पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर त्रि शताब्दी वर्ष
शृंखला 20 =
न्यायप्रिय अहिल्यादेवी भाग तीन
अहिल्यादेवी के शासन काल के दौरान उनकी न्यायप्रियता की चर्चा पूरे भारत मे हो रहे थे । इधर शिंदे और होलकर एक भूखंड को लेकर भी विवाद चल रहा था।
वर्षो तक यह विवाद चलता रहा किन्तु कोई हल नहीं निकला, तब होलकर और शिंदे ने विवाद को ख़त्म करने के लिए पंच बनाकर हल निकालने की सोची परंतु अब पंच किसे बनाया जाये इस पर चिंतन होने लगा। दोनों पक्ष विचार-विमर्श करने लगे, बाद मे शिंदे ने अहिल्या देवी की न्यायप्रियता के कारण पंच के रूप मे अहिल्यादेवी के नाम का प्रस्ताव रखा । शिंदे जानते थे कि अहिल्यादेवी स्वयं होलकर की प्रमुख हैं फिर भी ग्वालियर राज्य को उनकी निष्पक्षता और न्याय-परायणता पर पूरा विश्वास था इसीलिये उनके नाम पर मुहर लगा दी।
अहिल्यादेवी ने दोनों पक्ष की बात सुनने के बाद निर्देश दिया कि - “होलकर और शिंदे दोनों पक्ष इस भूखंड ज़मीन पर अधिकार जमाना छोड़ दे और इस भूमि को गोचर भूमि के रूप मे गायो के चरने के लिये खुला रखा जाये ।
दोनों पक्षों ने उनके पंच फैसले को स्वीकार किया फिर वह भूखंड गोचर भूमि के रूप मे बिना लगान के खाली छोड़ दी गयी । इस प्रसंग से ध्यान आता हैं कि अहिल्या देवी की निर्णय पर लोगो को आत्मविश्वास था, सभी लोग उनका का सम्मान करते थे।
अहिल्यादेवी के शासनकाल मे न्याय के मामले मे अपने और पराये मे कभी भेद नहीं किया, वे चाहती तो भूखंड की ज़मीन अपने नाम ले सकती थी, लेकिन वे जानती थी की लोगो के हृदय मे उनके के प्रति कितना अधिक विश्वास, श्रद्धा और सम्मान हैं कि वे स्वयं होलकर राज्य की प्रमुख हैं फिर भी उन्हें ही पंच बनाकर फैसला सुनाने के लिये कहां गया।
स्वतंत्र भारत के दौर में इतने साधन संसाधनों उपलब्ध हैं इसके बावजूद भी न्यायालयों में न्याय मिलना अत्यंत कठिन हो गया हैं, किन्तु अहिल्या देवी के शासन मे न्याय सरल, सस्ता तथा निष्पक्ष होता था। अहिल्यादेवी के दौर मे धनवान व्यक्ति किसी गरीब व्यक्ति पर अत्याचार करके न्याय खरीद नहीं सकता था। आज भी अहिल्या देवी को भारत मे उनके न्यायप्रियता के लिये याद किया जाता हैं। कलयुग काल मे अहिल्यादेवी जैसी न्यायप्रिय शासक कोई दूसरी नहीं हुयी।
संदर्भ - कर्मयोगिनी देवी अहिल्याबाई होलकर
प्रकाशक - सेविका प्रकाशन
संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम
प्रस्तुति --अशोक जी पोरवाल
🕉️हर हर महादेव 🕉️
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