हिन्दवी स्वराज्य स्थापना 350 वां वर्ष श्रृंखला 11 = शिवाजी जन्म के पूर्व की परिस्थितियां ----महाराष्ट्र का निर्माण --
'पितृदेवो भव' की उक्ति को साकार करने प्रभु श्री रामचंद्र, माता सीता व भ्राता लक्ष्मण सहित वनवास के लिए अयोध्या से निकल पड़े
व दण्डकारण्य में पहुंचे । श्रीराम के पदचाप से दंडकारण्य में संस्कृति ने प्रवेश किया, माता सीता के पदकमलों से प्रेम व लक्ष्मण के पदचाप बंधुता ने प्रवेश किया l वन तपोवन में परिवर्तित हुआ l आगे चलकर ऋषि -मुनियों के झोपडीयों के आश्रम बनें, आश्रमों से ग्राम, गाँवों से नगर यही था महाराष्ट्र l सम्राट शातवाहन शासन करता था व गोदावरी नदी से पूछता था, '' सच्चम भण गोदावरी पुव्व समुद्देण सहिआ सन्ति सालाहणकुलसरीसम जई ते कुले कुलम अथी?'' अर्थात गोदावरी बताना तुम्हारे उदगम से लेकर तुम्हारे सागर में मिलने तक के किनारे पर शातवाहन जैसे दूसरा कोई कुल है क्या? शातवाहन अर्थात शालीवाहन ने महाराष्ट्र में रामराज्य की स्थापना की l राजधानी थी देवगिरी व ध्वज था गरुड़ध्वज --इसा पूर्व 200 से इसवी 1293 l 1293 में पठान अल्लाउद्दीन खिलजी देवगिरी आया राजा रामदेवराय के देवगिरी दुर्ग पर उसने आक्रमण किया l राजा रामदेवराय ने बिनाशर्त शरण का मार्ग अपनाया l यादवों के गरुड़ के पंख नष्ट हुए व यही से महाराष्ट्र का सार्वभौमत्व समाप्त हुआ l सन 1309 में राजा रामदेवराय के मृत्यु के पश्चात् युवराज शंकरदेवराय ने खिलजी का विरोध किया परन्तु मलिक कफूर के साथ युद्ध में उसकी भी मृत्यु हुई l इसके साथ महाराष्ट्र का वैभव, स्वतंत्रता, सदधर्म, सुसंस्कृति पर आक्रमण हुआ, मंदिरों को खंडित कर जनता पर अत्याचार की शुरुआत हुई l साम्राज्य के विनाश का कारण था शासक व ज्ञानीजनों का जागरूक न होना l महाराष्ट्र गुलाम बना व धर्म मृत्यु के मुँह में था l इसका कारण था नेतृत्व की कमी और आसपास का प्रदेश व शत्रु के बारे में जानकारी न होना, संशोधन व योजनाएँ नहीं थी, आत्मविश्वास की कमी थी, श्रीराम, श्रीकृष्ण, चाणक्य की केवल पूजा की गयी उनके विचारों का अनुकरण नहीं किया l अभिमान शेष नहीं था अतः संघर्ष का जोश भी समाप्त हो गया l भाग 1 निरन्तर सन्दर्भ --राजा शिवछत्रपति, लेखक बाबासाहेब पुरंदरे संकलन- स्वयंसेवक एवं टीम
प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल
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