वकील कृष्णाजी भास्कर ने अपनी तलवार से महाराज पर वार करने का प्रयत्न किया, महाराज के मन में ब्राह्मणों के प्रति सम्मान था अतः महाराज ने उन्हें समझाने का प्रयत्न किया पर खान के प्रति निष्ठा होने के कारण कृष्णाजी सुनने की मनस्थित में नहीं थेl अंत में महाराज ने कृष्णाजी को अपनी तलवार का निशाना बनाया lचारों तरफ भागदौड़ मची थीl इतने मेंबाहर से सय्यद बंडा शामियाने में आया तथा सीधे महाराज के पास पहुँचा,यह देखकर जीवा महाला भी महाराज के पास पहुँचाl सय्यद अपनी तलवार से महाराज को मारना चाहता थाl यह बात जीवा भाँप गयाl प्रसंगावधान से, विवेक से जीवा ने वह वार अपने ऊपर लिया व चपलता से सावध होकर अपनी तलवार से सय्यद को ही काट डाला l इसलिए इतिहास कहता है-"होता जिवा म्हणून वाचला शिवा"अर्थात
"जीवा था इसलिए शिवा बचा"lइसके बाद भी खान शामियाने से बाहर आकर पालकी में बैठा, चार कहारों ने पालकी उठायीl परन्तु संभाजी कावजी ने उन चारों कहारों के पैर काट दिये व खान की गर्दन पर वार कर उसे धड़ से अलग कर दिया l
प्रतापगढ़ पर तोपों की आवाजों से खान की सेना सचेत होने के स्थान पर सोच रही थी कि भेंट के समय सम्मान में तोपों के गोले उड़ रहे हैं l महाराज की सेना सचेत थी, गर्द झाड़ियों में छुपकर बैठे स्वराज्य के शिलेदार बाहर आये एवं गनिम पर हमला कियाl शिवाजी महाराज को कैद करने के लिए खान आया है बस इस विचार से ही सब क्रोधित थे तथा वही क्रोध तलवारों से शत्रु पर आघात कर रहा थाl खान की सेना कुछ समझ पाएं उसके पहले रणयज्ञ की ज्वालाएं आसमान छू रही थीl पंत,महाराज एवं खास सैनिक प्रतापगढ़ की ओर रवाना हुए l
विकारीनाम संवत्सर में, गुरुवार 10नवम्बर 1659, दोपहर 2 बजे अफजलखान का खात्मा हुआ lखान की बची सेना जान बचाने हेतु जहाँ से रास्ता मिल रहा था भाग रही थीl महाराज की सेना के हाथ घोड़े, हाथी, ऊँट, बैल, कपड़ा, बारूद, शामियाने, तम्बू, तोपे, पालकियाँ, हथियार, जड़जवाहर अगणित संपत्तिआयी l
सुसंस्कृत राजा ने खान के शरीर को उसके धर्म के अनुसार दफनायाl उसका सिर राजगढ़ भेजा, उसे आच्छादित कर दीवार में स्थापित कर रोज भोग लगाने के लिए आज्ञा भी दी l
सन्दर्भ -- राजा शिवछत्रपति
लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे
संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम
प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल
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