हिंदवी
स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 36 = पहली सर्जिकल स्ट्राइक - शाइस्तेखान की उँगलियाँ काटना भाग तीन
कोंकण की मुहिम सफल कर राजे राजगढ़ पर आये जनवरी 1662 ।महाराज सोच रहे थे, मुगल फ़ौज के एक-एक सरदार को पराभुत करते हुए मुगल सल्तनत समाप्त नहीं होगीl अब जड़ों पर प्रहार करना आवश्यक हैl होलिका दहन व रंगपंचमी के बाद शाइस्तेखान को स्वराज्य से बाहर करने की योजना पर महाराज ने विचार करना प्रारम्भ कियाl सीधे लाल महल पहुँचकर खान को उडाने की योजना थीl आसान नहीं था यह क्योंकि पुणे की सरहद पर खान की फ़ौज का कड़ा पहरा था व लाल महल परिसर में 75,000 फ़ौज थीl लाल महल के अंदर जाने के लिए केवल एक बड़ा दरवाजा था, अंदर 50 कमरे थे l
राजगढ़ पर गुप्त योजना तैयार हो रही थीl महाराज के गुप्तचरों से महाराज के पास लाल महल की खबरें प्रतिदिन पहुँच रही थीl यह रमजान का महिना थाl शाइस्तेखान, उसका परिवार, सैनिक उपवास कर रहे थेl दिनभर पूर्ण उपवास व रात को खाना खाते थेl इसके कारण रात को अत्यधिक भूख लगने से अधिक खाना खाया जाता था, भारी भोजन एवं रात्रि का समय अतः सब गहरी नींद में सो जाते थेl यह सब ध्यान में रखते हुए आक्रमण के लिए महाराज ने यही समय निश्चित कियाl
नवसंवत्सर - शुभकृत संवत्सर - चैत्र प्रतिपदा - वर्ष प्रतिपदाl महाराज ने तिथि व तारीख तय की, चैत्र अष्टमी दि.6 अप्रेल 1663, समय मध्यरात्र बारह बजे के बादl प्रत्येक को अपनी -अपनी जिम्मेदारी बता दी गयी, सब तैयार थे, गढ़ पर उत्साह का वातावरण थाl दो हजार सैनिकों के साथ महाराज राजगढ़ के पद्मावती माची पर प्रस्थान हेतु तैयार थेl महाराज के साथ थे नेताजी पालकर, मोरोपंत, बाबाजी , चिमणाजी देशपांडे, सेर्जेराव एवं चांदजी जेधेl उनमें से चार सौ मराठा महाराज के साथ थेl लाखों की फ़ौज का सामना ये लोग करनेवाले थेl इस बात से इनकी वीरता की कल्पना हम कर सकते हैl फ़ौज को दो भागों में बाँट दिया गया, एक भाग का नेतृत्व मोरोपंत व दूसरे भाग का नेतृत्व नेताजी कर रहे थे l
महाराज के गुप्तचरों ने यह भी देख लिया था कि लाल महल के आसपास क्या स्थिति है? सैनिक/पहरेदार कितने-कितने कहाँ-कहाँ तैनात रहते है?
महाराज ने चप्पे-चप्पे पर अपने लोगों को तैनात किया थाl संकेत देने के लिए उनके पास नगाड़े, बिगुल ऐसे संसाधन दिए थेl मोरोपंत एवं नेताजी के पास जो फ़ौज थी उसको लाल महल से दो मील की दूरी पर रुकने के लिए कहा गया थाl कुछ चुनिंदा सैनिकों के साथ महाराज स्वयं छापा मारनेवाले थे कारण उन्हें वहाँ की पूर्ण जानकारी थी, इसका कारण था राजगढ़ पर आने के पहले लाल महल उनका निवासस्थान थाl छापामारी व झडप के पश्चात महाराज व उनके साथ के सैनिक सिंहगड की ओर जायेंगे यह तय थाl वहाँ सर्जेराव जेधे महाराज का घोड़ा लेकर तैयार रहनेवाले थे, उसपर सवार होकर महाराज आगे निकल जायेंगे ऐसी योजना थी l निरन्तर
सन्दर्भ -- राजा शिवछत्रपति
लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे
संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम
स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 37 = पहली सर्जिकल स्ट्राइक - शाइस्तेखान की उँगलियाँ काटना भाग चार
सम्पूर्ण योजना में प्रत्येक व्यक्ति पर एक निश्चित जिम्मेदारी थीl एक की गलती से भी सभी खान के सेना के हाथों मारे जातेl बापूजी मुदगल देशपांडे लाल महल में सेवा देते थेl उनके दो बेटे बाबाजी व चिमणाजी इनको भी लाल महल के बनावट की पूर्ण जानकारी थी l
जो चार सौ सैनिक महाराज के साथ थे, उनमें से दो सौ सैनिक महाराज व चिमणाजी के साथ थे जिसमें कोयाजी बान्दल व चांदजी जेधे भी थे l
आज रमजान के छटे चाँद की रात थीl खान की फ़ौज पेटभर खाना खाकर सो गयी थी, केवल पहरेदार जग रहे थे lलाल महल के एक बड़े दालान में पर्दे लगाकर अनेक कमरे बनाये गये थेl इस दालान में खान व उसका जनानखाना थाl इनके साथ दासियाँ, नौकर-चाकर भी थे सब गहरी निद्रा में थेl
महाराज, चिमणाजी व सैनिक अब शहर की ओर बढ़ रहे थेl खान का पहरा कडक थाl स्वयं महाराज एवं अन्य अपने चेहरे पर ऐसे भाव लिये चल रहे थे जैसे वे शिवाजी को जानते ही नहीं हैl जब सबने पहरे की कक्षा में प्रवेश किया पहरेदारों ने पूछताछ की, "कौन हो?कहाँ से आये?"सबका जवाब एक ही था, "हम छावनी के सिपाही है, छावनी के बाहर की दूसरी चौकियों से अपना काम समाप्त कर वापस आये हैंl "अब प्रश्न मन में आता है-मुगलों ने मराठों को वेशभूषा से पहचाना नहीं क्या? उत्तर ये है मराठा है यह पहचाना होगा परन्तु आपत्ति नहीं ली क्योंकि खान की फ़ौज में जाधव, घाटगे, गाढे, कोकाटे, गायकवाड, काकडे, पवार, भोसले, होनप आदि मराठा सरदार थेl छावनी पर सीधे आक्रमण नहीं हो इसलिए छावनी से एक मील की दूरी तक पहरेदार पालियों में घूमते रहते थेl खान के पास फ़ौज तो बड़ी थी पर काम में ढीलाई तथा मूर्खता थीl पिछले चौकी पर इन मराठों से पूछताछ की गयी होगी ऐसा मानकर आगे अधिक पूछताछ नहीं हो रही थीl
लाल महल में रसोईघर था, उसके पास वापरने के लिए पानी भरकर रखा थाl इस रसोईघर से सीधे जनानखाने में जाने का रास्ता थाl जनानखाना अलग व सुरक्षित हो इसलिए यह रास्ता मिट्टी एवं इटों की दीवार से बंद किया गया थाl मोटे-
मोटे पर्दे लगाकर जनानखाने को बंद किया गया था कारण मुगलों में कड़क पर्दा प्रथा रहती हैl रसोईघर में नौकर-चाकर सोये थेl महाराज हमेशा अपनी योजनाएँ अभ्यासपूर्ण तरीके से, तर्क, निरिक्षण, समय की गणना एवं विवेक से करते थे तथा उसपर अमल उनके साथी करते थेl योजना न करते हुए भाग्य पर निर्भर रहना यह महाराज के स्वभाव में ही नहीं थाl उत्कृष्ट पूर्वनियोजन अर्थात आधी सफलता इस बात पर महाराज विश्वास करते थे l
रसोईघर के पिछवाड़े में एक दरवाजा था, इसको ध्यान में रखकर महाराज ने योजना बनायी थीl महाराज अपने साथियों सहित उस दरवाजे से रसोईघर में आयेl बिना आवाज किये चिमणाजी बाबाजी एवं उनके सैनिक अंदर आ गयेl सबके हाथों में तलवारें थीl रसोईघर में झाँककर देखने पर उन्होंने देखा कुछ रसोईयें सो रहे थे व कुछ नौकर बर्तन साफ कर रहे थेl कुछ सुबह का खाना बनाने की तैयारी कर रहे थे क्योंकि रमजान में अलसुबह खाना खाया जाता है फिर दिनभर उपवास रहता हैl बीच की दीवार तोड़ने पर रसोईघर में काम करनेवाले लोग सावध हो जाते इसलिए महाराज के सैनिकों ने बिना आवाज किये उन सबको यमलोक पहुँचायाl दीवार को तोड़ा गया परन्तु दरवाजा बंद था, उसको खोलने का प्रयत्न करते समय आवाज हुई एवं रसोईघर में सोये खान के नौकर की नींद खुल गयी, वह सीधा खान के पास पहुँचाl दरवाजा खुलने पर सर्वप्रथम चिमणाजी, फिर महाराज फिर सैनिक जनानखाने में गयेl इतने में नौकर ने खबर दी, "रसोईघर में कुछ गड़बड़ है, बहुत आवाजे आ रही हैl"खान नींद में था, उसने कहा, "रसोईयें खाना बना रहे होंगेl" स्वयं खान सहित किसीको भी जो चल रहा था उसकी कल्पना भी नहीं थी तथा ऐसा कुछ होगा इसकी आशंका भी नहीं थी l निरन्तर
सन्दर्भ -- राजा शिवछत्रपति
लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे
संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम
हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 38 = पहली सर्जिकल स्ट्राइक - शाइस्तेखान की उँगलियाँ काटना भाग पाँच
महाराज व उनके साथी महल में घुसकर पहरेदारों को यमलोक पहुँचा रहे थेl जब ये सब उस दरवाजे से अंदर आ रहे थे उसी समय दासियों की नींद खुली एवं उन्होंने तलवार हाथ में लिये सबको अंदर आते हुए देखाl दासियाँ खान के पास पहुँची तथा तलवारे लेकर बहुत सारे लोग महल में घुस गये हैं, यह खबर उन्होंने खान को दीl वे चिल्ला रही थी, इधर से उधर भाग रही थीl अब खान की नींद खुली, परिस्थिति भाँपकर वह भाला एवं धनुष-तीर लेकर निकलाl खान ने तीर छोड़ा, जिससे एक मराठा आहत होते-होते बचा, वह खान पर झपटा एवं उसने तलवार से वार किया परन्तु इतने में दासियों ने दीप बुझा दियेl इसके साथ दो मराठा वीर खान के सामने रखे पानी की टंकी में गिर गयेl उन बुद्धिमान दासियों ने खान को एक तरफ खींच लियाl अंधेरे में तलवारे चल रही थी परन्तु निशाना कौन बन रहा है, यह बात पता नहीं चल रही थीl महाराज को खान चाहिये था, महाराज उसे ढूंढ रहे थेl
बाबाजी भी आवेश से तलवार चला रहा थाl इतने में कुछ पहरेदार सावध होकर प्रतिकार के लिए खड़े हो गयेl इसके पहले मराठों ने बहुत से मुगल सैनिकों को जहाँ सोये थे वही काट डालाl चारों ओर बस चिल्लाने की आवाज थीl दोनों ओर के सैनिक चिल्ला रहे थेl अचानक अंदर कौन आया? कितने लोग है ये? बस प्रश्न ही प्रश्न, उत्तर किसीके पास नहीं थाl अचनाक आग लगने पर लोग जैसे चिल्लाते है, वैसा माहौल थाl इतने में कुछ मराठा सैनिक नगाड़खाने की ओर दौड़े, वहाँ वाद्ययन्त्र बजानेवाले लोग बैठे थे, उन्हें गुमराह करते हुए मराठों ने बताया, "खानसाब का हुक्म है बजाओ"हुक्म की तामिल करते हुए उन्होंने भी अपना कार्य प्रारम्भ कियाl वाद्य बज रहे थे, अंदर चिल्लाने की आवाज, यह सुनकर बाहर की सेना लाल महल की ओर दौड़ी परन्तु मराठों ने दरवाजे अंदर से बंद कर दिये थे इसलिए मुगल सैनिक अंदर नहीं आ पा रहे थेl नगाडों की आवाज में मराठे खान की सेना को परास्त कर रहे थे l
इतने में खान का बेटा अबुल फत्तेखान जग गया तथा ऐसी परिस्थिति में भी खान को बचाने तलवार लेकर दौड़ा परन्तु वह भी मारा गयाl चांदजी व कोयाजी भी जख़्मी हुए थेl खान जान मुट्ठी में लेकर बैठा था l
जनानखाने की महिलाएँ खान को लेकर एक दालान में गयी, उस दालान में पर्दे लगे हुए थेl महाराज वही थे, महाराज की तलवार से पर्दा फटा, खान उसकी तलवार लेने उठा एवं महाराज ने उसे देख लिया तथा उसपर तलवार से वार कियाl घुप्प अंधेरा था, महाराज ने अंदाज से वार किया परन्तु खान बच गया, उसके दाहिने हाथ की तीन उँगलियाँ कटीl इसलिए कहा जाता है-जान पर बनी, उँगलियों पर निभ गयी l
महल के पीछे से किसी पहरेदार ने सीढ़ी लगायी तथा वह दीवार पर चढ़कर महल के अंदर कूद गया परन्तु किसी मराठा वीर ने वही उसका शिरच्छेद किया l
अब छावनी में सबकी नींद खुली एवं सब चिल्लाने लगे,"गनिम आया!दगा!दगा!"उनके साथ मराठा सैनिक भी चिल्लाने लगे, "गनिम, गनिम!कहाँ है गनिम?"ऐसे में किसीने लाल महल का दरवाजा जो अंदर से बंद था, खोल दिया, मुगल सेना गनिम!गनिम!चिल्लाते हुए अंदर आयी तथा गनिम!गनिम!चिल्लाते हुए मराठों की फ़ौज इस भीड़ का लाभ लेकर महल से बाहर निकल गयीl छावनी के बाहर मोरोपंत एवं नेताजी महाराज के इशारे की राह देख रहे थेl इतने में महाराज वहाँ पहुँच गयेl महाराज सहित सभी, जो इशारे की राह देख रहे थे, चप्पे-चप्पे पर खड़े थे, अपनी जिम्मेदारी पूर्ण करने के लिए तत्पर थे सब तेज गति से सिंहगढ़ की ओर निकल गयेl
पुणे से सिंहगढ़ की दूरी 14 मील है इसलिए महाराज बहुत जल्दी गढ़ पर पहुँच गयेl महाराज को लग रहा था खान ख़तम हो गया, क्योंकि अंधेरे के कारण खान जख़्मी हुआ या मारा गया यह स्पष्ट नहीं हो पाया था l
यह प्रसंग हमें याद दिलाता है कालिया मर्दन की, कालिया के घर में जाकर ही श्रीकृष्ण ने उसका मर्दन किया थाl महाराज एवं मराठों के लिए आसान नहीं था, चारों तरफ से पहरे से सुरक्षित लाल महल में, एक लाख से भी अधिक सैनिकों की आँखों में धूल फेंककर प्रवेश करनाl परन्तु एक बार फिर "गनिमी कावा"अर्थात अत्यंत धूर्तता से किया हुआ आक्रमण, यह योजना सफल रहीl इतनी बड़ी फ़ौज, पाँच सौ हाथी, तोपखाना, बारूद एवं अधूरी दक्षता का कोई लाभ खान को नहीं मिलाl महाराज प्रत्येक युद्ध में नयी योजना बनाते थे, पुराने की पुनरावृत्ति नहीं होती थी अतः शत्रु सोचकर भी सावध नहीं हो पाता था l निरन्तर
सन्दर्भ -- राजा शिवछत्रपति
लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 39 = पहली सर्जिकल स्ट्राइक -- शाइस्तेखान की ऊँगलियाँ काटना भाग छह
लाल महल रक्त से लाल हुआl खान का एक बेटा मारा गया, दो बेटे जख़्मी हुएl एक दामाद, एक सेनाधिकारी, चालीस बड़े सरदार, बारह महिलाएँ सब मारे गयेl मराठा स्त्रियों की तरफ देखते भी नहीं, यह उनकी विशेषता है परन्तु अंधेरे के कारण यह अनहोनी हुईl इसके अलावा कितने रसोईये, नौकर-चाकर हताहत हुए यह संख्या इतिहास को ज्ञात नहींl खान की स्थिति बेहद शर्मनाक थी, मारा जाता तो बलिदानी कहलाताl ना बलिदानी, ना शेर, ना सलामत, मूर्खता सामने आयी वह अलगl इस सर्जिकल स्ट्राइक से खान का परिवार, इज्जत सबकुछ समाप्त हुआ एवं इस हार को ताजिंदगी वह ऊँगलीयाँ याद दिलाती रही होंगी l
छावनी आश्चर्य से देख रही थी, सोच रहे थे सब, यह कैसे हो सकता है? फिर एक बार सबने सोचा शिवाजी शैतान है, प्रकट होता है तथा गुप्त भी होता है l
इस हार की जिम्मेदारी जसवंतसिंह के नाम पर दर्ज हुईl कारण वह मराठा था, मिला होगा शिवाजी से एवं की होगी गद्दारी खान के साथ l उसके पास कुछ सेना देकर तथा मुहिम चालू रखने का हुक्म देकर खान दि.08अप्रेल 1663 को पुणे से औरंगाबाद के लिए चल पड़ाl तीन साल खान ने पुणे को परेशान किया एवं छापे का प्रभाव देखो, उसके तीन दिनों बाद वह शिवाजी से पीछा छुड़ाकर निकल गयाl महाराज ने उस एक लाख की फ़ौज को अपने केवल चार सौ सिपाहियों के सहयोग से कम से कम समय - केवल एक घंटे में खान को परास्त कर पुणे छोड़ने पर मजबूर कियाl वाकई यह सर्जिकल स्ट्राइक कहने जैसी घटना थीl चैत्र अष्टमी की रात्रि को आक्रमण एवं सुबह होते-होते विजय, रामनवमी की ख़ुशी दुगनी हो गयी l
अप्रेल माह की गर्मी के कारण औरंगजेब दिल्ली से कश्मीर जा रहा था, शाइस्तेखान के शिकस्त की खबर उसे मिलीl केवल शिकस्त ही नहीं फ़जीहत का समाचार मिला एवं औरंगजेब क्रोधित हुआl इतनी बड़ी फ़ौज, पैसा युद्धसामग्री होते हुए भी मुहिम बेनतीजा रहीl क्रोध का नतीजा खान को भुगतना पड़ा, औरंगाबाद की सूबेदारी से उसे हाथ धोना पड़ाl मुगल सेना तथा स्वयं औरंगजेब जिसे नरक की नौकरी मानते थे ऐसे बंगाल-असम की सूबेदारी की नौबत खान पर आयीl औरंगजेब ने इस आशय का फरमान शाइस्तेखान को भेजाl फरमान के अनुसार खान 01 दिसंबर 1663 को बंगाल की ओर रवाना हुआ l
सन्दर्भ -- राजा शिवछत्रपति
लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे
संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम
प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल
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