हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 30 = शिवाजी महाराज के सहयोगी शिवा काशीद व बाजीप्रभु देशपांडे भाग तीन
अब आगे की योजना थी, युक्ति का अवलम्ब कर सिद्दी के छावनी को बेफिक्र करनाl महाराज ने सिद्दी जौहर के लिए गंगाधरपंत के हाथ एक पत्र भेजाl सिद्दी के खेमे में खबर पहुँची शिवाजी का वकील पत्र लेकर आ रहा है l
महाराज ने अत्यंत विनम्रता से लिखा था, "आप पन्हाळगढ़ की ओर आ रहे है यह खबर मुझे मिली तब मेरे मन में आपसे भेंट करने की इच्छा निर्माण हुई परन्तु डर एवं दुर्भाग्य के कारण उस समय मैं वैसा नहीं कर पायाl रात्रि के समय केवल कुछ लोगों को साथ लेकर मैं आपकी सेवा में हाजिर हो जाऊंगाl फिर आपका कृपायुक्त उपदेश ग्रहण कर आपका कृपापात्र बनने का प्रयत्न करूँगाl मैंने जो अपराध किये है उनके लिए मुझे क्षमा करना तथा बड़े होने के नाते मेरी रक्षा भी करनाl मैं स्वयं आपसे मिलने के लिए तैयार हूँ एवं मेरी सारी दौलत मैं बादशाह के नाम कर उनके सुपूर्द करने के लिए तैयार हूँl "
बादशाह द्वारा दी गयी सूचनाएं सिद्दी को बार-बार याद आ रही थी कि शिवाजी धूर्त हैl परन्तु उसके सील-ठप्पे का पत्र व गंगाधरपंत के आर्जव से सिद्दी भी सोचने लगा यह तो बिनाशर्त शरण आने की बात है, मैं भी तो यही चाहता हूँl वह लिखित में आश्वासन दे रहा है, स्वयं मिलने आ रहा हैl अब अधिक सोचने की आवश्यकता सिद्दी को महसूस नहीं हो रही थीl सिद्दी सोच रहा था इतने अभेद्य घेरे को तोड़ पाना शिवाजी के लिए संभव नहीं है अतः अफजलखान के समय जैसे उसने किया वैसा कुछ कर पाना असंभव हैl सिद्दी ने सोचा यह तो अतुलनीय, अद्वितीय एवं सर्वश्रेष्ठ सफलता होगीl सिद्दी ने महाराज के आवेदन को स्वीकृत कर लिया lशिवाजी का वकील छावनी में अर्जी लेकर आया था तथा अर्जी स्वीकृत हुई, शिवाजी अनुबंध के लिए तैयार है यह खबर फ़ौज में पहुँची एवं अनायास कड़क घेरे में थोडीसी ढील आयीl शिवाजी बिनाशर्त भेंट हेतु तैयार है, यह खबर तो न मिली सफलता की भी ख़ुशी दे गयीl फ़ौज ने सोचा मुहिम समाप्त - यह महाराज की योजना का एक भाग था l
योजना का दूसरा भाग था दिनांक 12 जुलाई 1660 की रात को दस बजे बाद महाराज अपने हथियारों से सुसज्जित छः सौ थलदल सेनानियों के साथ पन्हाळगढ़ से नीचे उतरकर विशाळगढ़ की ओर रवाना होंगेl अर्थात विशाळगड को दो दरबारी सरदारों ने घेर रखा था यह बात महाराज नहीं जानते थेl दोनों तरफ खतरा ही था, परन्तु अभी यह करना भी आवश्यक था क्योंकि बारिश समाप्त होने के बाद सिद्दी पहरा और कड़ा करेगा यह महाराज जानते थे l अतः पूर्ण तयारी के साथ, दूर का सोचकर, तार्किकता से परिपूर्ण ऐसी योजना महाराज ने बनायी थीl गढ़ की जिम्मेदारी त्रम्बक पंत को देकर महाराज ने कहा, "गढ़ को मजबूत रखकर लड़ाई जारी रखनाl"
महाराज की योजना सुनकर उनके सभी साथियों में उत्साह व वीरश्री का संचार हुआl महाराज एवं स्वराज्य के प्रति इन सबकी निष्ठा थी तथा उसके लिए कितने भी शारीरिक श्रम करने की तैयारी यह उनकी विशेषता थी l
महाराज के साथ थे छः सौ मराठे, मर्द-शेर व स्वराज्य रक्षक, साथ में थे बाजीप्रभु देशपांडे, फुलाजी देशपांडे, बान्दल और देशमुखl एक पालकी में महाराज बैठे थे, साथ में दूसरी पालकी भी कहार ले जा रहे थे-दूसरी पालकी खाली थीl पूर्णिमा की रात थी, बारिश तेज थी, बिजली कड़क रही थी, बादल गरज रहे थेl रास्ता दिखानेवाले सबसे आगे थे, पीछे से अंधेरे को चीरते हुए तेज गति से बाकी दौड़ रहे थेl साथ में मशाल नहीं, दिया नहीं-12 जुलाई 1660 की रातl सिद्दी के घेरे तक पहुँचे, अगले क्षण क्या होगा मालूम नहींl प्रकृति भी साथ दे रही थीl तेज बारिश, बहता पानी, किड़ों की आवाज एवं न मिली सफलता की ख़ुशी की आगोश में सिद्दी के पहरेदार, गुप्तचरो ने जो जगह घेरकर रखी थी वहाँ तो पहरेदार थे ही नहीं तथा तेज बारिश के कारण अन्य स्थानों के पहरेदार रात्रि का समय होने के कारण अपने तम्बूओं में थे क्योंकि उन्हें खबर थी कि कल रात को शिवाजी सिद्दी से मिलने स्वयं आनेवाला है l निरन्तर
सन्दर्भ -- राजा शिवछत्रपति
लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे
संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम
Prastuti अशोक जी पोरवाल क्षेत्र स प्र प्र:
हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 31= शिवाजी महाराज के सहयोगी शिवा काशीद व बाजीप्रभु देशपांडे
भाग चार
महाराज की पालकी लेकर कहार व बाकी लोग दौड़ रहे थेl विशाळगढ़ की ओर जा रहे थेl घेरा(पहरे की सीमा)खतम हुआl पहरे में से 600 लोग बाहर निकल गए, किसीको पता भी नहीं चला जैसे की तुळजाभवानी ने उन्हें निःश्चेतना में सुला दिया हो, याद आती है वह कृष्ण जन्माष्टमी की रात, पहरेदार सो गए थे एवं वसुदेव कृष्ण को लेकर गोकुल जा रहे थेl यह उस आदिशक्ति की कृपा थी कि महाराज सिद्दी के पहरे से ही नहीं मगरमच्छ के जबडे से सुरक्षित बाहर निकल आये l
अब मुरमवाली जमीन समाप्त हुईl कीचड था, पत्थर थे, ऊँची-नीची जगह थी, घास उग आयी थी, काई थी पर इन सबकी परवाह किसे थी? सबका लक्ष्य एक महाराज सहित विशाळगढ़ पर पहुँचनाl विशाळगढ़ पर बाहर से पहरे की खबर महाराज को भी नहीं थी क्योंकि पन्हाळगढ़ पर नीचे से खबरें आना बंद था l
सिद्दी की छावनी छोड़कर महाराज एवं सैनिक बहुत आगे आ चुके थे, सोच रहे थे धोखा टल गयाl परन्तु इतने में ही उन्हें किसीने देख लिया, वे सिद्दी के गुप्तचर थे, दो या उससे अधिकl अब अंधेरे में उनको पकड़ना भी आसान नहीं था, उसमें समय गँवाने की अपेक्षा और तेज गति से विशाळगढ़ की ओर जाना ठीक है यह सोचकर वे दौड़ते रहे lबस, एक क्षण की देर तथा वह खाली पालकी सामने आयीl महाराज जैसा दिखनेवाला एवं महाराज जैसी वेशभूषा पहनकर एक व्यक्ति सामने आयाl गढ़ पर से नीचे उतरते समय ही उसने यह वेशभूषा पहनी थीl अब क्या करना है यह भी गढ़ उतरने से पहले योजना के भाग के अनुसार तय थाl वह व्यक्ति आगे आया, उस खाली पालकी में बैठ गयाl उस पालकी के साथ दस-पंद्रह लोग थे जो तय रास्ते से जा रहे थेl महाराज व उनके साथ बाजीप्रभु सहित अन्य लोग वन में घुस गयेl शत्रु घोड़े पर बैठकर पीछे से आएगा उसे चकमा देने के लिए यह सब योजना थीl महाराज की पालकी विशाळगढ़ की ओर दौड़ रही थीl खतरा टला नहीं था परन्तु इस योजना से दौड़ने के लिए कुछ अधिक घंटे मिल गये l
बाजी सोच रहे थे अबतक खबर सिद्दी तक पहुँच गयी होगी, अब वे पीछा करेंगेl बाजी के मन में एक ही चिंता थी महाराज को सुरक्षित विशाळगढ़ पहुँचाना हैl महाराज का मन दुःख से भारी था क्योंकि सैनिकों को हो रही परेशानी को वे देख रहे थे पर कुछ नहीं कर पा रहे थे तथा कह नहीं पा रहे थे कारण महाराज कैद थे अपने साथियों के प्रेम व निष्ठा में l
गुप्तचरो ने खबर सिद्दी को दी, "शिवाजी पालकी में बैठकर विशाळगढ़ की ओर भाग गयाl "सिद्दी पर वज्राघात हुआl इतने हजारों पहरेदारों के पहरे से कैसे भागा शिवाजी? सिद्दी की सोचने की शक्ति पर जैसे ताला पड़ाl अब मैं आदिलशाह को क्या मुँह दिखाऊँ? दिगभ्रमित था वह l
सिद्दी जौहर के सामने सिद्दी मसूद खड़ा थाl उसने मसूद को कहा "शिवाजी का पीछा करों"मसूद सिद्दी का दामाद व निष्ठावान सैनिक थाl उस कीचड़ व काई भरे रास्ते पर मसूद के सैनिक दौड़ रहे थे बस उन्हें शिवाजी चाहिए था l
कड़कती बिजली के प्रकाश में पेड़, पत्थर व कीचड दिख रहा थाl छावनी से बहुत दूर जाने पर उन्हें एक पालकी व दस-पन्द्रह सैनिक दिखायी दियेl मसूद के सैनिकचिल्लाए,"शिवाजी!शिवाजी!पकड़ो, पकड़ो"एक क्षण में मसूद के सैनिकों ने पालकी को घेर लियाl मसूद ने पूछा,"कौन है पालकी में?"सैनिकों ने कहा,"शिवाजी महाराज "
शिवाजी? मसूद की खुशी का ठिकाना नहीं था, उसने उस अंधेरे में भी देखा पालकी में शिवाजी थाl जो धोखे से भाग रहा था-वह शिवाजीl मसूद ने पालकी सहित शिवाजी को कैद कियाl साथ के सैनिक भी पकड़े गएl सबको फिरसे पन्हाळगढ़ की ओर मसूद की फ़ौज ले जाने लगीl छावनी में सिद्दी जौहर उदास बैठा था, पछता रहा था कि शिवाजी के उस पत्र पर मैंने कैसे भरोसा कर लिया? इतने में आवाज आयी, "शिवाजी पकड़ा गया"जीत की ख़ुशी सबके चेहरे पर थीl पालकी में से शिवाजी नीचे उतराl सब उसे देखने लगे परन्तु कही तो शंका तीव्र हुई, पूछताछ प्रारम्भ हुईl उनमें से कुछ लोगों ने इसके पहले महाराज को प्रत्यक्ष देखा हुआ थाl पूछताछ में पता चला यह शिवाजी महाराज नहीं हैl शिवाजी नाम का एक नाई है - "शिवा काशीद"
कुछ पहरों, कुछ घंटों के लिए शिवा ने महाराज के वस्त्र पहने, उससे उसकी आत्मा पावन हुईl परन्तु उसी क्षण बलिदान की सम्भावना अधिक थीl वही हुआ क्रोध में पागल सिद्दी जौहर ने शिवा काशीद व उसके साथ आये सैनिकों के सिर धड़ से अलग किये परन्तु उस क्षण भी वे सभी खुश थे क्योंकि वे स्वराज्य निर्माता व रक्षण कर्ता शिवाजी महाराज की रक्षा करने में काम आयेl कुछ समय के लिए शिवा काशीद शिवाजी बनकर स्वराज्य के काम आयाl स्वराज्य के निर्माण के ओर पुष्प समर्पित हुआ । ऐसे समर्पित लोग व उनकी समर्पण की भावना से ही स्वराज्य निर्माण संभव हुआl उस आत्मा को त्रिवार वंदन निरन्तर 🙏🙏🙏
सन्दर्भ -- राजा शिवछत्रपति
लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे
संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम
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