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पुण्य श्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर त्रि शताब्दी वर्ष श्रृंखला 15 = कूटनीति में निपुण देवी अहिल्याबाई होलकर भाग दो

 पुण्य श्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर त्रि शताब्दी वर्ष 

श्रृंखला 15 = कूटनीति में निपुण देवी अहिल्याबाई होलकर भाग दो 



राघोबा क्षिप्रा के तट पर सिंधिया और गायकवाड़ की मदद के लिये इंतज़ार कर रहा था क्योकि राघोबा ने पत्र लिखकर देवी अहिल्याबाई के विरुद्ध  युद्ध लड़ने के लिये इनसे भी मदद मांगी थी किन्तु इनमें से एक   भी देवी अहिल्याबाई के विरुद्ध युद्ध लड़ने के लिये आगे नहीं आये बल्कि राघोबा को ही ललकार दिया तथा उन्होंने देवी अहिल्याबाई का साथ दिया। जब राघोबा क्षिप्रा पर थे तब  देवी अहिल्याबाई के सेनापति तुकोजीराव क्षिप्रा पर पहुँचे और राघोबा से कहां - “ यदि आक्रमण की मंशा से क्षिप्रा पार करोगे तो हमारी तलवारें बाहर निकल आयेंगी और खूनी युद्ध होगा तब ही राघोबा को देवी अहिल्याबाई का एक पत्र मिला जिसमे देवी ने लिखा था की “आप मुझे अबला, अनाथ, विधवा नारी समझकर मेरा राज्य हड़पने कि मंशा से इंदौर आ रहे हो किन्तु आपका यह उद्देश्य कभी भी पूरा नहीं हो सकेगा, 

आपको युद्धभूमि मे ही मेरी शक्ति पता चलेगी, मैं अपनी महिला सेना के साथ आपका मुक़ाबला करूँगी। यदि मैं युद्ध मे  आपसे हार गयी तो कोई भी मुझ पर  हंसी नहीं उड़ायेगा और न कोई आपकी विजयी की प्रशंसा करेगा, मगर यदि आप युद्ध में मुझसे हार गये तो आप कही मुंह दिखाने के लायक़ नहीं रहेंगे तथा जल्द ही आपकी और मेरी भेंट युद्धक्षेत्र मे होगी।” 

देवी अहिल्याबाई का पत्र पढ़कर राघोबा का युद्ध लड़ने का जोश ठंडा पड़ गया, राघोबा सोचने लगे कि देवी अहिल्याबाई की महिला सैनिकों के कौशल से यदि मैं युद्ध हार गया तो मेरी बनायी हुयी कीर्ति  धूल मे मिल जायेगी इसलिये राघोबा ने तुरंत पेत्रा बदला और देवी अहिल्याबाई के सेनापति तुकोजीराव से कहां की आपको बहुत बड़ी गलतफहमी हो गई थी हम  कैसे होलकर राज्य पर हमला करने आ सकते हैं, आपसे तो हमारे बहुत पुराने रिश्ते हैं, स्व: मल्हारराव मेरे परम मित्र थे इसलिये हम तो देवी अहिल्याबाई के पुत्र स्व: मालेराव के निधन पर शोक व्यक्त करने के उद्देश्य से इंदौर आये हैं । तुकोजीराव को देवी अहिल्याबाई के पत्र की जानकारी नहीं थी इसलिये वे आश्चर्यचकित हो गये की इतना बड़ा बदलाव अचानक कैसे हो सकता हैं? बहुत सोचने के बाद तुकोजीराव ने कहां की यदि शौक़ संवेदना ही व्यक्त करना हैं तो आप पचास हज़ार की सेना के साथ क्यों आए हैं, चार-पाँच सरदारों के साथ अकेले भी आ सकते थे और आपको शोक संवेदना व्यक्त करने ही इंदौर जाना हैं तो हमारे साथ चलिये किन्तु सेना को क्षिप्रा तट पर छोड़कर चलना होगा, तब राघोबा अपनी पत्नि और चार-पाँच सरदारों के साथ पालकी मे बैठकर इंदौर की ओर गये। राघोबा पेशवा के इंदौर पहुँचने पर देवी अहिल्याबाई ने उनका स्वागत सत्कार किया, एक महीने तक राघोबा इंदौर मे अतिथि बनकर रहे तथा उनकी खूब मेहमानदारी की गई और इस एक महीने मे देवी अहिल्याबाई और राघोबा भी युद्ध के प्रसंग को भूल चुके थे। 


इस प्रसंग से यह प्रतीत होता हैं की देवी अहिल्याबाई होलकर हृदय से अत्यंत सरल स्वभाव की महिला थी तो वे राजनीतिक कूटनीति के विषय  मे भी बहुत परिपक्व महिला थी।मालवा राज्य पर आ रही विपत्ति का उन्होंने बिना किसी युद्ध के ही हल निकाल लिया और राघोबा से संबंध भी अच्छे बने रहे। 


संदर्भ - लोकमाता अहिल्याबाई 

लेखक - अरविंद जावलेकर 

संकलन = स्वयंसेवक एवं टीम

प्रस्तुति... अशोक जी पोरवाल

हर हर महादेव

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