खबर बैतूल मध्य प्रदेश से
श्रीराम कंपनी कर रही है अपनी मनमानी !
जिला बैतूल ना ही पूर्व में कोई नोटिस दिया ना ही गाड़ी खींचने की कोई सूचना दी और ले गए गाड़ी खींचकर जबरदस्ती ?
वैसे तो श्रीराम कंपनी का नाम ही जाना माना फाइनेंस के नाम से जाना जाता है लेकिन श्रीराम कंपनी के एजेंट रिकवरी करने वाले मोटर मालिकों से करते हैं अभद्रता जबरदस्ती गाड़ी उनसे ले जाते हैं खींचकर वाह यह नहीं देखते हैं गाड़ी में कोई पेशेंट बैठा है या कोई महिला बैठी है बस उनका काम है गाड़ियों को खींचना और ले जाना और याद मिलाकर खड़ी करना और अपनी रकम खड़ी करना ?
ऐसा ही एक वाक्य आज बैतूल शहर में देखने को मिला जावेद अली निवासी जाकिर हुसैन वार्ड के हैं उनका बड़ा भाई गंभीर बीमारी से लड़ रहा है l
जिसका हर हफ्ते पेट से पानी निकाला जाता है वह बिना गाड़ी के चल फिर नहीं सकता ऐसे में रिकवरी करने वाले गाड़ी ले जाते हैं खींचकर वहां गुहार लगाता रहा सर मैं बिना गाड़ी के चल नहीं सकता मुझे आए दिन हर मिनट कभी भी तुरंत हॉस्पिटल जाना पड़ता है मेरी सिर्फ और सिर्फ दो किस्त बाकी है जिसमें कि एक किस्त मैंने जमा कर दी है !
रिकवरी वालों ने एक न सुनी उसकी गाड़ी खींच कर ले गए और यार्ड में खड़ी कर दी है सुबह से लेकर शाम तक जावेद का बड़ा भाई खड़ा रहा हाथ जोड़कर बीमारियों का गुहार लगाता रहा लेकिन श्रीराम कंपनी के मैनेजर सजय कुमार ने बीमार की एक ना सुनी वह बची किस्त जमा करने को भी तैयार हो गया उसके बावजूद भी गाड़ी नहीं दी ना किस्त जमा करी l
उपभोक्ता फोरम से मोटर फायनेंस कंपनी कर्जदार से जबरन् वाहन की जप्ति को ठहराया गैर कानूनी
बैतूल ।
मप्र राज्य। मोटर फायनेंस कंपनियॉ यह समझती हैं कि अनुबंध पत्र एग्रीमेंट कर लेने के बाद कभी भी और कहीं भी वाहन को रिकवरी ऐजेन्टो के जरिए वाहन जप्त करने का उनको अधिकार प्राप्त हैं।
जब हमने मैनेजर सजय कुमार से बात करी चाही तो पहले तो कॉल नही उठाया फिर काफी देर बाद कॉल उठाया और बोल दिया रोंग नंबर है l
अनुबंध पत्र में मासिक किष्तो की अदायगी में चूक होने पर मोटर फायनेंस कंपनियॉ वाहन को जप्त कर लेती हैं, विक्रय कर देती हैं, बकाया रकम की वसूली हस्ताक्षर युक्त चैंक के जरिए करती हैं एवं मध्यस्थता एवं सुलाह अधिनियम 1996 के जरिए करती हैं।
कानून एवं न्याय का सवाल यह उठता हैं कि फायनेंस कंपनी क्या इस देष के कानून के उपर हैं? कर्जदार के कानूनी अधिकार क्या है?
प्राप्त जानकारी के अनुसार कंपनी की याचिका को खारिज कर दिया गया हैं। मामला उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 की धारा 2 (1)(जी) का हैं जिसमें सेवा में कमी पर विचार किया जाता हैं।
कर्जदार को मासिक किष्तो में धन राषि अदा करनी थी। कुछ एैसी परिस्थितियॉ जो कि कर्जदार के नियंत्रण के बाहर थी जिसके कारण उपभोक्ता ईएमआई अदा नहीं कर पाया था।
कंपनी के बीच अनुबंध पत्र में दर्ज था कि मासिक किष्तो की अदायगी में चूक होने पर वाहन को जप्त कर लिया जायेगा। उपभोक्ता फोरम ने इसे खारिज करते हुए कहा कि वाहन की जप्ति कानून के जरिए की जा सकती हैं, कानून को अपने हाथ में लेकर वाहन को जप्त करना अपराध की श्रेणी में आता हैं।
इस मामले में महत्वपूर्ण यह हैं कि फायनेंस कंपनी कानून के जरिए ही वाहन को जप्त कर सकती हैं, सड़क पर चल रहे वाहन को या फिर आवास पर खड़े वाहन को जप्त नहीं कर सकती हैं। कानून में वाहन को जप्त करने की प्रक्रिया दी गई हैं जिसका पालन करना फायनेंस कंपनी के लिए आवष्यक हैं।
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