लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर त्रिशताब्दी वर्ष
श्रृंखला=48 पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी भाग पाँच
आलमपुर : अहिल्यादेवी के श्वसुर मल्हारराव का आलमपुर (भिंड जिला) मे निधन हुआ था। श्वसुर मल्हारराव की याद मे अहिल्यादेवी ने मल्हारराव की छतरी बनवायी और हरिहरेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण किया था।
अमरकंटक: अहिल्यादेवी की माँ नर्मदा नदी में बहुत आस्था थी और बड़ी संख्या मे श्रद्धालु नर्मदा परिक्रमा लगाते थे तो उनकी सुविधा के लिए अमरकंटक मे यात्रियो के ठहरने के लिये धर्मशाला और भोजन व्यवस्था के लिए अन्नक्षेत्र शुरू किये थे ।अमरकंटक मे धर्मशाला के अतिरिक्त अहिल्यादेवी ने विश्वेश्वर मंदिर का निर्माण किया था।
चित्रकूट: श्रीराम मंदिर की स्थापना की थी।
मोरुखेड़ी: नलखेड़ा के समीप एक छोटा सा गाँव है, अहिल्यादेवी रामपुरा युद्ध के लिए जा रही थी तब वे रात्रि विश्राम के लिये मोरूखेड़ी गाँव में रुकी थी। गाँव के लोगो मे खबर पहुँची कि धर्मपरायण शासक अहिल्यादेवी उनके गाँव मे ठहरी है। गाँव के लोगो मे अहिल्यादेवी के प्रति आपार श्रद्धा थी । गाँव के लोग अहिल्यादेवी से मिलने उनके डेरे पर पहुँचे। लोगो की याचनाएं सुनकर अहिल्यादेवी ने गाँव में नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया और मंदिर मे पूजन व्यवस्था के लिये ब्राह्मण पुजारी को नियुक्त किया। पुजारी के लिये मासिक वेतन की व्यवस्था की गई थी। होलकर की तरफ से पुजारी को मासिक वेतन दिया जाता था। नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी को रहने के लिये घर और खेती की जमीन दी गयी थी ताकि ब्राह्मण स्थायी हो जाये। आज भी इस मंदिर मे वंश परंपरागत रूप में पुजारी का कार्य श्री रमेश शर्मा जी करते हैं ।
मंडलेश्वर : अहिल्यादेवी की राजधानी महेश्वर के समीप मंडलेश्वर स्थित हैं। हजारो की संख्या मे श्रद्धालु नर्मदा परिक्रमा करने के लिए इस मार्ग से होकर निकलते हैं इसलिए अहिल्यादेवी ने मंडलेश्वर मे शिवालय बनवाया। घाट का निर्माण करवाया।
महेश्वर: अहिल्यादेवी की राजधानी थी और महेश्वर का उद्योगीकरण किया गया। अहिल्यादेवी के समय मे महेश्वर भारत का मुख्य केंद्र था। व्यापार, सांस्कृतिक विरासत, धार्मिक नगरी, पर्यटन आदि के हिसाब से महेश्वर का भारतवर्ष मे रुतबा बढ़ गया था। यहां अहिल्यादेवी ने 28 घाट का निर्माण किया, अहिल्यादेवी घाट, पेशवा घाट, तिल बाणेश्वर घाट इत्यादि । अहिल्यादेवी के समय मे महेश्वर पूरी तरह से एक धार्मिक नगरी हो गयी थी, प्रतिदिन अनुष्ठान चलते रहते थे। महेश्वर मे पुणे दरबार के वकील विट्ठल शामराज ने अहिल्यादेवी द्वारा किये जाने वाले दान-धर्म का पत्र के माध्यम से पुणे दरबार के सामने वर्णन इस प्रकार किया था - “यहां श्रावण के महीने मे तीन हज़ार ब्राह्मण प्रतिदिन भोजन करते हैं। दान-धर्म मे अनुकूलता हो इसलिये ब्राह्मणों की तीन श्रेणी बनाई गई उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ । उनको पंचमी षष्ठी एवं सप्तमी के दिन अहिल्यादेवी दान-धर्म करती थी। देश के विभिन्न क्षेत्र से ब्राह्मण महेश्वर आते थे और दक्षिण भारत के हैदराबाद से करीब 2000 ब्राह्मण आये थे। प्रत्येक ब्राह्मण को एक रुपये से पांच रुपये तक दक्षिणा दी जाती थी। उत्तर प्रदेश के दो से ढाई हज़ार ब्राह्मणों को महेश्वर मे आने के हिसाब से एक रुपया दक्षिणा दी गयी । अहिल्यादेवी ने गरीब महिलाओ और गरीब बच्चों को भी दान-धर्म किया तथा उन्हें नौ हजार रुपयों का दान किया गया। नौ सो ब्राह्मणों को अहिल्यादेवी आटा दान मे देती थी और पाँच सो ब्राह्मणों को श्रावण मास मे आटा दिया जाता था। अहिल्यादेवी स्वयं ब्राह्मणों को दान करती थी और गरीबो को वस्त्र दान करती थी। कोई भी याचक अहिल्यादेवी के दरबार से खाली नहीं लौटता था, जो लोग पुस्तक पढ़ने मे रुचि रखते थे उन्हें अहिल्यादेवी पुस्तके भेंट करती थी। महेश्वर मे श्रावस मास के अलावा दैनिक धर्मकार्य चलते रहते थे। महेश्वर पूर्ण रूप से धार्मिक नगरी थी, महेश्वर में हमेशा धार्मिक अनुष्ठान चलते रहते थे। इन अनुष्ठानों के कार्य के लिए ब्राह्मण थे, अनुष्ठान के अंत मे ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती थी। तीस दिन के हिसाब से सभी को दक्षिणा दी जाती थी । अहिल्यादेवी ने महेश्वर में पचास मंदिर का निर्माण व जीर्णोद्धार किया था।महेश्वर मे किसानों की सुविधा के लिए अहिल्यादेवी ने तालाबो खुदवाये थे। आम लोगो को पानी की असुविधा नहीं हो इसलिये बावड़ियाँ बनवायी और आज भी महेश्वर मे अहिल्यादेवी द्वारा निर्मित कई बावड़ियाँ उपलब्ध हैं।
हांडिया: हरदा जिले के गाँव हांडिया से नर्मदा नदी बहती हैं, अहिल्यादेवी ने नर्मदा परिक्रमा लगाने वाले यात्रियो के ठहरने के लिए धर्मशाला का निर्माण करवाया था और उनके भोजन के लिये अनंक्षेत्र शुरू किये थे। एक सिद्धनाथ के मंदिर का भी निर्माण करवाया था। हांडिया मे नर्मदा के तट पर एक बहुत बड़ा घाट भी बनवाया था ।
इंदौर: मल्हारराव, खंडेराव और मालेराव के निधन के पश्चात उनकी छतरियों का निर्माण करवाया और इंदौर मे गणपति मंदिर का निर्माण करवाया। विधर्मी ने इंदौर के खजराना गणेश मंदिर को तोड़ दिया था किन्तु अहिल्यादेवी ने पुन: श्री खजराना गणेश मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
मनासा: नीमच के मनासा नामक क्षेत्र मे बद्री विशाल के मंदिर का निर्माण करवाया था। खरगोन: यहां गणेश मंदिर का निर्माण किया था । निरंतर—-
संदर्भ - बहुआयामी व्यक्तित्व अहिल्यादेवी भाग एक
लेखिका - आयुषी जैन
संकलन- स्वयंसेवक एवं टीम
प्रस्तुति.. अशोक जी पोरवाल
लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर त्रिशताब्दी वर्ष
श्रृंखला=49 पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी भाग छ:
महाराष्ट्र : पुण्यश्लोक अहिल्यामाता की जन्मभूमि महाराष्ट्र और कर्मभूमि मालवा का महेश्वर रहा। अहिल्यादेवी एक समृद्ध राज्य की शासिका थी किन्तु अहिल्यादेवी को अपनी जन्मभूमि महाराष्ट्र से बहुत गहरा लगाव था । अहिल्यादेवी महाराष्ट्र के लिए कुछ करना चाहती थी । उनका विशेष व्यक्तिगत जुड़ाव अपने गाँव चोंडी के लिये था। विवाह होने के बाद भी अहिल्यादेवी मायके जाती रहती थी।
चोंडी- अहिल्यादेवी ने अपनी जन्मस्थली चोंडी गाँव मे तीन मंदिरों के निर्माण व जीर्णोद्धार करवाये थे। मालवा राज्य की शासिका बनने के बाद अहिल्यादेवी ने सन 1783 मे अहिल्येश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार किया, इसी शिव मंदिर मे मालवा के सूबेदार मल्हारराव होलकर और अहिल्यादेवी की पहली भेंट हुई थी । इस मंदिर का नाम अहिल्येश्वर महादेव मंदिर अहिल्यादेवी की मृत्यु के बाद नाम रखा गया । अहिल्येश्वर मंदिर के गर्भगृह मे पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी की काले पत्थर की मूर्ति हैं। अहिल्यादेवी जानती थी कि चोंडी की आम जनता काशी विश्वनाथ दर्शन के लिए नहीं जा सकती थी इसलिये अहिल्यादेवी काशी से एक शिवलिंग सिद्ध करके ले आई जिसकी स्थापना अहिल्येश्वर मंदिर मे की गई थी। अहिल्यादेवी ने चोंडी मे सिनेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार किया था तथा यह मंदिर काले पत्थरों का बना था। चोंडी गाँव की देवी चोंडेश्वरी देवी के नाम से मंदिर का निर्माण किया गया था। चोंडी गाँव में चोंडेश्वरी देवी को चोंडी गाँव की कुलदेवी कहां जाता हैं।
घृष्णेश्वर : अहिल्यादेवी ने घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का जीर्णोद्धार करवाया था और धर्मशाला का निर्माण करवाया था । निरंतर—-
संदर्भ - बहुआयामी व्यक्तित्व अहिल्यादेवी भाग एक
लेखिका - आयुषी जैन
संकलन- स्वयंसेवक एवं टीम
🙏🕉️हर हर महादेव 🕉️🙏
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