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पुण्य श्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर त्रि शताब्दी वर्ष श्रृंखला 13 = मालेराव के निधन के पश्चात विपरीत परिस्थितियों मे देवी अहिल्याबाई ।

 पुण्य श्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर त्रि शताब्दी वर्ष 

श्रृंखला 13 = मालेराव के निधन के पश्चात विपरीत परिस्थितियों मे देवी अहिल्याबाई ।


मालेराव के निधन के बाद देवी अहिल्याबाई पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा था, प्रकृति के लगातार कुटिल कृत्य से देवी अहिल्याबाई के जीवन से पति का साथ छूटा फिर जिन सास- श्वसुर की सेवा व मालवा प्रजा की सेवा के संकल्प से सती सह-गमन का निर्णय त्याग दिया तो सास- श्वसुर भी चल बसे इन सबके बाद देवी अहिल्याबाई को सिर्फ़ पुत्र का सहारा था वह भी उन्हें छोड़कर चला गया ।

 मालेराव के निधन के बाद देवी अहिल्याबाई को अपना जीवन सार रहित दिखने लगा, कई बार सब कुछ त्याग करके वे तीर्थ क्षेत्र मे जाने का निश्चय करती थी किन्तु उन्हें फिर अपने श्वसुर मल्हारराव होलकर को दिया हुआ वचन याद आता तथा मालवा राज्य की चिंता उन्हें यह करने से रोक रही थी। 

देवी अहिल्याबाई के जीवन मे एक के बाद एक विपरीत परिस्थितियाँ आती रही, सबसे पहले द्विगभ्रमित पति को मार्ग पर लाने की चुनौतियाँ देवी अहिल्याबाई पर थी, देवी अहिल्याबाई अपनी प्रज्ञाशक्ति व योग्यता से खंडेराव को मार्ग पर ले आयी थी, देवी अहिल्याबाई व खंडेराव के सुखद वैवाहिक जीवन की शुरुआत हुयी ही थी कि खंडेराव की कुम्भेर के क़िले मे युद्ध के दौरान मृत्यु हो गयी, बहुत मुश्किलों को पार करने के बाद वे अपने आप को संभाल सकी थी, देवी अहिल्याबाई के लिये सास - श्वसुर ही माता-पिता थे। 

“सास गौतमाबाई तथा श्वसुर मल्हारराव” देवी अहिल्याबाई को अपनी बहू नहीं बेटी मानते थे व उन्हें बेटी की तरह स्नेह करते थे, कुछ वर्षों मे सास गौतमाबाई व श्वसुर मल्हारराव होलकर का भी निधन हो गया, देवी अहिल्याबाई के जीवन से माता -पिता का साया मिट गया था। अब देवी अहिल्याबाई को सिर्फ़ अपने पुत्र मालेराव का सहारा था, देवी अहिल्याबाई सोचती थी मालवा राज्य का सूबेदार बनकर वह मालवा राज्य की सेवा करेगा किन्तु मालेराव के जीवन मे भी राजसी सुख नहीं लिखा था, मालेराव के 8 महीने शासन करने के बाद ही उसका निधन हो गया। देवी अहिल्याबाई कठोर मन से अपने आपको संभालने का प्रयास करती थी व स्वयं को धार्मिक कार्यों मे तथा राज-पाट के कार्यों मे व्यस्त रखती थी, देवी अहिल्याबाई अपनी पुत्री मुक्ताबाई के साथ प्रतिदिन भगवान शंकर जी का अभिषेक करके मन को शांत करने की कोशिश करती थी। इस मुश्किल घड़ी मे देवी अहिल्याबाई को अब सिर्फ़ अपनी बेटी मुक्ताबाई का सहारा था, वह जान से भी ज़्यादा अपनी पुत्री मुक्ताबाई को स्नेह करती थी। 

देवी अहिल्याबाई के बारे मे मराठी के सुप्रसिद्ध कवि मोरोपंत ने अपनी काव्य पंक्तियों मे देवी अहिल्याबाई के संबंध मे लिखा हैं -

    देवी अहिल्याबाई। झालिस जग त्रयांत तू धन्या। 

    न न्याय धर्म निरता अन्या कलिमाजि ऐकली कन्या।।

अर्थात् - हैं देवी अहिल्याबाई! तुम तीनों लोकों मे धन्य हो, कलयुग मे तुम्हारे जैसी न्यायी और धर्मपरायण अन्य नारी न देखी हैं, न सुनी हैं। 


संदर्भ - लोकमाता अहिल्याबाई

लेखक - अरविंद जावलेकर 

संकलन = स्वयंसेवक एवं टीम 

प्रस्तुति ..अशोक जी पोरवाल

🕉️हर हर महादेव🕉️

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