हिंदुस्तान में पत्रकारिता बुरे दौर से गुजर रही, नरेश मांडेकर एडवोकेट
संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष जर्नलिस्ट एंड प्रेस एंप्लाइज वेलफेयर सोसाइटी बैतूल
*"राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष" चौथे स्तंभ की विडंबना, मांडेकर*
राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर खुलेआम हो रहे पत्रकारों के हमले एवं पत्रकारों के हनन को देखते हुए पत्रकारों के प्रति पीड़ा व्यक्त की? श्री नरेश जी ने कहा की आज देश भर में राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर विभिन्न राज्यों में कई कार्यक्रमों का आयोजन होगा...
केंद्र व राज्य सरकारें पत्रकारों के लिए संदेश जारी करेंगी, पत्रकारिता के लिए चिंतन मनन होगा...कई सेमिनार, सम्मेलन, गोष्ठियों का आयोजन होगा, बड़े बड़े भाषण दिए जाएंगे, दिन भर चिंतन मनन के पश्चात शाम तक सब सामान्य हो जाएगा...सरकारें भी पत्रकारों को भूल जाएंगी और पत्रकार संगठन भी गायब हो जाएंगे...जिस भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना के अवसर पर हम पत्रकार राष्ट्रीय प्रेस दिवस 16 नवंबर को मनाते हैं, वह भी पत्रकारों को भूल जाएगे?
पत्रकारों के उत्थान की कोई पहल नही होगी, कोई ऐसा कदम नहीं उठाया जाएगा, जिससे पत्रकारों को सुरक्षा तथा कल्याण सुनिश्चित होगा...
पत्रकार साथियों भारत में पत्रकारिता संकट के दौर से गुजर रही है...सच की आवाज को बुलंद करने वाले पत्रकारों पर दिन दहाड़े हमले, नेताओं के द्वारा मीडियाकर्मियों पर हमले, पत्रकारों को जान से मारने की धमकी, परिवार के साथ बदसलूकी, जानलेवा हमले इत्यादि दिनों दिन बढ़ रहे हैं... जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार,, इमरान खान बैतूल एयरसन Express न्यूज़, अन्य घटनाओं में पत्रकारों की निर्मम हत्या को हम भूले नहीं है..??
निष्पक्ष पत्रकारिता को जिंदा रखने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले पत्रकारों का बलिदान तभी सार्थक होगा, जब पत्रकारों की रक्षा ओर उनका कल्याण सुनिश्चित होगा... आगे देश में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के प्रति बढ़ती क्रूरता चिंता का विषय है, ऐसे में बड़े शहरों के अलावा छोटे शहरों में पत्रकारों की हालत तो और ज्यादा खराब है l
पत्रकारों के खिलाफ झूठे मुकदमे, मारपीट, धमकी जैसे मामले आज के समय में आम बात हो गई है l
निःसंदेह, मीडिया सूचना, जागरूकता और खबरें पहुंचाने का काम करता है.
सरकार के कार्यों को जनहित में आम नागरिकों के समक्ष पहुंचाने का काम करता है, तो आमजन की परेशानी को सरकार तक पहुंचाने का काम भी करता है...मीडिया एक माध्यम है, सरकार और जनता के बीच की दूरियां मिटाने का, लेकिन भारत में मीडिया खुद अपने अस्तित्व पर रो रहा है...
मीडिया भले एक संचार का साधन है? तो वहीं परिवर्तन का वाहक भी है... भारत में मीडिया को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़कर देखा जाता है, तात्पर्य प्रेस की आजादी, मौलिक अधिकार के अंतर्गत आती है.l
चुके वर्तमान परिप्रेक्ष्य में निरंतर हो रही पत्रकारों की हत्या, मीडिया चैनलों के प्रसारण पर लगायी जा रही बंदिशें, व कलमकारों पर हो रहे हमलों की घटनाओं ने प्रेस की आजादी को संकट के घेरे में ला दिया है. नरेश मांडेकर ने कहा
"सुप्रीम कोर्ट की चिंता भी बेमानी" पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर देश के सर्वोच्च न्यायालय भी चिंतित नजर आया l
गत सप्ताह एक मामले का निराकरण करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड ने कहा था कि, पत्रकारो को कुछ कहने या लिखने से नहीं रोका जा सकता है ?
लेकिन वास्तविकता में पत्रकारों का दोहन हो रहा है, पत्रकारों की आवाज को दबाया जा रहा... शासन, प्रशासन, पुलिस, माफिया, गर्ज के सभी के निशाने पर रहने वाला पत्रकार भय तथा आतंक के बीच जीवन गुजारने पर मजबूर है... गौरतलब हो कि पत्रकारिता को देश का चौथा स्तंभ माना जाता है, और वह हमेशा देश को मजबूत करने और स्वस्थ समाज की परिकल्पना की आवाज को अपनी लेखनी से उजागर करता है, इसलिए उसके स्वस्थ लेखन पर रोक लगाना लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को आघात पहुंचाने जैसा होगा... जिसका खुला प्रदर्शन सम्पूर्ण भारत वर्ष में देखने को मिल रहा है...पत्रकार सुरक्षा एवं कल्याण के लिए संघर्षरत जर्नलिस्ट्स वेलफेयर एम्पलाई सोसाइटी आज राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर पत्रकारिता की अस्मिता को बचाकर अपने प्राणों की आहुति देने वाले क्रांतिकारी पत्रकारों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए देश, प्रदेश की सरकारों से पत्रकारों की सुरक्षा हेतु, सुरक्षा कानून लागू करने तथा पत्रकार कल्याण आयोग की स्थापना की मांग करता हैl
नरेश मांडेकर एडवोकेट
संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष जर्नलिस्ट्स एंड प्रेस एंप्लाइज वेलफेयर सोसाइटी बैतूल l
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