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अशोक जी पोरवाल क्षेत्र स प्र प्र: 

हिन्दवी स्वराज्य स्थापना 350 वां वर्ष श्रृंखला 9 = बादशाह के सामने शीश न झुकाना


एक बार शहाजी को बीजापुर जाने का प्रसंग आया तब बालक शिवाजी को भी अपने साथ ले गये। बादशाह के दरबार में जब वे उपस्थित हुये तब शहाजी ने झुककर कुरनिसात (प्रणाम) किया और शिवाजी को कहा प्रणाम करो, परवरदिगार शाहंशाह आदिलशाह को प्रणाम करो। ये हमारे संरक्षणकर्ता तथा अन्नदाता है। इन्हें प्रणाम करो। पास में जो दूसरे सरदार थे उन्होंने भी कहा ‘‘हां बेटा बादशाह को झट से प्रणाम करो।’’ बादशाह तुम पर बहुत खुश होंगे। तुम्हें खूब मिठाईयां देंगे, अच्छे-अच्छे कपड़े और नौ रत्नों का हार देंगे। झुककर सलाम करो। अन्य सरदारों ने अपने-अपने ढंग से समझाया, परन्तु शिवाजी झुके नहीं। शिवाजी ने सभी ओर देखा तथा कहा कभी नहीं, कभी नहीं। यह शीश केवल माता पिता और गुरु के सामने ही झुकेगा विदेशी बादशाह के सामने कदापि नही ।

उन उद्गारों को सुनते ही चारों ओर खलबली मच गई। किसी ने कहा हे हे यह क्या ? यह क्या ? लड़का पागल तो नहीं है। किसी ने कहा जाने दो छोटा बालक है, पहली बार दरबार में आया है। यहाँ का वैभव देखकर और इतनी बड़ी भीड़ देखकर घबरा गया होगा। अफजलखां ने दबी जबान से कहा ‘‘सांप का बच्चा सांप नहीं तो और क्या निकलेगा।’’

शहाजी को शिवाजी के  अंतरग की पूर्ण कल्पना आ गई। आगे बढ़कर उन्होंने बादशाह से अपने पुत्र के अशिष्ट व्यवहार के लिये क्षमा याचना की और उसे डेरे पर भेजने की अनुमति मांगी। बादशाह ने हंसकर कहा कोई बात नहीं वह अभी छोटा बच्चा है। उसे घर जाने दीजिये पर हमें बहुत पसन्द आया। उसे अच्छी तरह सीखा-पढ़ाकर हमारे पास जरूर ले आना। हम उसे बड़ा ईनाम देंगे। शहाजी ने शिवाजी को त्वरित घर भिजवा दिया। 

संदर्भ - छत्रपति शिवाजी भाग एक प्र.ग. सहस्त्रबुद्धे 

संकलन-स्वयंसेवक एवं टीम

आलोक- बच्चों को यह प्रसंग जरूर सुनाये


 स्वराज्य स्थापना 350 वां वर्ष श्रृंखला 10 = *"गौ रक्षक शिवाजी"*

बीजापुर दरबार से लौटते समय शिवाजी की दृष्टि एक कसाई पर पड़ी । वह दुष्ट कसाई एक गाय को डंडे से पीट-पीटकर जबरदस्ती गौ वध के लिए ले जा रहा था । गौ की निरीह कातर अवस्था यह हिंदू बालक देख ना सका । बिजली जैसे वेग से शिवाजी उसके पास पहुंचे और अपनी छोटी सी तलवार से एक ही बार से उसने उस कसाई का हाथ काट डाला । चारों ओर हंगामा मच गया परंतु शिवाजी का आवेश और रौबदाब देखकर उसका विरोध करने की हिम्मत किसी की नहीं हुई । शिवाजी के साथ जो सेवक थे वह किसी तरह समझा-बुझाकर शिवाजी को डेरे पर ले आए । रास्ते की यह घटना शहाजी और दरबार के कुछ अन्य सामंतों को भी ज्ञात हुई । शहाजी त्वरित घर लौट आए तथा शिवाजी को बेंगलुरु भेज दिया। संदर्भ :- छत्रपति शिवाजी भाग एक प्र.ग. सहस्त्रबुद्धे

संकलन :- स्वयंसेवक एवं टीम

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