आज की बोध कथा =
*नाता एक रामजी से दूजा नाता छोड़ दे*
एक साधू किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया। पनघट पर तो पनिहारिन आती जाती ही रहती हैं। तीन-चार पनिहारिनें पानी के लिए आईं तो एक पनिहारिन ने कहा- आहा! साधु हो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया, पत्थर का ही सही, लेकिन रखा तो है।
पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली तो उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया।
तभी दूसरी बोली - साधु हुआ, लेकिन खीज नहीं गई। तकिया तो फेंक दिया लेकिनअभी रोष नहीं गया। तब साधु सोचने लगा, अब वह क्या करे?
तभी तीसरी पनिहारिन बोली- बाबा! यह पनघट है, यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे?
लेकिन एक चौथी पनिहारिन ने बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी- बाबा! क्षमा करना, लेकिन हमको लगता है कि तुमने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है। दुनिया पाखण्डी कहे तो कहे, तूम जैसे भी हो, हरिनाम लेते रहो।
सच तो यही है, दुनिया का तो काम ही है कहना। हम ऊपर देखकर चलेंगे तो कहेंगे- अभिमानी हो गए।
नीचे देखकर चलेंगे तो कहेंगे- बस किसी को कुछ समझते ही नहीं।
आंखे बंद कर लेंगे तो कहेंगे कि ध्यान का नाटक कर रहा है। चारों ओर देखेंगे तो कहेंगे कि निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है। और परेशान होकर आंख फोड़ लेंगे तो यही दुनिया कहेगी कि किया हुआ तो भोगना ही पड़ता है।
*वास्तव में ईश्वर को राजी करना आसान है, लेकिन संसार को राजी करना असंभव है। इसीलिए हमको तो अपनी दृष्टि संसार से हटाकर भगवान पर लगानी है और उसी को राजी करने के लिए या कहें कि जिसमें वह राजी है, वही सब करने में अपने सारे प्रयास करने हैं।*
🙏🙏🙏
*जय जय सियाराम*
प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल
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