हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 46 = पुरंदर समझौता भाग एक
महाराज जब मिर्जा राजा से भेंट करने आये थे, तब मिर्जा राजा ने एक शर्त वकील रघुनाथपंत के समक्ष रखी थीl शिवाजीराजे को मुझसे भेंट करने के लिए आना है तो निःशस्त्र आना होगाl इस शर्त का पालन करते हुए महाराज निःशस्त्र गये थेl इस मुलाक़ात में मुगल बादशाह एवं महाराज के मध्य एक करार हुआ, अर्थात करार के बिन्दु मिर्जा राजा ने तैयार किये थेl यह करार इतिहास में पुरंदर समझौता नाम से प्रसिद्ध है l इस करार में पाँच बिन्दु थे l
1)शिवाजी अपने पास केवल बारह गढ़ तथा चार लाख रूपये उत्पन्न का क्षेत्र रख पाएगाl यह भी बादशाह का कृपाप्रसाद है अतः बादशाह के प्रति निष्ठा रखनी होगी l
2)दख्खन प्रान्त का जो भी सुबेदार बादशाह की ओर से नियुक्त किया जाएगा उसके हुक्म के अनुसार शिवाजी को अपनी चाकरी निभानी होगी l
3)शिवाजीराजे का बेटा संभाजीराजे को पाँच हजारी मनसब मिलेगी परन्तु संभाजी नाबालिग होने के कारण नेताजी पालकर को दख्खन के सुबेदार के पास चाकरी करनी पड़ेगीl
4)बीजापुर के आदिलशाह के कब्जे में तळकोंकण व बालेघाट का जो प्रदेश है उसे जीतकर शिवाजीराजा अपने पास रख सकता है परन्तु उसके बदले में बादशहा को एक सौ साठ रूपये देने होंगे, यह रकम बारह लाख रूपये के हफ्ते से अदा की जा सकेगी l
5)स्वराज्य के 23 पहाड़ी दुर्ग व सोलह लाख उत्पन्न का क्षेत्र बादशाह के सुपूर्द करना होगा l
इस करार के सभी बिन्दु मिर्जा राजा की बुद्धिमत्ता एवं मुगल सल्तनत के प्रति निष्ठा के परिचायक थे l
महाराज की मिर्जा राजा से भेंट का समारोह तीन दिन तक चलाl मिर्जा राजा एवं शिवाजी ने मिलकर सब तय कर लिया तथा मुझे उसमें सम्मिलित नहीं किया ऐसी एतराजी दिलेरखान कर सकता था, इसका अंदाज मिर्जा राजा को थाl अतः एक दिन मिर्जा राजा ने शिवाजीराजे को दिलेरखान से भेंट करने के लिए अपनी तरफ से भेज दियाl उस समय दिलेरखान ने महाराज को एक अरबी तलवार व एक जामदड़ भेंट स्वरुप दीl दोनों के म्यान रत्नजड़ित थेl इसके साथ दो अश्व दिये, एक अश्व सोने के गहने पहने हुए थाl इसी तरह मिर्जा राजा ने भी महाराज को दो अश्व व एक हाथी दियाl दोनों अश्व सोने के गहने पहने हुए थे l
23 गढ़ मुगल सल्तनत में शामिल हुए तथा शिवाजीराजे शरण आये इस विजयश्री की खुशी मिर्जा राजा को थीl फिर भी वह निष्ठावान सिपाही शिवाजीराजे का उत्कर्ष व स्वयं का परमोत्कर्ष होगा ऐसी योजना बनाने के लिए तत्पर थाl उसके तेज दिमाग़ में योजना आकार लेने लगीl शिवाजीराजे ने दिल्ली के बादशाह से, औरंगजेब से उसके दरबार में जाकर मिलनाl पूरा दख्खन मुगल सल्तनत में शामिल करवाने के लिए यह कदम उठाना आवश्यक थाl मिर्जा राजा जो सोचते थे उसपर अमल भी करते थेl आगे महाराज के भाग्य का लेख क्या था यह बात अलग हैl परन्तु मिर्जा राजा के सोच के पीछे सद्भाव ही था, व्यावहारिक चतुराई थी व एक प्रयास था शिवाजीराजे के कल्याण का l
पुरंदर करार के बाद महाराज के नाम औरंगजेब ने एक फरमान भेजा था वह लेने के लिए महाराज मिर्जा राजा की छावनी में गये थे व निःशस्त्र ही गये थेl परन्तु मिर्जा राजा ने स्वयं के हाथ से रत्नजड़ित मुट्ठी की एक तलवार महाराज के कमर पर लटकायी व साथ में एक खंजीर भी उपहारस्वरुप दियाl इन निकट से हुई मुलाकातों के दौरान मिर्जा राजा ने महाराज को परखा तो उन्हें अहसास हुआ, महाराज की स्वधर्म पर आस्था है, उनके मन में स्वराज्य निर्मिति की उच्च आकांक्षा है, पुरंदर गढ़ पर जो सेना शेष थी उसके प्रति मन में ममत्व का भाव है, मन उदात्त व वृत्ति गंभीर है, मजबूरी में भी दासता से घृणा है, महाराज का व्यवहार, बोल-चाल इन सब गुणों के कारण मिर्जा राजा के मन में महाराज के प्रति अनायास आदरभाव उत्पन्न हुआ एवं उन्हें लगा शिवाजीराजा कोई असामान्य व्यक्तित्व है l
इस दूसरी मुलाक़ात के अंत में मिर्जा राजा ने अपना विचार महाराज के समक्ष रखा-शिवाजीराजे व औरंगजेब की भेंट का विचार l
महाराज के लिए यह एक भयंकर योजना थी क्योंकि दिल्ली दरबार में जाना अर्थात औरंगजेब के समक्ष कुर्निसात करना व यह असंभव थाl माँसाहेब के शिवबा की गर्दन झुकती थी केवल साधुसंतों के सामने, माँसाहेब के सामने, अपने से उम्र में बड़ों के सामने, तुलजाजी के सामने, अपने प्रदेश के जल-थल-वृक्ष -पहाड़ों के सामने, सह्याद्री के सामने, स्त्रियों व गौमाता के सामनेl कारण माँसाहेब व दादोजी कोंडदेव ने यही संस्कार महाराज को दिये थे l निरन्तर
सन्दर्भ -- राजा शिवछत्रपति
लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे
संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम
प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल
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