पुण्य श्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर त्रि शताब्दी वर्ष
श्रृंखला 14 = कूटनीति में निपुण देवी अहिल्याबाई भाग एक
इकलौते पुत्र मालेराव के निधन के बाद देवी अहिल्याबाई अपने श्वसुर मल्हारराव होलकर को दिये हुवे वचन का श्रद्धा से निर्वहन करना चाहती थी। इतनी विपरीत परिस्थितियों के बाद भी वह मालवा राज्य की भोली-भाली जनता से बहुत प्यार करती थी, वह प्रजा को राजा की शोभा मानती थी। मल्हारराव होलकर से देवी अहिल्याबाई ने राजकाज के कार्यो को बहुत अच्छी तरह से समझ लिया था, मल्हारराव जब युद्धक्षेत्र मे व्यस्त रहते थे तब मालवा के इंदौर से देवी अहिल्याबाई ही कुशलता के साथ राज्य का संचालन करती थी। मालेराव के निधन के बाद मालवा की प्रजा चाहती थी कि राज्य पर देवी अहिल्याबाई ही शासन करे किन्तु मालवा के दीवान गंगाधर यशवंत चंद्रचूड नही चाहता था की एक महिला के अधीन रहकर वह कार्य करे इसलिए गंगाधर षड्यंत्र बनाकर दरबार मे जाकर देवी अहिल्याबाई से बोला - '' देवी आप अबला, विधवा और कमजोर महिला हैं, आप राज- पाट के कार्य नही संभाल सकेंगी”। (दीवान गंगाधर यशवंत चंद्रचूड़ यह जानता था की देवी अहिल्याबाई बहुत ही धार्मिक स्वभाव की महिला हैं इसलिए वह उन्हे आगे बोलता हैं)” की - '' आप अत्यंत ही धर्म परायण स्त्री हैं, राज - पाट के कार्य की वजह से आपके समक्ष भविष्य मे कई तरह की अड़चने और समस्याएं आयेगी तब आपकी ईश्वर भक्ति, पूजन-पाठ , भजन - कीर्तन आदि शुभ कार्यों मे बाधाएं होगी इसलिए मेरी सलाह हैं कि आप किसी होनहार बालक को गोद लेकर उसे मालवा का उत्तराधिकारी घोषित कर दीजिए और आप किसी बात की चिंता भी मत करिए मैं पूरे राज्य की सेवा का बहुत अच्छे से प्रबंध करूँगा ऐसी मेरी इच्छा हैं ''। देवी अहिल्याबाई पर इस बात का कोई असर नहीं हुआ और वह समझ गई की दीवान गंगाधर सिर्फ अपनी रोटी सेकना चाह रहा हैं ताकि वह इस राज्य पर शासन कर सके, देवी अहिल्याबाई ने बहुत सोचने के बाद कहां -" गंगाधर क्या है ना मैं एक साधारण स्त्री नही हूं, मालवा के पूर्व राजा मल्हारराव होलकर की पुत्रवधु हूं, दूसरे राजा खंडेराव की स्त्री हूं तथा तीसरे राजा मालेराव की माता हूं, अब चौथा किसको राज सिंहासन पर बैठाकर राज्याभिषेक करूं? इसलिए मैं स्वयं ही अपने इष्ट देव बाबा महादेव को राज सिंहासन पर बैठाकर पूरे राज्य का संचालन करूंगी"।
देवी अहिल्याबाई का यह वाक्य सुनकर गंगाधर यशवंत चंद्रचूड़ के पैरो तले जमीन खसक गयी, उसका चेहरा उतर गया, वह विचलित हो गया, क्रोधित होकर निवास स्थान पर पहुँचा, गंगाधर ने कई तरह के षड्यंत्र करके देवी अहिल्याबाई से मालवा राज्य हड़पना चाहता था किन्तु देवी अहिल्याबाई भी अपनी बुद्धि - क्षमता से गंगाधर के षड्यंत्र को नष्ट कर देती थी। गंगाधर को देवी अहिल्याबाई से मिली इस बुद्धि पराजय का बदला लेना था तब उसने बहुत परेशान होकर पेशवा सरकार के काका राघोबा को चिट्ठी लिख दी की मालवा राज्य मे मालेराव नि: संतान मर गया हैं, मालवा का कोई उत्तराधिकारी भी नही हैं, देवी अहिल्याबाई एक अबला, विधवा महिला कैसे इतने बड़े साम्राज्य का संचालन करेगी इसलिए आप सैन्यबल के साथ आकर मालवा राज्य पर कब्जा कर लीजिए तथा मालवा प्रांत आपके पूर्वजों का ही दिया हुआ हैं इस पर अबला नारी का कोई अधिकार नहीं है। मालवा के गुप्तचरों ने दरबार मे जाकर देवी अहिल्याबाई को गंगाधर के इस षड्यंत्र की बात बताई तो देवी इस बात से परेशान हो गई कि लालच मे आकर गंगाधर यशवंत चंद्रचूड़ दिमाग से पैदल हो गया हैं तथा देवी अहिल्याबाई को यह भी सूचना मिल चुकी थी की राघोबा पेशवा सत्ता की भूख मे दीवान गंगाधर की बातो मे आकर मालवा राज्य पर कब्जा करने के लिए पचास हजार की सेना के साथ इंदौर आ रहा हैं। यदि ऐसी परिस्थिति मे कोई ओर स्त्री होती तो वह भयभीत होकर गंगाधर के सामने घुटने टेक देती और अपना राज्य दीवान गंगाधर को दे देती परंतु यहां तो स्वयं असामान्य प्रतिभा की धनी देवी अहिल्याबाई थी, उनके स्वभाव मे बिना कारण युद्ध लड़ने की इच्छा नही होती थी किन्तु जब जरूरत होती तब वह पूरी ताकत व अपनी पूरी शक्ति के साथ युद्ध के लिए तैयार रहती थी इसीलिये देवी अहिल्याबाई ने भी राघोबा पेशवा से युद्ध लड़ने की तैयारियां शुरू कर दी । देवी अहिल्याबाई ने सैन्यबल को दरबार मे बुलाया फिर उनकी युद्ध कौशलता का प्रशिक्षण लिया। देवी अहिल्याबाई ने महादजी सिंधिया, गायकवाड़ को पत्र लिखकर याद दिलाया की स्व मल्हारराव ने उन्हें हर समय सहयोग दिया था तथा इस विपत्ति के समय मे होलकर राज्य के लिये उन्होंने मदद का निवेदन किया।
मराठा के राजा श्रीमंत माधवराव पेशवा को देवी अहिल्याबाई ने पत्र मे लिखा “ गंगाधर चंद्रचूड के बहकावे मे राघोब दादा ने मालवा राज्य को हड़पने के लिये षड्यंत्र किया हैं, आपसे निवेदन हैं की इस विपत्ति के समय होलकर राज्य का साथ दे”। माधवराव पेशवा बहुत ही ईमानदार, न्यायप्रिय तथा धर्म परायण शासक थे, माधवराव अपने काका की मनोवृत्ति को बहुत अच्छे से जानते थे इसलिये देवी अहिल्याबाई के पत्र का जवाब देते हुवे माधवराव ने भी उन्हें पत्र लिखा - “देवी आप निश्चिंत रहिए, मालवा राज्य पर शासन करने का अधिकार सिर्फ़ आपका ही हैं और यदि कोई आपके राज्य को हड़पने की मनोवृत्ति से आता हैं तो आप युद्ध मे उन्हें पराजित करे तथा आप चिंता नहीं करे जब भी आपको युद्धभूमि मे मेरी ज़रूरत होगी तब मैं आपके साथ खड़ा दिखाई दूँगा”। देवी अहिल्याबाई ने यह पत्र पढ़ लिया था तथा वह युद्ध के लिये तैयारिया कर रही थी, देवी ने राघोबा से युद्ध लड़ने के लिये पाँच सौ महिला सैनिकों की एक सेना तैयार की, देवी अहिल्याबाई ने महिला सैनिकों को गोला बारूद के साथ युद्ध का प्रशिक्षण देकर तैयार किया तभी देवी अहिल्याबाई को समाचार मिला की राघोबा विशाल संख्या की सेना के साथ उज्जैन के क्षिप्रा तट पर आ गया हैं । निरंतर…….
संदर्भ - लोकमाता अहिल्याबाई
लेखक - अरविन्द जावलेकर
संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम
प्रस्तुति.... अशोक जी पोरवाल
हर हर महादेव
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