दीवाल पोत दूंगा

Responsive Advertisement

Ticker

6/recent/ticker-posts

शिवाजी महाराज के सहयोगी शिवा काशीद एवं बाजीप्रभु देशपांडे भाग एक...भाग दो समय निकालकर पड़े जरूर

 प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल क्षेत्र स प्र प्र:

 हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 28 = शिवाजी महाराज के सहयोगी शिवा काशीद एवं बाजीप्रभु देशपांडे भाग एक


अफजलखान के पराभव के बाद आदिलशाही दरबार में फिर से एक बार अफजलखान का बेटा फाज़ल-खान एवं रणदुल्लाखान का बेटा रुस्तुमेजमान के नेतृत्व में सेना शिवाजी महाराज को परास्त करने के लिए भेजी गयीl दोनों के मन में प्रतिशोध की आग थीl फ़ौज मिरज तक आयी थी, महाराज पन्हाळगड़ पर थेl महाराज केगुप्तचर खबरें ला रहे थे तथा महाराज योजना बनाकर प्रत्येक को जिम्मेदारी दे रहे थे lफाज़लखान की फ़ौज का सामना नेताजी पालकर से हुआ और 'पळता भुई थोडी'अर्थात भाग जाने के लिए भी जमीन कम थी ऐसी अवस्था हुई एवं दरबारी फ़ौज हारकर वापस पलट गयीl दिनांक 28 दिसंबर 1659

आदिलशाह एवं बड़ी साहेबा चिंताग्रस्त थे, उन्हें डर सता रहा था कि एक दिनशिवाजी बीजापुर आकर आदिलशाही समाप्त तो नहीं करेगा!आदिलशाह अब सोचने लगा शिवाजी को रोकने के लिए किसे भेजा जाए? उसेअचानक याद आया तेलंगाना में कर्नुळ का सरदार सिद्दी जौहर!उसे बुलाया गयाl वह अपनी फ़ौज के साथ बीजापुर में दाखिल हुआl सिद्दीकी सेना के संख्याबल के बारे में मत-भिन्नता है-कोई बीस हजार, कोई पच्चीस हजार तो कोई पैतिस हजार बताता है l

सिद्दी जौहर मिरज की ओर आ रहा था, महाराज पन्हाळा प्रान्त में थे, उन्होंने मूर्तिजाबाद गढ़ को अपने अधिपत्य में करने के लिए घेर रखा था lऐसे समय महाराज ने फिरसे विवेक से काम किया, वे मूर्तिजाबाद से निकलकर पन्हाळगड गए क्योंकि खुले मैदान में इतनी बड़ी सेना का सामना करना कोई समझदारी नहीं थीl फिर एक प्रश्न मन में यह भी आता है कि महाराज पन्हाळगढ़ क्यों

गये? प्रतापगढ़ अथवा राजगढ़ क्यों नहीं गये? उसका कारण था प्रतापगढ़, राजगढ़, पुरंदर यह सारे दुर्ग आक्रमण के लिए कठिन थे अर्थात शत्रु इन्हें आसानी से जीत नहीं सकता था परन्तु ये सारे दुर्ग स्वराज्य के अंतर्भाग (बीचो-बीच )

में थेl पन्हाळगड स्वराज्य के सरहद पर थाl महाराज अगर प्रतापगढ़, राजगढ़ अथवा पुरंदर पर जाते तो शत्रु भी पीछा करता हुआ वहाँ तक जाता एवं जनता को परेशान करता, उसपर अत्याचार करताl महाराज द्वारा स्वराज्य का संकल्प ही जनता के सुकून-चैन के लिया गया था तो वे ऐसा कैसे होने देते? दूसरा एक और कारण था पन्हाळगड दुर्गम था, बरसाती मौसम की आहट भी आ चुकी थी अतः महाराज ने विचार किया सिद्दी ऐसे मौसम में अधिक दिनों तक दुर्ग को घेरकर नहीं रह सकताl नेताजी पालकर भी बाहर मुहीम पर थे वे भी अपनी सेना के साथ सिद्दी पर बाहर से आक्रमण करेंगे तो सिद्दी पिछड़ जायेगाl महाराज पन्हाळगड पर आये दिनांक

02 मार्च 1660-वर्षप्रतिपदा का दिन -शार्वरीनाम संवत्सर।

सिद्दी जौहर की ताकत दिन-बदिन बढ़ती जा रही थीl स्वराज्य का महत्व न जानने वाले मराठा सरदार महाराज के प्रति मन में द्वेष की भावना रखते थे वे भी अपनी सेना के साथ आकर सिद्दी से मिले, इनमें कुछ भोसले भी थे एवं कुछ जाधव भी थेl

सिद्दी ने पन्हाळगड को घेर लियाl उसने सोचा दुर्ग पर अनाज व घोड़ों के लिए घास समाप्त होने पर तो शिवाजी को नीचे उतरना ही पड़ेगाl वर्षों लग जाये तो भी शिवाजी हाथ में आने तक अब यही, पन्हाळा के नीचे ही रुकना है lदोनों ओर से कोई भी पीछे नहीं हट रहा थाl उत्तर को प्रतिउत्तरl अब सिद्दी व फाज़लखान सोचने लगे लम्बी दूरी पर गोले फेंकने वाली तोपे हो तो लड़ाई थोडी आसान भी होगी एवं आगे भी बढ़ेगीl दोनों ने अंग्रेजों से तोपे खरीदने का विचार कियाl सिद्दी ने अपने आदमी को राजापुर भेजा तथा हेंरी से तोपों का सौदा करने के लिए कहाl पहले तो हेंरी इसके लिए तैयार नहीं हुआ क्योंकि कुछ दिन पहले दोरोजी ने आक्रमण कर उसके एक आदमी को बंदी बनाया व माल दबोच लिया थाl परन्तु फिर उसने सोचा सिद्दी जैसे शक्तिशाली शत्रु से शिवाजी नहीं बचेगा तो जिसकी जीत

होगी उसका साथ देने में समझदारी हैl उसने सिद्दी को तोपे दी एवं उसके साथ तोपची भी दिये-दिनांक 10 अप्रेल 1660 अंग्रेजों ने गद्दारी की परन्तु वह तोप दुर्ग को कुछ नुकसान नहीं पहुँचा सकी क्योंकि महाराज ने दुर्ग को अभेद्य बनाया था l निरन्तर

सन्दर्भ  -- राजा शिवछत्रपति

लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे

संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम 

 हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 29 = शिवाजी महाराज के सहयोगी शिवा काशीद व बाजीप्रभु देशपांडे  भाग दो

सिद्दी का पहरा (घेरा)अभेद्य था, महाराज को नीचे से कुछ भी खबर नहीं मिल पा रही थीl कुछ लोगों ने घेरा भेदकर बाहर जाने का प्रयत्न किया परन्तु वे शत्रु के हाथों मारे गयेl

पन्हाळगड के वायव्य दिशा में विशाळ गढ़ की भी सिद्दी ने घेराबन्दी कर रखी थींl इसके साथ दूरदर्शिता दिखाते हुए बारिश से सैनिकों की सुरक्षा हेतु उसने छत बांधने का काम शुरू किया ताकि बारिश के कारण पहरा ढीला न पड़ जाये l

दुर्ग पर महाराज आस लगाकर बैठे थे, बाहर से नेताजी पालकर अपनी सेना के साथ आक्रमण कर घेराबंदी भेदने का काम करेंगे परन्तु ऐसी भी कोई खबर नहीं मिल पा रही थी l

दूसरी ओर से आदिलशाह का पत्र मिलने पर औरंगजेब ने भी अपनी ओर से फ़ौज रवाना कीl यह फ़ौज औरंगजेब का मामा शाइस्ताखान के नेतृत्व में रवाना हुईl साथ में बड़ी संख्या में अश्वदल व थलदल मिलकर एक लाख की सेना थीl तोपे, बारूद, तमाम शाही हरबे-जंग आदि दिया गया थाl औरंगजेब मुस्लिम सल्तनत स्थापित कर हिन्दुओं को समाप्त करना चाहता था जिसमें शिवाजी बाधा उत्पन्न कर रहा थाl इसके साथ सन 1657 के अप्रेल व जून माह में महाराज ने जुन्नर व अहमदनगर थानों पर छापा मारकर 900 घोड़े, कपड़ा, जड़जवाहर एवं चालीस लाख रूपये लूट लिए थेl इस कारण शिवाजी महाराज को रोकना औरंगजेब भी चाहता था l

आदिलशहा व औरंगजेब दोनों की मिलाकर डेढ़ लाख की फ़ौज थी तथा महाराज के पास पंद्रह हजार की फ़ौज थी l

औरंगजेब ने बड़ी फ़ौज लेकर शाइस्ताखान को भेजा तो था परन्तु उसने यह भी बताया था कि आदिलशाही फ़ौज को जाकर मिलने के स्थान पर मुगलों की अपनी अलग मुहिम चलाना है l

पन्हाळगड पर छः हजार सैनिक थे एवं साथ में लिपिक, नाईक, सबनिस, हवालदार, कारखानिस आदि सब थेl

त्रम्बक भास्कर, गंगाधरपंत थे, बाजीप्रभु देशपांडे तथा उनके भाई फुलाजी देशपांडे थेl इतने दिनों के बाद भी पहरा अभेद्य था, उधर मुगल सेना स्वराज्य समाप्त करने के इरादे से ही लड़ रही थीl जनता पर अत्याचारों का दौर एक बार फिरसे प्रारम्भ हुआl

ऐसे में महाराज का और अधिक पन्हाळगड पर रुकना ठीक नहीं था l

दिनांक 12 जुलाई 1660 की सुबह महाराज ने प्रमुख साथियों को बुलाकर बताया "अब मुझे गढ़ से नीचे उतरना ही होगा"यह कैसे संभव है? सभी चिंताग्रस्त थे l

महाराज ने योजना सबके समक्ष रखी -महाराज के गुप्तचर गढ़ से नीचे उतरेंगे व मुआयना करेंगे कि क्या इस घेरे से निकलने के लिए कही छोटीसी जगह है क्या? कार्य कठिन थाl परन्तु सभी साथी महाराज के लिए, स्वराज्य के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार थेl इन सबके नाम इतिहास को भी नहीं मालूमl रात के समय हेरों ने नीचे जाकर देखाl एक स्थान ऐसा था जहाँ पहरा नहीं था, स्थान संकरा व ऊँचा-नीचा होने के कारण पहरा लगाते समय छूट गया थाl सुबह गुप्तचर गढ़ पर वापस आये एवं उन्होंने महाराज को खबर दीl आशा की किरण नजर आयी l निरन्तर

सन्दर्भ पुस्तक -- राजा शिवछत्रपति

लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे

संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम



अपील



Post a Comment

0 Comments