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हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला = पहली सर्जिकल स्ट्राइक - शाइस्तेखान की उँगलियाँ काटना भाग दो

 


हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला = पहली सर्जिकल स्ट्राइक - शाइस्तेखान की उँगलियाँ काटना भाग दो

अब पुणे के इशान्य दिशा में केवल एक दुर्ग स्वराज्य की भगवा निशानी लिये खड़ा था - संग्रामदुर्ग - चाकण का दुर्ग बाकी चारों ओर हरे निशान थे खान की नजर अब चाकण के दुर्ग पर गयीl बड़ी तोपे व फ़ौज लेकर खान स्वयं मुहिम पर निकलाl खान सोच रहा था यह मुहिम आसान होगी परन्तु मराठों ने खान को दुर्ग के ज्यादा नजदीक आने नहीं दियाl मराठों की तोप के गोले एवं बन्दुक की गोलियों से मुगल सेना परेशान हो गयीl खान ने चारों ओर से दुर्ग को घेर लिया - दि.21 जून 1660 । मुगल सेना द्वारा चलायी गयी तोपे तथा बंदूके सब बेकार हो गयीl खान ने एक सुरंग बनाने की योजना बनायी क्योंकि पहरा लगाकर खान थक गया थाl छावनी से गढ़ की दीवार तक सुरंग बनाकर बारूद भरकर दुर्ग की दीवार उडाने की योजना थी - दि.14 अगस्त 1660 ।इतना होकर भी मराठों ने हार नहीं मानी, दिनभर युद्ध होता रहाl परन्तु मराठों की फ़ौज संख्या में कम थी तथा बारूद से एक तरफ दुर्ग आहत हुआ एवं मुगल सेना गढ़ के अंदर आ गयी व पचपन दिनों बाद दि.15 अगस्त 1660 को गढ़ पर मुगलों का कब्जा हुआl बरसात का मौसम होने के कारण शाइस्तेखान चाकण में ही रुकाl अब तक चाकण के गढ़ के अलावा खान की कोई भी मुहिम सफल नहीं हुई थीl पहाड़ी दुर्ग जीतना आसान नहीं है यह खान को समझ में आ गयाl अब उसने अपने सरदारों को कोंकण प्रान्त पर कब्जा करने के लिए भेजाl कारतलबखान एवं रायबाघन इस मुहिम पर निकलेl पुणे-चिंचवड-

तळेगाँव-वडगाँव-मळवली ऐसा मार्ग तय करते हुए खान लोहगड के दक्षिणोत्तर मार्ग से कोंकण के लिए निकलाl ऊँचे पहाड़, संकरा मार्ग, घनघोर जंगल ऐसा मार्ग थाl इस मार्ग से तुंगारणा में उतरकर, सह्याद्री चढ़कर उम्बरखिंड से कोंकण जाने की उसकी योजना थीl महाराज के गुप्तचर खबरें ला रहे थेl जब कारतलबखान दुर्गम स्थान पर पहुँचा महाराज ने नेताजी पालकर एवं फ़ौज को भेजा उनसे युद्ध करने के लिएl महाराज स्वयं उम्बरखिंड के मुहाने पर खड़े थेl मुगल फ़ौज आगे भी नहीं जा पा रही थी व पीछे भी नहीं जा पा रही थीl अंत में खान ने शरणागती का मार्ग अपनाया, वकील भेजाl महाराज ने हाथी, घोड़ें, तोपे, खजाना सब लेकर उसे छोड़ दियाl उसने विचार किया जीवित रहे यह क्या कम है? महाराज स्वयं कोंकण क्षेत्र में गये एवं आदिलशाही का वह क्षेत्र स्वराज्य में शामिल करवायाl

इधर पुणे में शाइस्तेखान की उस प्रचंड फ़ौज के खाने-पीने के लिए उसने पूरा पुणे प्रान्त निचोड़ डाला l निरन्तर

सन्दर्भ -- राजा शिवछत्रपति

लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे

संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम

प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल 

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