पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर त्रि शताब्दी वर्ष
श्रृंखला 21 =
अहिल्यादेवी एवं महेश्वर भाग एक
अहिल्यादेवी के पुत्र मालेराव के निधन के बाद उनके सांसारिक जीवन मे किसीका साथ नहीं था, पति की मृत्यु के बाद सासू माँ की मृत्यु फिर श्वसुर का निधन फिर पुत्र मालेराव का निधन, देवी ने अपनी आँखो के सामने होलकर राजवंश के तीन राजा की मृत्यु देखी थी, इतनी सारी विपरीत परिस्थितियों के पश्चात् देवी को जीवन मे वैराग्य प्राप्त हो गया और वे राजपाट का त्याग करके किसी तीर्थक्षेत्र मे जाकर जीवन व्यतीत करने की इच्छा होने लगी किन्तु श्वसुर मल्हारराव होलकर को प्रजा की सेवा का दिया हुआ वचन उनको याद आया और वे तीर्थक्षेत्र मे जाने से रुक गयी लेकिन अहिल्या देवी इंदौर के राजवाड़े से भी दूर जाना चाहती थी क्योंकि इसी राजवाड़े मे उन्होंने होलकर वंश के तीन राजाओ की मृत्यु देखी थी। अहिल्या देवी इंदौर से राजधानी कहां स्थानांतरित करे तभी उन्हें ध्यान आया कि उज्जैन लेकिन वह शिंदे की राजधानी थी, फिर अहिल्यादेवी ने मरदाना को राजधानी बनाना योग्य समझा परंतु ज्योतिषियों ने उसे राजधानी बनाना उचित नहीं बताया तभी अहिल्यादेवी को याद आया महेश्वर । महेश्वर धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान था, ज्योतिषियों की भी महेश्वर राजधानी बनाने के लिए राय थी तो अहिल्यादेवी ने इंदौर से राजधानी महेश्वर बनायी। महेश्वर में राजा महिष्मान ने शासन किया था इसलिये इस नगरी का नाम महेश्वर पड़ गया था। अहिल्यादेवी के महेश्वर को राजधानी बनाने से इस पावन नगरी के भाग्योदय हो गए।
प्राचीन भारत मे महेश्वर का नाम माहिष्मती था । कालिदास के प्रसिद्ध ग्रंथ मेघदूत मे इस नगरी का उल्लेख मिलता हैं, आद्य शंकराचार्य और प्रख्यात विद्वान मंडन मिश्र के बीच शास्त्राथ माँ नर्मदा के किनारे महेश्वर में हुआ था।
महेश्वर मे चालुक्य, हैहय तथा परमार राजा ने भी लंबे समय तक शासन किया था, गुजरात के सुलतानो ने भी महेश्वर में कुछ समय शासन किया किंतु मालवा के सूबेदार मल्हारराव होलकर ने निमाड़ और मालवा को मुसलमानो से जीत कर होलकर राज्य की स्थापना की थी तब से महेश्वर होलकर राज्य में आने लगा था।
महेश्वर माँ नर्मदा किनारे बसा हुआ एक प्राचीन शहर हैं, नर्मदा भारत की पवित्र नदी मानी जाती हैं तथा नर्मदा ही एक मात्र ऐसी नदी हैं जिसकी प्रतिवर्ष परिक्रमा लगाई जाती हैं। अहिल्यादेवी भी माँ नर्मदा नदी में बहुत श्रद्धा रखती थी इसीलिये उन्होंने महेश्वर को अपनी राजधानी बनाया।
अहिल्यादेवी ने जब इंदौर से राजधानी महेश्वर स्थानांतरित की तब महेश्वर एक बहुत ही छोटा सा गाँव था, मुसलमानो ने इस देव नगरी को खंडर की तरह बना दिया था किंतु देवी ने पुन: महेश्वर नगरी की स्थापना की और देशभर से बुनकरों को बुलाकर उन्हें महेश्वर मे स्थान दिया उनके रहने के लिए मकान बनवाये गए तथा उन्हें खेती की ज़मीन भी दी गई। अहिल्यादेवी ने पूरे देश मे गंगा किनारे, गौदावरी के तट पर घाटों का निर्माण करवाया इन सबके लिए कारीगरों की आवश्यकता होती थी इसलिए इस कार्य मे लोगो को रोजगार देने के लिए मूर्तिकार, शिल्पी, कारीगर को भी महेश्वर में लाकर बसाया गया। अहिल्यादेवी ने देश भर के विद्वानों को, धर्माचार्यो को, ज्योतिषियों को, पौराणिकों को, कीर्तनकारो को, कलाकारो को, कारीगरो को महेश्वर में बसाया था। अहिल्या देवी ने महेश्वर में संस्कृत की पाठशाला प्रारंभ की थी, महेश्वर मे धार्मिक अनुष्ठान प्रारंभ किये, मंदिरों में प्रतिदिन पूजा-पाठ तथा धार्मिक अनुष्ठान होते रहते थे ओर इनके लिए ब्राह्मणों की आवश्यकता लगती हैं इसलिये महाराष्ट्र से लाकर कई ब्राह्मणों को भी महेश्वर मे बसाया था। अहिल्यादेवी के महेश्वर को राजधानी बनाने से मानो इस देव नगरी का पुन: उद्धार हो रहा था क्योकि त्रेतायुग के कालखंड से महेश्वर एक समृद्ध नगरी था, रामायण, महाभारत काल मे भी महेश्वर का उल्लेख मिलता हैं, पुराणों में भी महेश्वर का उल्लेख मिलता हैं, जैन धर्मग्रंथ में भी महेश्वर का उल्लेख मिलता हैं तथा बौद्ध धर्म के ग्रंथ में भी महेश्वर का उल्लेख मिलता हैं। निरंतर…
संदर्भ - वेध अहिल्याबाई
लेखक - देवीदास पोटे
संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम
प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल
🕉️हर हर महादेव🕉️
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