आज की बोध कथा =
असली सौंदर्य
*एक राजा को अपने लिए सेवक की आवश्यकता थी। उसके मंत्री ने दो दिनों के बाद एक योग्य व्यक्ति को राजा के सामने पेश किया। राजा ने उसे अपना सेवक बना तो लिया लेकिन बाद में मंत्री से कहा - आदमी सेवक तो अच्छा है लेकिन इसका रंग-रूप अच्छा नहीं है।’ मंत्री को यह बात अजीब लगी लेकिन वह चुप रहा।*
*फिर गर्मी का मौसम आया; राजा ने उस सेवक को पानी लाने के लिए कहा। सेवक सोने के पात्र में पानी लेकर आया। राजा ने जब पानी पिया तो पानी पीने में थोड़ा गर्म लगा। राजा ने कुल्ला करके फेंक दिया और बोला - इतना गर्म पानी! वह भी गर्मी के इस मौसम में, क्या तुम्हें इतनी भी समझ नहीं।*
*मंत्री भी यह सब देख रहा था तो मंत्री ने उस सेवक को मिट्टी के पात्र में पानी लाने को कहा। राजा ने यह पानी पीकर तृप्ति का अनुभव किया। इस पर मंत्री ने कहा - महाराज! कृपया बाहर की ओर नहीं, भीतर की ओर देखें। सोने का पात्र सुंदर, मूल्यवान और अच्छा है, लेकिन शीतलता प्रदान करने का गुण इसमें नहीं है। मिट्टी का पात्र अत्यंत साधारण है लेकिन इसमें ठंडा बना देने की क्षमता है। हमको कोरे रंग-रूप को न देखकर गुण को देखना चाहिए। उस दिन से राजा का दृष्टिकोण भी बदल गया।*
*सम्मान, प्रतिष्ठा, यश, श्रद्धा पाने का अधिकार चरित्र को मिलता है, चेहरे को नहीं। चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य गुणों से उत्तम बनता है न कि ऊंचे आसन पर बैठने से या पदवी से। जैसे कि ऊंचे महल के शिखर पर बैठ कर भी कौवा, कौवा ही रहता है, गरुड़ नहीं बन जाता।*
*सौंदर्य चरित्र से ही निखरता है। रंग-रूप, नाक-नक्श, रहन-सहन, सोच-शैली की प्रस्तुति मात्र है। कई लोग बाहर से सुंदर दिखते हैं लेकिन अंदर से बहुत कुरूप होते हैं। जबकि ऐसे भी लोग हैं जो बाहर से सुंदर नहीं होते लेकिन उनके अंतर भावों की पवित्रता इतनी ज्यादा होती है कि उनका व्यक्तित्व चुंबकीय बन जाता है। सुंदर होने और दिखने में बहुत बड़ा अंतर है। बर्तन को बाहर से कम और अंदर से ज्यादा धोना पड़ता है।*
🙏🙏🙏
*जय जय सियाराम*
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