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पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर त्रिशताब्दी वर्ष श्रृंखला=58 अनामिक अहिल्यादेवी अहिल्यादेवी के राज्यव्यवस्था की कीर्ति सम्पूर्ण भारतवर्ष मे फैली हुई थी।

: पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर त्रिशताब्दी वर्ष 

श्रृंखला=58 अनामिक अहिल्यादेवी 


अहिल्यादेवी के राज्यव्यवस्था की कीर्ति सम्पूर्ण भारतवर्ष मे फैली हुई थी। दूर-दूर से लोग अहिल्यादेवी के दर्शन करने महेश्वर आते थे। एक दिन शहरी प्रभाकर नामक कवि अहिल्यादेवी के दरबार मे आया। वह अहिल्यादेवी को अपना काव्य सुना रहा था जो मराठी मे इस प्रकार था :          

‘देवी अहिल्या शूधमति तू सर्वांची माता।

ईश्वर आला तुझ्या स्वरूपे होऊनिया त्राता।।

तव पायाशी तीर्थे सगली, देवदेवले ती ।

स्वर्गामध्ये नारद तुंबर तब लीला गाती ।।

अर्थात् -   

  “देवी अहिल्या शुद्धमति, आप सबकी माता हो।

ईश्वर आए रूप मे आपके, बनकर सबके त्राता।।

आपके चरणों में तीर्थधाम मंदिर स्थान सभी हैं।

स्वर्ग मे नारद तुंबर गान करे, लीला आपकी भी’॥ 


इस स्तुतिगान को सुनकर अहिल्यादेवी ने शाहिर प्रभाकर को समझाया कि वे जानती हैं लोगो के हृदय मे उनके प्रति कितनी श्रद्धा और सम्मान हैं किंतु कोई उनकी प्रशंसा करे यह उन्हें पसंद नहीं हैं। जो असंभव हैं तुम उसे कैसे संभव बता सकते हो, मैं एक सामान्य सी स्त्री हूँ और आप मेरी ईश्वर से तुलना करके गलत कर रहे हो। मेरे चरणों मे चारो धाम यह बात उचित नहीं हैं, आप मे काव्यगुण कूट-कूटकर भरा हैं और  ईश्वर ने जो आपको प्रतिभा दी हैं उसका आप ईश्वर भक्ति के लिये उपयोग करो। समाज मे महिलाओ के प्रति कई प्रकार की घटनाएँ होती रहती हैं ऐसे विषयो पर जागरूकता लाने के लिये लिखो । अहिल्यादेवी ने शाहीर प्रभाकर से लिखित काव्य चोपड़ी मांगी और उस चोपड़ी के हरेक एक पन्ने को फाड़कर के उस काव्य की पूरी चोपड़ी को नर्मदा नदी मे बहा दी। यह घटना चल रही थी तब वहां पुणे दरबार के वकील महेश्वर में भेष बदलकर आया था और वह अहिल्यादेवी की सारी बातें सुन रहा था। पुणे दरबार मे प्रतिदिन अहिल्यादेवी की प्रशंसा के किस्से चलते रहते थे इसलिये वह भेष बदलकर अहिल्यादेवी के दर्शन करने आया था। यह घटना देख पुणे दरबार का वकील सोचने लगा कि ईश्वर भी चाहते हैं की उनकी स्तुति हो तथा लोग उनका गुणगान करे लेकिन अहिल्यादेवी तो इन सब बातो से भी ऊपर हैं। इस प्रकार अहिल्यादेवी ने कभी अपने द्वारा किये गए कार्य का ढोल नहीं पीटा और वे लगातार समाजहित  के कार्य करती रही। 

आज के समय मे राजनेता यदि छोटी सी उपलब्धि हासिल कर लेते हैं तो वह उसका डिंडोरा पीटने के लिए करोड़ो रुपयों का खर्च करते हैं। प्रसिद्धि पाने के लिये कई हथकंडे अपनाता हैं, सोशल मीडिया से लेकर जमाने भर की सारी तकनीकी साधनों का उपयोग करता हैं, बैनर बनवाते हैं किन्तु अहिल्यादेवी तो उन सबसे भी ऊपर थी। उन्होंने देशभर में तीर्थक्षेत्र का जीर्णोद्धार किया किन्तु श्रेय कभी भी नहीं लिया। भारतखंड की चारो दिशाओ मे उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम दिशा मे यदि कोई धर्म के लिये कुछ करना चाहता था तो वह अहिल्यादेवी के पास महेश्वर आता था। उस  दौर मे अहिल्यादेवी के प्रति श्रद्धा का इतना वातावरण बन गया था और चारो दिशाओं से अहिल्यादेवी के पास मंदिर निर्माण के लिए पत्र आते थे तब अहिल्यादेवी ने गाँव-गाँव तक मंदिर निर्माण के रुपये भेजे थे। जो क्षेत्र अहिल्यादेवी के राज्य मे नहीं आते थे वहां भी अहिल्यादेवी ने मंदिर बनवाये। अहिल्यादेवी गरीबो की सहायता के लिये लिए रुपयों का प्रबंध कर देती थी लेकिन कभी उन्होंने प्रसिद्धि कि चाह नहीं रखी। कोई अहिल्यादेवी के गुणगान करे यह उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था ।  

संदर्भ - बहुआयामी व्यक्तित्व अहिल्यादेवी भाग एक 

लेखिका - आयुषी जैन 

प्रकाशक - अर्चना प्रकाशन भोपाल

संकलन- स्वयंसेवक एवं टीम 

लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर त्रिशताब्दी वर्ष 

श्रृंखला=59 काव्य में अहिल्यादेवी 

 कई कवियों ने भी कविता के माध्यम से अहिल्या देवी के गुणों का चित्रण किया है -


बाला बनी, वनिता बनी, विधवा बनी, रानी बनी दानी बनी, मानी बनी, भक्ति बन, ज्ञानी बनी देवी बनी, निज दिव्यता से गंगा का पानी बनी नारीतत्व की 'देवी अहिल्या' अनुपम कहानी बनी।

-किशोर वर्मा (कवि)


तूराजनीति की ज्ञाता थी, भारत की भाग्य-विधाता थी। तू महाराष्ट बेटी थी, पर सकल राष्ट की माता थी। चण्डी, सरस्वती और वैष्णवी शक्ति एक संग आयी थी। ममता की विविध मूर्ति जैसी, वे वीर अहिल्याबाई थी ।। तू ज्ञान कर्म राजनीति का मधुर मिलन । हे ममता की मूर्ति, तुम्हें शत बार नमन ।।

-रामनायण त्रिपाठी (कवि)

सर्वे भवन्तु सुखिनः का मंत्र हमारा हे मातु अहिल्या शत शत नमन हमारा अभिषेक आज तक करती रेवा धारा हे मातु अहिल्या शत शत नमन हमारा।

-सत्यनारायण सत्यन (कवि)

धनि धन्य अहिल्या माई। करी जिन इंदौर सुहाई रानी होलकरवंश महेश्वर आई। कलियुग माहि कीर्ति रही छाई पण्डित श्रीधर चौबे (कवि)


 संदर्भ - बहुआयामी व्यक्तित्व अहिल्यादेवी भाग एक 

लेखिका - आयुषी जैन 

प्रकाशक- अर्चना प्रकाशन भोपाल

संकलन- स्वयंसेवक एवं टीम 

प्रस्तुति ...अशोक जी पोरवाल  

पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर त्रिशताब्दी वर्ष 

श्रृंखला=60 समाज सुधारक अहिल्यादेवी 

अहिल्यादेवी ने सन 1767 में महेश्वर मे राजधानी स्थापित की तब अहिल्यादेवी के पति , सास - श्वसुर और पुत्र का निधन हो चुका था अब बची सिर्फ अहिल्यादेवी की पुत्री मुक्ताबाई। अहिल्यादेवी के लिये जीने का आसरा सिर्फ मुक्ताबाई रह गई थी,वे मुक्ताबाई से बहुत स्नेह करती थी, मुक्ताबाई सयानी हो चुकी थी इसीलिए अहिल्यादेवी को मुक्ताबाई के विवाह की चिंता खाए जा रही थी, अहिल्यादेवी मुक्ताबाई के विवाह के लिये योग्य वर की तलाश कर रही थी और इधर मालवा राज्य अस्त व्यस्त था। 

मालवा राज्य में चोर डाकुओं ने अपना मुख्य अड्डा बना लिया था, देवी अहिल्या इस माहौल को खत्म करना चाहती थी। अहिल्यादेवी ने अपने मामलतदार और कामविसदार जैसे उच्च स्तर के अधिकारियों को सख्त आदेश दिये कि जहां भी चोर - डाकू दिखे उन्हें मार गिराए तथा दंड दे किन्तु बहुत प्रयासों के बाद भी यह संभव नहीं हो सका। 

देवी अहिल्या को पुत्री मुक्ताबाई की विवाह की चिंता थी देवी अहिल्या इन दोनों हालातों से निपटना चाहती थी, देवी अहिल्या ने उसी वक्त निश्चय किया कि वे मालवा को चोर - डाकुओं से मुक्त करवाकर रहेंगी। देवी ने एक दिन दरबार में सभी सरदारों, अधिकारियों सैनिकों और महेश्वर के नागरिकों को बुलाया तथा सबके साथ विचार - विमर्श किया। 

अंत में अहिल्यादेवी ने राज्य में यह घोषणा करते हुवे कहां कि जो भी मेरे राज्य से चोर - डाकुओं का खात्मा करेगा और राज्य में शांति स्थापित करेगा उसके साथ मैं अपनी इकलौती पुत्री मुक्ताबाई का विवाह कर दूंगी। सारा दरबार अहिल्यादेवी की इस घोषणा से अचंभित रह गया, सभी आपस मे एक दूसरे से बात करने लगे और कुछ कहने लगे कि इतनी बड़े साम्राज्य की स्वामिनी की लाडली बेटी का विवाह सिर्फ शौर्य के बल पर आज तक ऐसी महिला देखी न सुनी गई, कुछ लोग यह भी सोचने लगे कि क्या इतने वीरों में कोई भी एक ऐसा नहीं जो यह बीड़ा उठाकर दम भर सके कि वह राज्य से चोर - डाकुओं का खात्मा करेगा तब अचानक से एक युवक खड़ा हुआ, उसने साहस दिखाकर यह घोषणा कि, वह मालवा राज्य से चोर - डाकुओं का खात्मा कर शांति के वातावरण की स्थापना करेगा किन्तु उसने देवी के समक्ष मांग रखी कि - '' यदि मुझे आवश्यक सेना और धन दिया जायेगा तो यह काम मैं करके दिखाऊंगा ''। 

युवक की बात सुनकर देवी अहिल्या मन ही मन अत्यंत प्रसन्न हो रही थी, देवी ने पूछा आपका नाम क्या हैं? युवक ने विश्वास से उत्तर देते हुवे कहां: यशवंतराव फनसे । अहिल्यादेवी ने यशवंतराव से कहां: तुम्हे धन तथा आवश्यक सैन्यबल दिया जायेगा, विश्वास हैं कि तुम राज्य मे शांति स्थापित करोगे। 

यशवंतराव बुद्धिमान और साहसी युवक था, उसने अल्प समय मे ही वीरता से होलकर राज्य मे फैले हुए चोर - डाकुओं का खात्मा कर दिया और राज्य मे सुख शांति की स्थापना की। अहिल्यादेवी प्रसन्न हुई, प्रजा मे भी सुख शांति का दौर स्थापित हुआ। अहिल्यादेवी ने  वचन अनुसार लाडली बेटी मुक्ताबाई का विवाह यशवंतराव के साथ करवाया । बिटिया मुक्ताबाई के विवाह समारोह मे समस्त महेश्वरवासियों के लिए भोजन की विशेष व्यवस्था की गई थी,  बिटिया और दामाद को आशीर्वाद देने के लिये ब्राह्मणों को भोजन करवाया गया तथा उन्हें दक्षिणा दी ।

संदर्भ  - बहुआयामी व्यक्तित्व अहिल्यादेवी भाग एक 

लेखिका - आयुषी जैन 

प्रकाशक - अर्चना प्रकाशन भोपाल

संकलन- स्वयंसेवक एवं टीम 

प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल

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