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शिवबा के व्यक्तित्व निर्माण में जिजाबाई का बहुत बड़ा योगदान रहा l जिजाबाई सतत अपने साथ शिवाजी को लेकर चलती इससे शिवाजी स्वयं की आँखों से अत्याचार देखते व यही से हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का बीजारोपण हुआ l

 स्वराज्य स्थापना 350 वां वर्ष श्रृंखला 9 = बादशाह के सामने शीश न झुकाना


एक बार शहाजी को बीजापुर जाने का प्रसंग आया तब बालक शिवाजी को भी अपने साथ ले गये। बादशाह के दरबार में जब वे उपस्थित हुये तब शहाजी ने झुककर कुरनिसात (प्रणाम) किया और शिवाजी को कहा प्रणाम करो, परवरदिगार शाहंशाह आदिलशाह को प्रणाम करो। ये हमारे संरक्षणकर्ता तथा अन्नदाता है। इन्हें प्रणाम करो। पास में जो दूसरे सरदार थे उन्होंने भी कहा ‘‘हां बेटा बादशाह को झट से प्रणाम करो।’’ बादशाह तुम पर बहुत खुश होंगे। तुम्हें खूब मिठाईयां देंगे, अच्छे-अच्छे कपड़े और नौ रत्नों का हार देंगे। झुककर सलाम करो। अन्य सरदारों ने अपने-अपने ढंग से समझाया, परन्तु शिवाजी झुके नहीं। शिवाजी ने सभी ओर देखा तथा कहा कभी नहीं, कभी नहीं। यह शीश केवल माता पिता और गुरु के सामने ही झुकेगा विदेशी बादशाह के सामने कदापि नही ।

उन उद्गारों को सुनते ही चारों ओर खलबली मच गई। किसी ने कहा हे हे यह क्या ? यह क्या ? लड़का पागल तो नहीं है। किसी ने कहा जाने दो छोटा बालक है, पहली बार दरबार में आया है। यहाँ का वैभव देखकर और इतनी बड़ी भीड़ देखकर घबरा गया होगा। अफजलखां ने दबी जबान से कहा ‘‘सांप का बच्चा सांप नहीं तो और क्या निकलेगा।’’

शहाजी को शिवाजी के  अंतरग की पूर्ण कल्पना आ गई। आगे बढ़कर उन्होंने बादशाह से अपने पुत्र के अशिष्ट व्यवहार के लिये क्षमा याचना की और उसे डेरे पर भेजने की अनुमति मांगी। बादशाह ने हंसकर कहा कोई बात नहीं वह अभी छोटा बच्चा है। उसे घर जाने दीजिये पर हमें बहुत पसन्द आया। उसे अच्छी तरह सीखा-पढ़ाकर हमारे पास जरूर ले आना। हम उसे बड़ा ईनाम देंगे। शहाजी ने शिवाजी को त्वरित घर भिजवा दिया। 

संदर्भ - छत्रपति शिवाजी भाग एक प्र.ग. सहस्त्रबुद्धे 

संकलन-स्वयंसेवक एवं टीम

आलोक- बच्चों को यह प्रसंग जरूर सुनाये

 हिन्दवी स्वराज्य स्थापना 350 वां वर्ष श्रृंखला 10 = *"गौ रक्षक शिवाजी"*

बीजापुर दरबार से लौटते समय शिवाजी की दृष्टि एक कसाई पर पड़ी । वह दुष्ट कसाई एक गाय को डंडे से पीट-पीटकर जबरदस्ती गौ वध के लिए ले जा रहा था । गौ की निरीह कातर अवस्था यह हिंदू बालक देख ना सका । बिजली जैसे वेग से शिवाजी उसके पास पहुंचे और अपनी छोटी सी तलवार से एक ही बार से उसने उस कसाई का हाथ काट डाला । चारों ओर हंगामा मच गया परंतु शिवाजी का आवेश और रौबदाब देखकर उसका विरोध करने की हिम्मत किसी की नहीं हुई । शिवाजी के साथ जो सेवक थे वह किसी तरह समझा-बुझाकर शिवाजी को डेरे पर ले आए । रास्ते की यह घटना शहाजी और दरबार के कुछ अन्य सामंतों को भी ज्ञात हुई । शहाजी त्वरित घर लौट आए तथा शिवाजी को बेंगलुरु भेज दिया। संदर्भ :- छत्रपति शिवाजी भाग एक प्र.ग. सहस्त्रबुद्धे

हिन्दवी स्वराज्य स्थापना 350 वां वर्ष श्रृंखला 11 = शिवाजी जन्म के पूर्व की परिस्थितियां ----महाराष्ट्र का निर्माण --'पितृदेवो भव' की उक्ति को साकार करने प्रभु श्री रामचंद्र, माता सीता व भ्राता लक्ष्मण सहित वनवास के लिए अयोध्या से निकल पड़े व दण्डकारण्य में पहुंचे । श्रीराम के पदचाप से  दंडकारण्य में संस्कृति ने प्रवेश किया, माता सीता के पदकमलों  से प्रेम व लक्ष्मण के पदचाप बंधुता ने प्रवेश किया l वन तपोवन में परिवर्तित हुआ l आगे चलकर ऋषि -मुनियों के झोपडीयों के आश्रम बनें, आश्रमों से ग्राम, गाँवों से नगर यही था महाराष्ट्र l  सम्राट शातवाहन शासन करता था व गोदावरी नदी से पूछता था, '' सच्चम  भण गोदावरी पुव्व समुद्देण सहिआ सन्ति सालाहणकुलसरीसम जई ते कुले कुलम अथी?'' अर्थात गोदावरी बताना तुम्हारे उदगम से लेकर तुम्हारे सागर में मिलने तक के किनारे पर शातवाहन जैसे दूसरा कोई कुल है क्या? शातवाहन अर्थात शालीवाहन ने महाराष्ट्र में रामराज्य की स्थापना की l  राजधानी थी देवगिरी व ध्वज था गरुड़ध्वज --इसा पूर्व 200 से इसवी 1293 l 1293 में पठान अल्लाउद्दीन खिलजी देवगिरी आया राजा रामदेवराय के देवगिरी दुर्ग पर उसने आक्रमण किया l राजा रामदेवराय ने बिनाशर्त शरण का मार्ग अपनाया l यादवों के गरुड़ के पंख नष्ट हुए व यही से महाराष्ट्र का सार्वभौमत्व समाप्त हुआ l सन 1309 में राजा रामदेवराय के मृत्यु के पश्चात् युवराज शंकरदेवराय ने खिलजी का विरोध किया परन्तु मलिक कफूर के साथ युद्ध में उसकी भी मृत्यु हुई l  इसके साथ महाराष्ट्र का वैभव, स्वतंत्रता, सदधर्म, सुसंस्कृति पर आक्रमण हुआ, मंदिरों को खंडित कर जनता पर अत्याचार की शुरुआत हुई l साम्राज्य के विनाश का कारण था शासक व ज्ञानीजनों का जागरूक न होना l महाराष्ट्र गुलाम बना व धर्म मृत्यु के मुँह में था l इसका  कारण था नेतृत्व की कमी और आसपास का प्रदेश व शत्रु के बारे में जानकारी न होना, संशोधन व योजनाएँ नहीं थी, आत्मविश्वास की कमी थी, श्रीराम, श्रीकृष्ण, चाणक्य की केवल पूजा की गयी उनके विचारों का अनुकरण नहीं किया l अभिमान शेष नहीं था अतः संघर्ष का जोश भी समाप्त हो गया l भाग 1 निरन्तर सन्दर्भ --राजा शिवछत्रपति, लेखक बाबासाहेब पुरंदरे 

 हिन्दवी स्वराज्य स्थापना 350 वां वर्ष श्रृंखला 12 = शिवाजी जन्म के पूर्व की परिस्थियां भाग दो - महाराष्ट्र को गुलाम बनाने वाले कालयवनों की सूची लम्बी है l खिलजी - 1313 से 1320, तुगलक -1320 से 1347, बहमनी -1347 से 1526, बेरीदशाही - 1492 से 1592, इमादशाही - 1484 से 1572, निज़ामशाही - 1489 से  1633, आदिलशाही - 1489 से  1655, फरुकी - 1370 से 1599, मुगल - 1599 से 1658 से आगे l इन सभी ने मिलकर महाराष्ट्र की भाषा, धर्म, देव, जनता, शास्त्र, परम्पराएं, संस्कृति, तीर्थक्षेत्र, इतिहास, मानबिंदु  सब पर आक्रमण किया l देवगिरी का दौलताबाद हुआ l गाँव, पहाड़, बंदरगाह, इंसान सभी के नाम बदलते गए, धर्मान्तरण चरमोत्कर्ष पर था, इस्लाम को कबूल करो अथवा मरो ये दो ही विकल्प थे, युद्धबंदियों पर अत्याचार, बलात्कार,उनकी बिक्री सब चल रहा था l मंदिर ध्वस्त होते, उनके स्थान पर मस्जिदें बनती, मूर्तियों का उपयोग मस्जिद में जाने की सीढ़ी के रूप में होता, महिलाएं जनानखाने में भेजी जाती, सरेआम कत्लेआम होते रहते l इमादशाह, निज़ामशाह, आदिलशाह, क़ुतुबशाह ये पाँच सुलतान थे व इनकी शासन व्यवस्था में मराठी जनता नौकर थी, कुछ सेना में व कुछ कलामबंद थे l ये सुलतान आपस में लड़ते व लड़ाई में मराठा लोग आपस में लड़कर मरते रहते l शरीर के साथ मन भी मरने लगे, थोडे वेतन में चाकरी करने में सार्थकता नजर आती l इसके साथ खैबरखिंड के रास्ते सन 1526 में बाबर हिंदुस्तान में आया व दिल्ली के तख़्त पर बैठा l देवगिरी के समान विजयनगर पर सुल्तानों ने आक्रमण किया, इस युद्ध में मराठा सुल्तानों की सेना में थे l विजयनगर के राजा रामराय का मस्तक बीजापुर में ऐसे स्थान पर रखा गया जिसमें से दिनभर गन्दा पानी नाली में बहता रहता था l कहते है सुलतानी व जहर दोनों का परिणाम एक ही मौत ऐसी स्थिति थी l अभिमान समाप्त होने लगा, गुलामी भाने लगी, तलवार बादशाह के पैरों की दासी बनी l अब मेवाड़ से अकबर दख्खन की तरफ मुड़ा l वतन के लालच में मराठा सरदार एक दूसरे के गले काँट रहे थे l तथाकथित ब्राह्मण छुआ -छूत, कर्मकांड में, तथाकथित क्षत्रिय लाचारी में व तथाकथित वैश्य धूर्तता में लिप्त थे, बस बेसहारा थी सामान्य जनता l इसमें गोवा प्रान्त भी अछूता नहीं था पुर्तगाल, डच, ब्रिटिश सेना के अत्याचार चरम पर थे l स्वार्थ के लिए सब अंधे होकर आपस में लड़ रहे थे l हत्या,लूटमार, स्त्री -पुरुषों की गुलामों के रूप में बिक्री ऐसी अराजकता एक तरफ थी व दूसरी ओर बाहर से आये आक्रांता मजे से जीवन जी रहे थे l

 सन्दर्भ : राजा शिव छत्रपति, लेखक -महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरन्दरे 

 हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वा वर्ष श्रृंखला 13 = शहाजीराजे भोसले - देवगिरी के पास वेरुळ में बाबाजी भोसले जागीरदार थे l उनके दो बेटे थे, मालोजीराजे व विठोजी राजे l मालोजीराजे की पत्नी का नाम उमाबाई था व विठोजीराजे की पत्नी का नाम आऊबाई था l मालोजीराजे और उमाबाई के दो पुत्र थे --शहाजीराजे व शरीफजी राजे l विठोजीराजे और आऊबाई के आठ पुत्र थे --संभाजीराजे,खेलोजी, मालोजी मम्बाजी, नागोजी, परसोजी, त्रम्बकजी, कक्काजी l शहाजीराजे की पत्नी का नाम जिजाबाई था l शहाजी राजे व जिजाबाई के दो पुत्र थे --संभाजी व शिवाजी l वेरुळ में घृशनेश्वर का प्रसिद्ध मंदिर है जो बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है l बाबाजीराजे के पास दस गाँवों की जागीरदारी थी जिसे मराठी में पाटिलकी कहा जाता है, वे पाटिल थे,यह जागीर उन्होंने खरीदी थी l वह एक मेहनती किसान थे l वह ऐसा मानते थे की उनका कुल प्रभु श्रीरामचंद्रजी का कुल है l उदयपुर के  सिसोदिया उनके पूर्वज है व राणा लक्ष्मणसिंह के वह वंशज है l खेती करते हुए भी दानधर्म, कुलाचार, पूजा -अर्चना का उनका नियम था l सुल्तानशाही के कारण मंदिरों की अवस्था ठीक नहीं थी l जब मालोजीराजे व विठोजीराजे प्रतिदिन घृशनेश्वर मंदिर में दर्शन करने जाते थे तब मालोजी के मन में उस खंडहर मंदिर को देखकर ग्लानि का भाव निर्माण होता था l उसे आपने पौरुष व पराक्रम पर संदेह होता था -क्या इस शिवालय का पुनरूद्धार व इसकी रक्षा मैं नहीं कर सकता हूँ? मालोजी शम्भु -भवानी के भक्त थे, ईश्वरनिष्ठ व धार्मिक थे व इसके साथ महत्वकांक्षी भी थे l महत्वाकांक्षा उपभोग की नहीं थी परन्तु धार्मिक व जनहित की थी l इसके लिए धन चाहिए व निर्माण की रक्षा के लिए सत्ता चाहिए l ऐसे कुल में शहाजी का जन्म हुआ सन 1600 के आसपास का समय था l ईश्वर कृपा से मालोजी को धन प्राप्त हुआ, मंदिर निर्माण व अन्य जनहित के कार्य हुए l प्रतिदिन पूजा -अर्चना हेतु उन्होंने जमीन पुजारी के नाम की l तालाब, धर्मशालाएं, कुएँ इनका काम करते-करते मालोजी व विठोजी ने तलवार हाथ में ली कारण अब इन सबका संरक्षण करना आवश्यक था l ऐसे संस्कारों के परिवार में शहाजी का जन्म हुआ था l मालोजी के पास अपनी सेना थी, अश्व थे, अन्य कामों के लिए लोग थे -उस परिस्थिति में यह सब करना अर्थात हिम्मत का काम था l यही हिम्मत निज़ामशाह के नजर में आयी व मुग़लों से रक्षण हेतु ऐसे हिम्मतबहादूर की निज़ामशाह को आवश्यकता थी l मालोजी को नौकरी हेतु बुलावा आया l निज़ामशाह ने पंचहजारी जागीर दी, पुणे -सुपे प्रान्त की जागीर देकर दोनों भाइयों को नौकरी पर रख लिया l ऐसे शूरवीर परंपरा में शहाजी का जन्म हुआ l मालोजी ने इन सबका उपयोग जनहित के लिए कियाl मालोजी की पत्नी फलटन के निम्बालकर सरदार की पुत्री थी,वणगोजी उनका भाई था, वह भी शूरवीर था -उसके बारे में कहा जाता था 'राव वणन्गपाल, बारह वजीरों का काळ 'ऐसा सामर्थ्य लेकर ही शहाजी का जन्म हुआ था l भाग एक  निरंतर 


सन्दर्भ --राजा शिवछत्रपति, लेखक --महाराष्ट्र भूषण व पद्मविभूषण बाबा साहेब पुरंदरे: हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वा वर्ष श्रृंखला 14 = शहाजीराजे भोसले भाग दो -- मालोजीराजे के पश्चात् पुणे की जागीर शहाजीराजे को मिली l अब शहजीराजे निज़ामशाही में थे l आदिलशाह व मुगलों के विरुद्ध युद्ध में शहाजीराजे व उनके भाइयों ने पराक्रम एवं वीरता की पराकाष्ठा की, कुछ का बलिदान भी हुआ l शहाजी के कारण युद्ध में जीत मिली इससे शहाजीराजे का रुतबा निज़ामशाही में बढ़ा तथा  यह आपसी ईर्ष्या का कारण बना, निष्ठा का मोल नहीं है यह जानकर शहाजीराजे आदिलशाही में गए l अब भी सुल्तानों के आपसी युद्ध में मराठी ही मर रहे थे, अत्याचार, गुलामों के रूप में बिक्री, बलात्कार, कत्लेआम निरंतर चल रहा था l शहाजीराजे फिर से निज़ामशाही में गए -यह उथलपुथल सतत चलती रही l वे पराक्रमी थे, मानी थे, अन्याय के विरोध में खडे रहना चाहते थे परन्तु परिस्थिति प्रतिकूल थी अतः जोश में आकर कदम उठाना ठीक नहीं था इससे मराठों की हानि होने की पूर्ण सम्भावना थी l शहाजीराजे ने मूर्तजा निज़ामशाह को तख़्त पर बिठाया व स्वयं शासन चलाने लगे, अप्रत्यक्ष रूप से यह मराठों का ही 'स्वराज्य 'था,इन्हीं विचारों के कारण शहाजीराजे को स्वराज्य का संकल्पक कहते है l फिर एक बार आदिलशाह व मुग़ल एक हुए, घनघोर संग्राम हुआ, मुग़लों ने मूर्तजा को अपने कब्जे में लिया एवं स्वराज्य का सपना अधूरा रह गया परन्तु शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य का बीजारोपण इन्हीं घटनाओं में था l ऐसे में शाहजहाँ व आदिलशाह ने निज़ामशाही का मुल्क आपस में बाँट लिया l आदिलशाह ने शहजीराजे को अपने पास रखा परन्तु संह्याद्री से दूर कर्नाटक में बैंगलौर भेज दिया ताकि फिर से स्वराज्य संस्थापना के विचारों को बल ना मिले , यह शहाजहाँ का सुझाव था l  कर्नाटक में वहाँ के राजाओं के विरुद्ध संग्राम शुरू हुआ, नेतृत्व  शहाजीराजे के पास था परन्तु  नियंत्रण आदिलशाह का था l राजे ने उन राज्यों को समाप्त करने के स्थान पर करार करके वे सारे प्रान्त सुरक्षित रखें, इससे आपस में अपनापन निर्माण हुआ व राजे को सम्मान भी प्राप्त हुआ l बैंगलौर शहर राजे को पुरस्कार स्वरुप मिला l फिर एक बार स्वराज्य की नींव डली l वहाँ भी राजे ने राजमहल बनाया, सेना व अश्वदल रखा एवं सार्वभौमत्व का स्वाद चखा l राजे 'राजा 'जैसा जीवन जीने लगे l दरबार में मराठा सरदार, कवि, शास्त्री,लिपिक -कलामबंद सब थे l पुणे प्रान्त के जागीर की देखभाल जिजाबाई व शिवाजी कर रहे थे l  शिवाजी राजे ने स्वराज्य स्थापना के उद्देश्य से जो कार्य किये उसके लिए शहाजीराजे को जिम्मेदार ठहराकर पूछताछ की जाती तब वह बालक है कहकर शहाजीराजे बात टाल देते l इस प्रकार शिवाजी के स्वराज्य संस्थापना को अंदर से सहयोग करते हुए वे आदिलशाह के दरबार में सेवा देते रहे l                  सन 1648 में मुस्तफाखान ने धोखे से शहाजीराजे को बंदी बना लिया परन्तु शिवाजी महाराज ने मुग़ल दरबार की खिदमत करेंगे यह पत्र लिखकर पांसा पलट दिया, इस खबर से डरकर आदिलशाह ने सन 1649 में शहाजीराजे को छोड़ दिया l           शहाजीराजे अब थक गए थे पर जोश कम नहीं हुआ था l दिनांक 23 जनवरी 1664 की बात है, राजे शिकार करने होदेगिरी के जंगल में गए थे l राजे जिस घोड़े पर सवार थे उसका पैर एक बेल में अटक गया, घोड़ा गिर गया साथ में राजे भी गिर गए व उनका देहावसान हुआ l अपने पुत्र को स्वराज्य स्थापना का सपना देने वाले इस वीर योद्धा को नमन                                 सन्दर्भ  --राजा शिवछत्रपति, लेखक --महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे

 स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 7 (अ) = जिजाबाई --स्वराज्य जननी जिजामाता             निज़ामशाही दरबार की बड़ी आसामी -सिंदखेड के लखुजीराजे जाधव l लखुजीराजे के पास 27 महलों की जागीर थी l 12,000 की सेना थी, हाथी थे, अश्वदल था l लखुजीराजे व म्हाळसाबाई की बहुगुणी कन्या थी जिजाऊ l सौंदर्यवती, प्रसन्नचित्त, सर्वगुणसंपन्न थी जीजा l घोड़े पर बैठना, तलवार चलाना सब उसने बचपन में सीख लिया था l मालोजिराव भोसले व उमाबाई के बड़े सुपुत्र शहजीराजे के साथ जिजाऊ का विवाह संपन्न हुआ l भोसले कुल की गृहलक्ष्मी -राजलक्ष्मी -जिजाबाई साहेब भोसले l  विवाह के समय उम्र कम थी, सिंदखेड में बाहरी दुनिया से परिचय नहीं था परन्तु दौलताबाद राजधानी का शहर था, सुल्तानों के अत्याचार सामने दिखने लगे l लूटमार, मंदिरों का ध्वस्त होना, कत्लेआम, ख़डी फसलों का सेना के आने से खराब होना, खड़े खेतों में सैनिकों द्वारा आग लगाना, मंदिरों की मूर्तियों को खंडित कर अपमानित करना, महिलाओं की इज्जत सरेआम लूटना, बलात्कार, महिलाओं को बादशाह के जनानखाने में भेजना ऐसे कृत्य सरेआम, प्रतिदिन, प्रतिक्षण होते थे l यही पर जिजाऊ के मन में स्वराज्य संस्थापना का बीजारोपण हुआ क्योंकि अन्याय व अत्याचार सहना क्षमता के बाहर था l  कुछ मराठा सरदार आदिलशाही में नौकरी करते थे, कुछ निज़ामशाही में व कुछ मुगलों के साथ थे l जब आपस में युद्ध होता तो मरते मराठा ही थे, यह बात जिजाबाई के मन में घर कर गयी l यही से स्वराज्य का विचार बलवती होता गया l                                  जिजाबाई तुळजाभवानी की अनन्य भक्त थी l पुरुष की उसके मन में परिभाषा थी -जो ईश्वर, राष्ट्र, धर्म की रक्षा कर सकता है वह पुरुष l उनके मन में विचार आता सभी मराठा लोग शूरवीर है पर अज्ञानी है, सुल्तान इनके दम पर शासन चलाते है इसका विचार भी इन लोगों के मन में नहीं आता था l जिजाबाई के मन में विचार आता अगर सुल्तानों के विरोध में ये सब एकसाथ खड़े रहेंगे तो अत्याचारी सुलतानी को समाप्त कर सकते है व इसके लिए प्रभु श्रीरामचंद्र जैसे प्रतापी वीर का नेतृत्व आवश्यक है। जिजाबाई महत्वाकांक्षी थी परन्तु विवेक से काम करना उसकी विशेषता थी l अनुकूल परिस्थिति होगी तब 'स्वराज्य' का सपना पूर्ण होगा यह उसे विश्वास था व उचित समय आने की प्रतीक्षा वह कर रही थी l जिजाऊ जैसे तलवार चलाना जानती थी वैसे ही राजनीति का भी उसे ज्ञान था, वह कारोबार चलाना जानती थी व माँ के वात्सल्य से जनता की देखभाल करने की आकांक्षा उसमें थी l शहजीराजे स्वराज्य के संकल्पक थे एवं अत्याचारों से गरीब जनता की रक्षा का स्वप्न था जिजाऊ अर्थात माँसाहेब का व इसकी पूर्ति करनी थी शिवाजीराजे को l पुणे जागीर का कारोबार जिजाबाई के विचारों से व शिवाजी की मुद्रा से चलता था l                   परिवार ही संस्कारों की पाठशाला होती है इस उक्ति को सार्थक करने का प्रयास माँसाहेब करती थी l रामायण, महाभारत, वीरगाथाओं को सुनाकर वह शिवाजी का बालमन संस्कारीत करने के साथ अन्याय से प्रतिकार व प्रतिशोध की घुट्टी भी पिलाती थी l वर्तमान परिस्थिति को शिवाजी के सामने रखती थी व यथावकाश उन्होंने शिवाजी को न्यायासन पर भी बिठा दिया l                         पुणे में 'लाल महल' स्वराज्य निर्मिति का आशादीप था एवं बैंगलौर में 'ललित महल' शहाजीराजे का मराठा सरदारों को एकत्रित करने के प्रयास का दीप था l जिजाबाई व शिवाजी जब पुणे आये तब पुणे की दैन्यावस्था का क्या वर्णन करें? लोग गाँव छोड़कर भाग गए थे कारण प्रतिदिन आक्रमण व अत्याचार का डर लगा रहता था कारण सुनने वाला कोई नहीं था l जिजाबाई ने हौसला देकर गरीब जनता को अपने आँचल में लिया व वह सम्पूर्ण जनता की माँसाहेब कहलाई l उन्होंने पुणे शहर को फिरसे बसाया l उनकी दूरदृष्टी से ही यह संभव हो पाया, इसके कुछ उदाहरण देख सकते हैं --मुठा नदी के पास आम्बिल झरना था, अतिवृष्टि से उसमें बाढ़ आती थी व खेतों में फसलों को हानि पहुँचती थी, उस झरने पर उस जमाने में 30 फीट ऊँचा,8 फीट चौड़ा व 125 फीट लम्बा बांध बनाया गया जिससे फसले सुरक्षित हुई व दूसरी ओर से आनेवाला दुर्गन्धयुक्त पानी नदी में मिलना बंद हुआ l ऐसे अनेक छोटे -छोटे कार्य कर उन्होंने वह गाँव बसाया जैसे कोई अपने परिवार के हित की चिंता करते समय कमर कसकर प्रयत्न करता है वैसा ही जिजाबाई ने किया l                        भाग एक निरन्तर l


 सन्दर्भ -राजा शिवछत्रपति, लेखक --महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे

 हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वा वर्ष श्रृंखला 7 (आ) = जिजाबाई --स्वराज्य जननी जिजामाता -भाग दो                                           इसके साथ शिवाजी के सर्वांगीण विकास की ओर भी उन्होंने ध्यान दिया, पढना, लिखना एक गुरु की देखरेख में चलता,शस्त्र -अस्त्र चलाना भी योग्य व्यक्ति के देखरेख में होता था, माँसाहेब व दादाजी कोंडदेव के साथ शिवाजी शासकीय कार्य की बारीकीयां सीख रहा था l मंदिरों में पूजा व्यवस्था के लिए उन्होंने राशि तय करके देना आरम्भ किया इससे भी शिवाजी के मन पर अनायास संस्कार होते गए l माँसाहेब के धार्मिक स्वभाव के कारण शिवाजी के मन में भक्ति का स्त्रोत निर्माण हुआ व उस अज्ञात शक्ति पर अपरिमित विश्वास भी गाढ़ा होता गया l माँसाहेब के साथ पुराण, कीर्तन, प्रवचन सुनने से अपनी प्राचीन परंपराओं पर शिवाजी की आस्था स्थापित हुई l साधु, संत, सत्पुरुषों के सम्मान -सत्कार से शिवाजी को उनके सानिध्य में रहने का भाग्य मिला व उनके लिए भी मन में अगाध श्रद्धा निर्माण हुई l इस प्रकार से बचपन से ही शिवबा के व्यक्तित्व निर्माण में जिजाबाई का बहुत बड़ा योगदान रहा l जिजाबाई सतत अपने साथ शिवाजी को लेकर चलती इससे शिवाजी स्वयं की आँखों से अत्याचार देखते व यही से हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का बीजारोपण हुआ l मेरे अपने लोगों पर अत्याचार करने वाले इन बाहरी आक्रांताओं से इस पवित्र भूमि को मुक्त कराने का निश्चय इसी में निहित था l                                          'हिन्दवी स्वराज्य' की स्थापना का ध्यान शिवाजी को था, यह भूमि -यवनाक्रांत भूमि को यवनों से मुक्त करने का ध्यान था l कहाँ से आया यह बल? यह आया आत्मविश्वास से, स्वाभिमान से व जनता के प्रति ममत्व से l                                     माँसाहेब ने शिवाजी को एक लक्ष्य दिया, उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके मन में जोश भरा, सपनों को पंख दिए, आवश्यकता पड़ने पर मार्गदर्शन भी दिया, जिजाबाई उनकी ताकत बनी l  यह सब करने के लिए शहजीराजे व जिजाबाई को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी, वे दोनों बहुत कम समय के लिए एकसाथ रह पाएँ व उतनी ही बड़ी किमत चुकाई संभाजीराजे व शिवाजीराजे ने l संभाजीराजे अपने पिता के साथ बैंगलौर में रहते थे व शिवाजीराजे अपनी माता के साथ महाराष्ट्र में रहते थे l अतः एक माता के वात्सल्य से वंचित व दूसरा पिता के प्यार से वंचित रहा l                                   जब -जब शिवाजीराजे युद्ध में व्यस्त रहते थे उस समय माँसाहेब ने ही सम्पूर्ण शासन माँ की नज़र से अर्थात स्नेह से परन्तु अनुशासन से चलाया था l ऐसे हजारों क्षण उनके जीवन में आये तब लगा कि फिर अब शिवबा से भेंट होगी अथवा नहीं, परन्तु इतना बड़ा त्याग भी उन्होंने केवल स्वराज्य स्थापना के लिए किया l                    यह सम्पूर्ण देवभूमि अपनी हो, इसमें यवनों के स्पर्श का एक कण भी न हो, यह माँसाहेब की इच्छा थी -महत्वकांक्षा थी व इसी महत्त्वकांक्षा से शिवशाही का जन्म हुआ l दिनांक 06 जून 1674 को माँसाहेब के जीवन के व्रत का उद्यापन हुआ, शिवाजीराजे का राज्याभिषेक हुआ l उसके पार्श्व में भी महान उद्देश्य था सार्वभौमत्व को सर्वमान्य करने का l     दिनांक 14 मई  1657 को शिवाजीराजे की पत्नी सईबाईसाहेब ने एक पुत्ररत्न को जन्म दिया --संभाजीराजे l परन्तु उसके बाद सईबाई का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था l दिनांक 05 सितम्बर 1659 को उनका देहावसान हुआ l तब से संभाजीराजे की देखभाल माँसाहेब के देखरेख में हुई व माँसाहेब ने संभाजी के व्यक्तित्व का निर्माण भी शिवाजीराजे जैसा ही किया l शस्त्र विद्या, पढ़ाई, शास्त्रविद्या, जनता के प्रति ममत्व का भाव,स्वराज्य निर्माण व स्वराज्य रक्षण का ही लक्ष्य l यह देखते हुए कहा जाता है कि माँसाहेब ने दो छत्रपतियों का निर्माण किया -छत्रपति शिवाजी महाराज व छत्रपति संभाजी महाराज l                  स्वराज्य स्थापना हेतु जब -जब युद्ध प्रसंग आये, तब उसके पश्चात् एक विशेष दरबारी आयोजन की संस्कृति भी स्थापित हुई व इसका आयोजन यह माँसाहेब की दूरदृष्टी व ममतामयी व्यक्तित्व का परिचय हमें कराता है l शिवाजीराजे के साथ जिन्होंने ने भी अपने प्राणों की परवाह किये बिना स्वराज्य निर्माण में अपना योगदान दिया उन्हें स्वर्ण से निर्मिति कड़ा, तलवार व शेला दिया जाता था, उनका योगदान अमूल्य था परन्तु कृतज्ञता ज्ञापित करने का यह सुअवसर होता था l जिनकी आहुति इस यज्ञ में समर्पित होती उसके सम्पूर्ण परिवार की चिंता 'स्वराज्य ' करता था l ऐसे संस्कारों की अमूल्य धरोहर शिवाजीराजे को सौंपकर, स्वप्नपूर्ति का आनंद मन में लिए जिजाबाईसाहेब -स्वराज्य की जननी की प्राणज्योत दिनांक 17 जून 1674 को पंचतत्व में विलीन हो गयी- स्थान रायगड़ के निकट पाचाड़ गाँव l भविष्य में यदि हमें शिवाजी जैसे लोग चाहिए तो भारत की मातृशक्ति को जिजाबाई जैसा बनना पड़ेगा ।                                          सन्दर्भ --राजा शिवछत्रपति  लेखक -महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे

संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम

प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल

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