पुण्य श्लोक देवी अहिल्याबाई त्रि शताब्दी वर्ष
श्रृंखला 9 = देवी अहिल्याबाई के पति खंडेराव होलकर
मल्हारराव होलकर ने सन 1728 मे मालवा राज्य पर अधिकार किया था तब उनकी धर्म पत्नि गौतमाबाई तथा पुत्र खंडेराव भी उनके साथ इंदौर आए थे। खंडेराव का जन्म सन 1723 मे विजयीदशमी के दिन हुआ था, मल्हारराव और गौतमाबाई के लिये यह दिन अत्यंत प्रसन्नता का था। मल्हारराव अब यह विचार करने लगे की इस पुत्र का क्या नाम रखा जाए कि वह नाम के अनुसार तेजस्वी, पराक्रमी योद्धा बनकर राष्ट्रसेवा मे समर्पित हो जाये तब उनके मन मे आया की “खंडोबा” महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुलदेवता हैं, क्षत्रिय तथा ब्राह्मण से लेकर हर वर्ग के लोग उनकी पूजा करते हैं इसलिये मल्हारराव ने अपने कुलदेवता “खंडोबा” के नाम के आधार पर अपने पुत्र का नाम खंडेराव रखा।
खंडेराव बचपन से ही बहुत नटखट और ज़िद्दी स्वभाव के बालक थे, वे जिस चीज के पीछे पड़ जाते थे तो उसे पूरा करके ही दम भरते थे। खंडेराव जब 1728 मे अपने माता- पिता के साथ मालवा आए थे तब वे पाँच वर्ष के थे, इस छोटी सी आयु मे वह बहुत ही क्रोधित स्वभाव के बालक थे मगर अपने पिता मल्हारराव से डरते भी थे। खंडेराव अपने मन की बात सिर्फ़ उनकी माँ से कहां करते थे, जब खंडेराव दस वर्ष के थे तब वे खेलने-कूदने, मस्ती करने के अतिरिक्त किसी और कार्य मे मन ही नहीं लगाते थे किन्तु उनके पिता मल्हारराव विद्या का महत्व जानते थे, उनकी बहुत इच्छा थी कि खंडेराव विद्या प्राप्त करके अपने जीवन को बेहतर बनाये क्योकि मल्हारराव का जीवन बचपन से ही अभावों मे व्यतीत हुआ था और वे खेल-कूद मे ही रह गये थे इसलिये वे नहीं चाहते थे कि उनके पुत्र खंडेराव भी खेल - कूद मे ही रह जाये तथा विद्या धन से रिक्त रह जाये। खंडेराव की माता उन्हें खेलकूद मे मदद करती थी तब मल्हारराव ने गौतमाबाई से कहां - खंडेराव आपसे मन की बातें करता हैं इसलिये आप उसे समझाये कि खेलकूद के साथ वह राज-पाट के कार्य व विद्या धन भी सीखे, मुझे पूर्ण विश्वास हैं की खंडेराव तुम्हारी बात नहीं टालेगा ।गौतमाबाई ने अपने पति की बातों का समर्थन किया और खंडेराव को पढ़ाई-लिखाई का महत्व तथा विद्या धन का महत्व समझाया किन्तु उन्हें कुछ समझ ही नहीं आया । जब खंडेराव थोड़े ओर बड़े हो गये तो नाच -गाने करके तरह-तरह के बहाने बनाने लगे। मल्हारराव ने बहुत सारे उपाय अपनाकर पुत्र खंडेराव को मार्ग पर लाने का प्रयास किया किन्तु वे विफल रहे, फिर मल्हारराव और गौतमाबाई ने बैठकर विचार -विमर्श किया की खंडेराव का विवाह कर दिया जाये तो खंडेराव मे कुछ सुधार हो सकेगा । सन 1733 में खंडेराव का अहिल्याबाई से विवाह हो गया तब अहिल्याबाई भी अपने पति कि यह दुर्दशा देखकर बहुत निराश हुयी किन्तु उन्होंने संकल्प लिया की वे खंडेराव को मार्ग पर ले आयेंगी। खंडेराव इतने द्विग्भ्रमित थे की वार्षिक आय को वे सिर्फ़ दो महीने मे ही ख़त्म कर देते थे तब अहिल्याबाई ने श्वसुर मल्हारराव से कहां की आप पतिदेव को यह कहिए की वे प्रतिदिन पूजन मे बैठे, पुराण कथा सुने तब ही इन्हें वार्षिक व्यय मिलेगा फिर मल्हारराव ने बिलकुल ऐसा ही किया, अपने पिता मल्हारराव के आदेश को खंडेराव टाल नहीं सकते थे इसलिये वे पूजन मे बैठने लगे, खंडेराव प्रतिदिन अहिल्याबाई से वार्तालाप करने लगे, प्रतिदिन पुराण सुनने से खंडेराव के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा और उनके स्वभाव मे परिवर्तन भी आने लगे तथा वे पिता के साथ युद्ध अभियानों मे भी जाने लगे। इस तरह से देवी अहिल्या उन्हें सही मार्ग पर ले आयी।
खंडेराव और अहिल्याबाई को एक पुत्र तथा एक पुत्री थी।
खंडेराव अहिल्याबाई से विवाह के बाद एक पराक्रमी योद्धा बने तब उन्होंने निम्न युद्ध अभियानों मे भाग लिया वह इस प्रकार हैं -
1. 1735-1737 के दौरान, खंडेराव अपने पिता और बाजीराव पेशवा के साथ उत्तर भारत अभियान में शामिल हुए।
2. 1737 में निज़ाम और मराठों के बीच युद्ध के दौरान खंडेराव होलकर ने जबरदस्त प्रदर्शन किया और निज़ाम पर जीत हासिल की।
3. सन 1737 मे मालवा में, मुगलों ने शाजापुर के कमाविसदार को लूट लिया और बस्ती को जला दिया तब खंडेराव ने मीरमणि को मार डाला।
4. 1739 में खंडेराव ने पुर्तगालियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। खंडेराव ने संताजी वाघ के साथ मिलकर तारापुर के किले की घेराबंदी की। किले पर मराठों ने सफलतापूर्वक कब्ज़ा कर लिया।
5. 1742 में, राजा ईश्वर सिंह और राजा माधो सिंह के बीच संधि पर हस्ताक्षर करने में खंडेराव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
6. खंडेराव होलकर ने क्रमशः 1747 और 1748 में देवली और बगरू के युद्ध में भी भाग लिया।
7. 1750 में खांडेराव होलकर ने मुगलों, रोहिल्लाओं और जाटों के खिलाफ अभियान चलाया। उन्होंने उन अभियानों को सफलतापूर्वक पूरा किया।
8. 1754 में, भरतपुर के राजा सूरजमल जाट थे, किले पर पेशवा ने घेरा डाल दिया, क्योंकि पेशवा बालाजी बाजी राव के छोटे भाई रघुनाथराव (सिंधिया और होल्कर द्वारा समर्थित) उनके अधीन रहना चाहते थे हालाँकि, घेराबंदी सफल नहीं हुई। 1754 मे मल्हारराव के साथ खंडेराव ने भरतपुर के सूरजमल के कुंभेर के किले की घेराबंदी की, मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव कुंभेर के युद्ध में एक खुली पालकी पर अपने सैनिकों का निरीक्षण कर रहे थे तब जाट सेना की एक तोप के गोले से उनकी मृत्यु हो गई और वे 1754 मे वीरगति को प्राप्त हुवे।
संदर्भ - लोकमाता अहिल्याबाई
लेखक - अरविंद जावलेकर
संकलन - स्वयंसेवक एवम टीम
प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल
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