पुण्य श्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर त्रि शताब्दी वर्ष श्रृंखला 10 =
“देवी अहिल्याबाई” का सती सह-गमन का निर्णय तथा मालवा की प्रजा की सेवा का ‘मल्हारराव होलकर’ को वचन
अहिल्याबाई अपने पति ‘खंडेराव’ के शव को देख फुट-फुटकर रोने लगी और उधर खंडेराव के अंतिम संस्कार की तैयारियाँ की जा रही थी, तब अहिल्याबाई भी पति के साथ सती के रूप मे सह- गमन की तैयारियाँ करने लगी। राज्य की जनता ने अहिल्याबाई को सती सह-गमन की तैयारियाँ करते देखा तो वे सभी चिंतित हो उठे तथा वे नहीं चाहते थे की विलक्षणी, सुयोग्य महिला पति के साथ सह- गमन करके अपना जीवन समाप्त करे इसलिये लोगो ने तय किया की चार-पाँच लोग अहिल्याबाई के पास जाकर उनसे विनती करेंगे की वह पति के साथ सती सह-गमन नहीं करे।
प्रजा के चार लोग अहिल्याबाई के पास गये और चारों ने एक सुर मे उनसे प्रार्थना करते हुवे कहां - “देवी आप पति के साथ सती नहीं होइये क्योकि ‘मल्हारराव और खंडेराव जब युद्ध अभियानों पर चले जाते थे तब राज-काज का अधिकतर कार्य आप ही संभालती हैं तथा राज्य के लोग आपके कार्य - कुशलता व योग्यता के क़ायल हैं तो हम इतनी ईमानदार सेवक को पति के साथ सती कैसे होने दे सकते हैं?, यह सुनकर भी उन पर कोई असर नहीं हुआ और अहिल्याबाई ने उन्हें कहां - ‘’आपकी बात ठीक हैं किन्तु - पति के देहांत का दुःख मुझसे नहीं सहा जायेगा” तथा “जिस पति ने मुझे जीवन भर साथ देने का वचन दिया था आज वे ही मुझे छोड़कर चले गये तो अब मेरे जीवन किस काम का रह गया हैं इसलिये पति के साथ मेरा सती हो जाना ही सही हैं।”
प्रजा की और से की गई प्रार्थना का भी अहिल्याबाई पर जब कोई प्रभाव नहीं हुआ तो लोग रोते हुवे ‘मल्हारराव’ के पास गये और उनसे कहां - ‘’आपकी पुत्रवधू अहिल्याबाई की योग्यता और कार्य शैली से मालवा की प्रजा मे सुख शांति बनी रहती हैं यदि वे ही सती हो जायेंगी तो मालवा की प्रजा का क्या होगा?’’
मल्हारराव भी अपनी योग्य पुत्रवधू अहिल्याबाई के इस फ़ैसले से दुःखी हो उठे तथा अपने इकलोते पुत्र खंडेराव का शोक भुलाकर अहिल्याबाई से कहां - “बेटी अहिल्या मैने जिस पुत्र को पाल पोसकर इतना बड़ा किया आज वही मुझे छोड़कर चला गया हैं, अब क्या तुम भी मुझे इस बुढ़ापे मे सहारा नहीं दे सकती हो? मैंने तुझे बहू नहीं मेरी बेटी माना हैं, अब तु ही मेरा पुत्र ‘खंडेराव’ हैं, इतना विशाल राज-पाट तुम्हें ही सँभालना हैं, खंडेराव के जाने से मेरी अवस्था जड़ से उखड़े वृक्ष की तरह हो गयी हैं, इस प्रजा की सेवा भी तुम्हें ही करना हैं, मालवा की प्रजा के लोगो को देख बेटी कैसे तेरे सती हो जाने के निर्णय से सब तेरे आगे गिड़-गिड़ाकर रो रहे हैं, बेटी तेरे सती होने के विलाप मे मेरी और मालवा की प्रजा को वज्रघात झेलना पड़ेगा तथा यह बात कहते हुवे मल्हारराव बिलख-बिलखकर रो पड़े और श्वसुर मल्हारराव ने सती होने निकली अपनी पुत्रवधू अहिल्याबाई के पैर पकड़ लिये । मल्हारराव की इस अवस्था को देख अहिल्याबाई का कोमल हृदय भी पिघल गया तथा उन्होंने सती हो जाने का अपना कठोर निर्णय छोड़ दिया” एवं मल्हारराव को वचन दिया की मालवा की प्रजा की वह सेवा करेंगी तत्पश्चात् विधि-विधान से खंडेराव’ की अंत्येष्टि की गई । “खंडेराव” की अंत्येष्टि के बाद वृद्ध सास - श्वसुर की सेवा तथा पुत्र मालेराव व पुत्री मुक्ताबाई की परवरिश की ज़िम्मेदारी भी अब अहिल्याबाई पर आ गयी थी। ‘खंडेराव’ के निधन के बाद मालवा की प्रशासनिक एवं राजनीतिक कार्यों की भी ज़िम्मेदारी अहिल्याबाई पर आ गयी थी। मल्हारराव अपनी पुत्रवधू अहिल्याबाई की प्रशासनिक एवं राजनीतिक योग्यता को जानते थे व उन्हें पूर्ण विश्वास था की अहिल्याबाई के शासन से मालवा राज्य की ख्याति संपूर्ण जगत मे फैल सकती हैं।
संदर्भ - लोकमाता अहिल्याबाई
लेखक - अरविंद जावलेकर
संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम
प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल
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